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उत्तराखण्ड

क्यों हमारे पुर्वज सोने के लिए चारपाई का प्रयोग करते थे ? क्या इसके प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल फायदे हैं?

सोने के लिए चारपाई हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वजों को क्या लकडी को चीरना नही आता रहा होगा? वो भी लकडी चीर के उसकी पट्टीयां बना कर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोइ रोकेट सायंस नही है।

लकडी की पट्टीयों को किलें ही ठोकनी होती है। खटिया भी भले कोइ सायन्स नही हो लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है उसे रस्सी से बूनना पड़ता है और उस में दिमाग लगता है।

जब हम सोते हैं तब माथा और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है क्योंकि रात हो या दोपहर हो लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते थे। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की झोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।

दुनिया में जीतनी भी आराम कुुर्सियां देख लो उसमें भी खटिया की तरह झोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपडे़ की झोली का था, लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड दिया है। चारपाई पर सोने से कमर का दर्द और कंधे का दर्द नही होता है।

डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है, उसमें रोग के किटाणु पनपते है, वजन में भारी होता है तो रोज रोज सफाई नही हो सकती चारपाई को रोज सुबह खडा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सुरज की धुप बहुत बढ़िया किटनाशक है, चारपाई को धुप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं पड़ते हैं।

भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है । चारपाई पर Bed Soar नहीं होता क्योकि इसमें से हवा आर पार होती रहती है ।

गर्मियों में इंग्लिश बिस्तर गर्म हो जाता है इसलिए ऎसी का कूलर की अधिक जरुरत पड़ती है, जबकि चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।

बान की चारपाई पर सोने से सारी रात अपने आप सारे शरीर का एक्यूप्रेशर होता रहता है।

गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनंद ही और है। ताज़ी हवा , बदलता मौसम, तारों की छांव,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है। हर घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई (प्लास्टिक की नहीं ) चारपाई होनी चाहिए।

सस्ते प्लास्टिक की रस्सी और पट्टी आ गयी है, लेकिन वह सही नही है। स्वदेशी चारपाई के बदले हजारों रुपये की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है।

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