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वैश्विक तथा आर्थिक दबावो ने तैयार किया “अग्निपथ” !

वैश्विक तथा आर्थिक दबावो ने तैयार किया “अग्निपथ” !
यद्यपि विश्व में साम्राज्य के विस्तार का इतिहास, मजबूत सेनाओं के इतिहास से जुडा़ रहा है ।सेनाओं की मजबूती हमेशा उनके आर्थिक तथा सामाजिक हितों की सुरक्षा से ही प्राप्त होती रही हैं।
माना जाता है कि अक्कादियन साम्राज्य के संस्थापक अक्कड़ के सरगोन ने पहली स्थायी पेशेवर सेना बनाई थी। असीरिया के तिग्लाथ -पिलेसर III (शासनकाल 745-727 ईसा पूर्व) ने पहली असीरिया की स्थायी सेना बनाई।
हालांकि उनके राज्य में भी अस्थाई और ठेके की सेना भी थी ,लेकिन आर्थिक सुरक्षा ने स्थाई सेना की क्षमता को परिष्कृत किया।
भारत में घननंद ने स्थाई सेना रखने की परंपरा प्रारंभ की उसकी सेना एक लाख से अधिक थी।
जब चंद्रगुप्त मौर्य ने साम्राज्य की स्थापना की तो चाणक्य ने सबसे पहले स्थाई और विश्वसनीय सेना पर जोर दिया, तब मौर्य वंश की सेना की संख्या 6लाख से अधिक हो गई थी ।जिसने पूरे हिंदुस्तान को रौंदा डाला..।
आर्थिक संकट के कारण जब -जब राजाओं ने सेना को कमजोर किया तब- तब वह राज्य कमजोर हुए ।

लेकिन सैनिकों की संख्या पर हमेशा युद्ध तकनीक भारी पडती रही है , महाभारत काल में सेना में घोड़े और हाथी का बराबर प्रयोग देखा गया ,लेकिन भारत में हूण जो बड़े लड़ाके माने गए, जिन्होंने भारत तथा मध्य एशिया में भी अपना साम्राज्य स्थापित किया उन्होंने युद्ध में घोड़े का बडकर प्रयोग कर ही बड़त बनाई।
कालांतर में राजेंद्र चोल प्रथम ने नौसेना के प्रयोग से मलेशिया ,इंडोनेशिया सहित पूरा दक्षिण पूर्व एशिया जीत लिया । बाद में बाबर ने जब तोपखाने का प्रयोग किया तो इब्राहिम लोदी की विशाल सेना पर भारी पड़ गया।
अभिप्राय है कि सेना की संख्या से सेना का कौशल और युद्ध तकनीक हमेशा महत्वपूर्णहै ,जो हमेशा महत्वपूर्ण रही है ।अब आने वाले दिनों में जबकि भविष्य की सेना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे सैनिक रहित होने की दिशा में बड रही है।
ऐसे समय में तब भारत तथा विश्व के अधिकांश देशों के समक्ष चुनौती है, कि वह अपनी सेना की संख्या कम करें, वेतन और पेंशन से जो राशि बचती है, उसका उपयोग सेना की शस्त्र तकनीक तथा आधुनिकीकरण पर खर्च करें , भारतीय सेना का इतिहास 18 95 से प्रारंभ होता , सैनिकों की संख्या की दृष्टि से भारत चीन के बाद दूसरे नंबर की सेना है ।

भारत में कार्यरत सैनिक बलो की संख्या लगभग 12 लाख 255 है, जबकि चीन की सेना लगभग 25 लाख थी , बीते 2 वर्षों में चीन ने सेना में 3 लाख तक की कटौती की है, चीन का लक्ष्य अभी भी अपने सैनिकों की संख्या में 10 लाख कटौती करने का है। ताकि वह अपनी सैनिकों की संख्या सीमित कर, उन्हें आधुनिकतम युद्ध विद्या जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नाम से जानते हैं ,मे बढ़त दिला सके , हांलाकि सेना के आधुनिकीकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दिशा में चीन पहले ही बहुत तरक्की कर चुका है। इसलिए भारतीय सेना के उपर आधुनिकीकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अधिकांश क्षेत्रों में अपनाए जाने का बेहद दबाव है ।
रक्षा बजट की दृष्टि से भी भारतीय सेना विश्व के तीसरे पायदान पर है ।लेकिन भारतीय रक्षा बजट का बड़ा भाग अभी भी 60% तक सैनिकों के वेतन और पेंशन पर खर्च हो जा रहा है। जो अन्य देशों के मुकाबले 2 गुना तक है। जिसके कारण आधुनिक शस्त्र और तकनीक को अपनाने के लिए भारतीय सेना के पास संसाधनों की बेहद कमी हो जाती है ।
रक्षा बजट से सैनिकों की तनख्वाह और पेंशन का हिस्सा कम से कम रखना आज भारतीय सेना की सबसे बड़ी चुनौती है ।

2022 -23 में पूरी दुनिया के देश 2213 बीलियन डालर रक्षा पर खर्च कर रहे हैं । अमेरिका जो कि इसवर्ष सेना पर 732 बिलीयन डॉलर खर्च कर रहा है. यह रकम उनकी जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है , अमेरिका सैनिकों के वेतन और पेंशन पर मात्र 34 प्रतिशत खर्च कर रहा है। चीन का रक्षा बजट 261 बिलियन डॉलर है जो उनकी जीडीपी का 1.9प्रतिशत है, चीन अपने सैनिकों के वेतन तथा अन्य पर मात्र 19 प्रतिशत ब्यय कर रहा है , भारत जिसका की रक्षा बजट गत वर्ष की तुलना में 9% बढ़ा है इस वर्ष यह 71.1 बिलियन डॉलर है जो कि भारत की जीडीपी का 2.4% है । इस वर्ष भी भारत 1.35 लाख करोड़ डालर पेन्शन पर 2 .55 लाख करोड़ डालर कुल 3.9 लाख करोड डालर सैनिको के वेतन तथा पेन्शन पर खर्च कर रहा है ।
इस प्रकार सेना का आधुनिकीकरण जो भारतीय सेना का पहला लक्ष्य है, लेकिन रक्षा बजट का बड़ा भाग आज भी वेतन और पेंशन में खर्च हो जा रहा है ,जिस आर्थिक दबाव के चलते सेना अपने आधुनिकीकरण के लक्ष्य को हासिल करने में पिछड रही है।

भारतीय सेना के ऊपर अर्थ का यह दबाव वन रैंक वन पेंशन स्कीम के बाद अचानक बेतहाशा बड़ गया है। 2010-11 में भारतीय रक्षा बजट का पेंशन पर 19 प्रतिशत खर्च होता था, जोअब वह बढ़कर 2 6 प्रतिशत हो गया है।
भारत में कुल 32 लाख पेंशनर्स की संख्या है । यह विश्व के किसी भी देश से अधिक है । अमेरिका अपने सैनिकों की पेंशन पर अपने बजट का 10 प्रतिशत इंग्लैंड 14 प्रतिशत खर्च कर रहा है ,जबकि चीन का यह खर्च और भी कम है ।
वन रैंक वन पेंशन योजना जो दिसंबर 2015 में लागू की गई ने एकमुश्त रक्षा बजट को बड़ा झटका दिया । वन रैंक वन पेंशन योजना से एक साथ 20 लाख 60 हजार 220 कार्मिकों को लाभ प्राप्त हुआ , जिसमें एकमुश्त 10795.4 करोड़ ब्यय हुआ, बीते 5 वर्ष में वन रैंक वन पेंशन स्कीम के तहत 18 लाख 67 हजार कार्मिकों को 9638.05 करोड रुपए अतिरिक्त धनराशि दी गई है।
इस प्रकार वन रैंक वन पेंशन योजना ने सैनिकों का तो काम किया है लेकिन देश के रक्षा रक्षा बजट में बड़ी सैंध भी लगाई है ।
आज दुनिया के बहुत से देश पहले से ही अस्थाई प्रवृत्ति के सैनिकों को रख रहे हैं ।इसमें इजराइल के पुरष सैनिकों का कार्यकाल तो 30 माह और महिला सैनिकों का कार्यकाल तो मात्र 22 माह ही है। जिस कारण वहां की सेना की औसत आयु विश्व में सबसे कम है, उम्र की दृष्टि से भी भारतीय सेना बुजुर्ग बार होती जा रही है। यहां औसत आयु अभी भी 32 वर्ष है जिसे 28 वर्ष तक पहुंचाना सेना का लक्ष्य है ।
21वीं सदी में जिस प्रकार पूरे विश्व में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर सेना का विकास हो रहा है, जहां कम से कम सैनिक युद्ध के लिए आवश्यक होंगे, वहां सैनिकों की संख्या को तेजी से कम करने का दबाव भारत के ऊपर भी है ।
इस प्रकार युद्ध कौशल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक का महंगा होना, विश्व की सेनाओं का सैनिक रहित होने के चलन ने भारतीय सेना के ऊपर सैनिकों की संख्या कम कर, वेतन और पेन्शन की मद से बड़ी बचत कर , आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक तथा आधुनिक शास्त्रों के लिए बड़ी मात्रा में धन उपलब्ध कराने का दबाव बनाया है ।
इसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के दबाव के परिणाम स्वरुप मौजूदा अग्निपथ योजना जिसमें सिर्फ 25 प्रतिशत ही स्थाई सैनिक भर्ती होंगे, शेष 75 प्रतिशत अग्निवीर के रूप में समाज को वापस हो जाएंगे, प्रस्तावित की गई है ।
अग्निपथ और अग्निवीर के प्रारूप को लेकर अभी समाज में पर्याप्त विचार विमर्श नहीं हुआ है। जिस कारण युवाओं ने बड़ी संख्या में इस योजना का विरोध किया है। एक असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
लेकिन यह भी सच है कि वैश्विक चुनौती से हम अधिक दिनों तक मुंह नहीं मोड़ सकते हैं ,साथ ही सेना को रोजगार उपलब्ध कराने तथा बल के सभी सदस्यों को पेंशन के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का मंच भी नहीं बना सकते । हमें दुनिया की सेनाओं के साथ कदमताल तो करना ही होगा ।
अभी 5 दिन में अग्निपथ योजना में 3 बड़े संशोधन हुए हैं ,भविष्य में यदि कुछ और संशोधन होते हैं तो युवाओं का आक्रोश शांत होगा और यह अवश्यंभावी योजना लागू हो जाएगी, यदि ऐसा होता है तो आने वाले 10 वर्षों में भारतीय सेना के स्थाई सैनिकों की संख्या आधी रह जाएगी और वेतन से बची इस विशाल धनराशि का सेना के आधुनिकीकरण में उपयोग किया जा सकेगा ।

साभार प्रमोद शाह ,

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