उत्तराखण्ड
चाणक्य का भारत बनाने की जरूरत- जय नारायण पांडे,,
पवनीत सिंह बिंद्रा
हल्द्वानी,,,उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय में उत्तराखंड में सम्पन्न हुआ अर्थशास्त्र का समागम,
समावेशी आर्थिक नीति व स्थानीय विकास मॉडल पर हुआ गहन मंथन, युवाओं ने दिखाई शोध की नई दिशा”
तीन दिवसीय यूपी-उत्तराखंड इकोनॉमिक एसोसिएशन (UPUEA) का 21वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन आज रविवार को समापन सत्र के साथ संपन्न हुआ। “एक सशक्त भारत के लिए सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को सुदृढ़ करना: चुनौतियाँ और नीतियाँ” विषय पर आयोजित इस सम्मेलन के तीसरे दिन पाँच प्रमुख थीम्स पर आधारित तकनीकी सत्रों में देशभर के विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्र संकाय के विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने 75 से अधिक शोध-पत्र प्रस्तुत किए।
समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि राजीव गांधी पीजी कालेज अंबिकापुर सरगूजा छत्तीसगढ़ से आए अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष जय नारायण पांडे वे कहा कि हमें भारत को चाणक्य का भारत बनाना होगा. हम अपनी संस्कृति व साहित्य को विलोपित करके एक विकसित भारत की कल्पना नहीं कर सकते। हम संस्कृत में लिखे शब्दों को पढ़ना ही नहीं चाहते। उन्होंने आध्यात्मिक समाजवाद पर बात रखी। और कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्ति ने हमें हमारी संस्कृति से दूर कर दिया और यह साजिशन किया गया। इसीलिए आज सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि भारत के बारे में कुछ भी करने के लिए यहां के परिवेश को यहां की संस्कृति को ध्यान में रखना होगा. युवाओं से इसकी शुरुआत करनी होगी. समापन सत्र के मुख्य उद्बोधन में इलाहाबाद विवि के प्रो.मनमोहन कृष्ण ने बहुत सारी चिंताएं जताई कि हम बहुत छोटी इच्छाओं के लिए जी रहे हैं कोई बड़ा सामूहिक सामाजिक मकसद हमारा नहीं है गांवों तक बिजली पहुंच रही या नहीं लेकिन हमें बिजली का भरपूर उपयोग करना है दूसरे की चिंता करना हमारी प्राथमिकता में कहीं नहीं हैं। संस्था के अध्यक्ष प्रो. ओ.पी. मित्तल ने अपनी बातों में समाज के लोगों के सोचने के नजरिये को बदलना होगा। समापन सत्र के मुख्य अतिथि कुमांऊ विवि एस एस जे ने कहा हम दुनिया की चौथे नंबर की इकोनॉमी तो हैं पर बाकि के तीन देशों से हमारी इकोनोमी में गैप बहुत है इसीलिए इस खुशफहमी से हमें जल्दी बाहर निकलकर अपनी इकोनॉमी को बेहतर करने के लिए कोशिश करनी चाहिए। हमें सामाजिक सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उत्तराखंड मुक्त विवि के कुलपति प्रो. ओ.पी.एस नेगी ने कहा कि इस अधिवेशन से जो विर्मश निकलकर सामने आया वह हमारी अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में लाभकारी होगा. समापन सत्र के अंत में संस्था के अवध विवि में प्रोफेसर विनोद कुमार श्रीवास्तव से अधिवेशन से जुडे अपने अनुभव साझा किये व उत्तराखंड मुक्त विवि का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यहां पर अर्थव्यवस्था पर अकादमिक विर्मश के लिए बहुत अच्छा माहौल मिला जिससे कि हम कुछ सुझाव भी दे सकेंगे जिससे कि न केवल उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में इन सुझावों को लागू किया जा सकेगा। सत्र के अंत में विवि के कुलसचिव खेमराज भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया और कहा कि यह अकादमिक विर्मश का माहौल हमारी फैकल्टी के लिए भी लाभकारी साबित हुआ। अधिवेशन के समापन सत्र में स्वामी विवेकानंद सुभारती विवि मेरठ की प्रोफेसर मोनिका मेहरोत्रा ने तीनों दिनों की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
समापन सत्र से पहले आयोजित तकनीकि सत्रों में अधिवेशन के पांच प्रमुख विषयों—पारिस्थितिकीय स्थिरता, आजीविका सुरक्षा, राजकोषीय एवं वित्तीय स्थिरता, भारतीय ज्ञान प्रणाली और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के सतत विकास—पर आधारित तकनीकी सत्रों में शोध-पत्र प्रस्तुत किए गए। इन सत्रों में देश भर से आए विशेषज्ञों और शिक्षाविदों ने अपनी सहभागिता दर्ज की।
अंत में, दो समानांतर ओपन डिस्कशन सत्र भी आयोजित किए गए जिनमें क्रमशः प्रो. विनोद कुमार श्रीवास्तव और प्रो. दुष्यंत कुमार ने अध्यक्षता की। सभी सत्रों में कुल मिलाकर 150 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें शोधार्थियों ने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक, पर्यावरणीय और नीतिगत मुद्दों पर गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया।
अधिवेशन के अंतिम दिन में प्रो. सनातन नायक, प्रो. डिंपल विज, डा. शैलेन्द्र कुमार, डा. सुरजीत सिंह, डा. विकास प्रधान, प्रो. निधइ शर्मा, प्रो. भारती पांडे, प्रो. गदीश सिंह, प्रो आई.डी. गुप्ता, प्रो. एस.पी. सिंह, प्रो. मनोज अग्रवाल, प्रो. मनोज कुमार प्रो. मनमोहन कृष्ण, प्रो. नूप मिश्रा डा. दिनेश गुप्ता,डा. यू.आर. यादव, डा. स्वाति टम्टा, डा. एन. एस. बिष्ट संस्था के उत्तराखंड के सचिव डा. एन.ए. बिष्ट, प्रो. निसार अहमद खान (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) एवं प्रो. अनिल ठाकुर (पूर्व महासचिव, IEA) ,प्रो. के.सी. जैन (सागर विश्वविद्यालय, म.प्र.) और प्रो. योगेश कुमार शर्मा (पीजी कॉलेज, पौड़ी गढ़वाल), प्रो. मसरूर अहमद बेग (जाकिर हुसैन कॉलेज, दिल्ली) एवं प्रो. ए.एस. उनियाल (संयुक्त निदेशक, उच्च शिक्षा, उत्तराखंड), डॉ. अशोक कुमार मैंदोला व डॉ. पूनम वर्मा, डॉ. प्रियंका जायसवाल व डॉ. स्वेता उपाध्याय, दीप्ति कमल जोशी, प्रो. भारती पांडेय (श्री जेएनपीजी कॉलेज, लखनऊ), डॉ. वीर बहादुर महतो (नेपाल), प्रो. अशुतोष प्रिया (रुहेलखंड विश्वविद्यालय), डॉ. ए.के. तोमर (अलीगढ़), डॉ. राणा रोहित सिंह, डॉ. पूनम यादव, रिपोर्टिंग डॉ. सविता, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. लता जोशी,डॉ. जय प्रकाश वर्मा (आईजीएनयू, लखनऊ) एवं प्रो. डी.पी. भट्ट (डोईवाला, देहरादून), डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता, डॉ. शरद दीक्षित, सुश्री किरण पांडेय एवं डॉ. आराधना जायसवाल, प्रो. मंजुला उपाध्याय (लखनऊ), प्रो. हिमांशु शेखर सिंह (डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय), प्रो. आनंद प्रकाश सिंह (चंपावत), डॉ. अभिषेक पांडेय (डीएसएमएनआरयू, लखनऊ), डॉ. निहारिका श्रीवास्तव प्रो. अनुप कुमार मिश्रा (डीएवी पी.जी. कॉलेज, वाराणसी) और प्रो. देवेंद्र अवस्थी (डीएवी कॉलेज, कानपुर, प्रो. प्रिया कुमारी (डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या) एवं प्रो. अशोक कुमार कैथल (लखनऊ विश्वविद्यालय) प्रो. साहब सिंह, डॉ. कामना सेन गुप्ता, डॉ. अनुजेन्द्र तिवारी व डॉ. अनिल कुमार आदि मौजूद रहे।- पारिस्थतिकी स्थिरता पर हुई बात। इस थीम के अंतर्गत प्रस्तुत शोध-पत्रों में पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ, और सतत संसाधन प्रबंधन जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी गई। वक्ताओं ने प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के दुष्परिणामों को रेखांकित करते हुए वैकल्पिक नीतियों की आवश्यकता बताई, जो जैव विविधता, जंगलों की सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करें। विशेष रूप से हिमालयी पारिस्थितिकी, जल-संकट और वायु प्रदूषण जैसे स्थानीय मुद्दों पर गहन मंथन हुआ। शोधार्थियों ने जन-सहभागिता आधारित पर्यावरणीय नीतियों पर बल दिया और युवाओं को पर्यावरण-संरक्षण में सहभागी बनाने के उपाय सुझाए।
आजीविका सुरक्षा की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर, स्वरोजगार, और कौशल विकास की भूमिका पर केंद्रित शोध प्रस्तुत किए गए। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने, और शहरी श्रमिकों के लिए समावेशी योजनाओं की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया। एमएसएमई, सहकारिता और स्टार्टअप संस्कृति को ग्रामीण भारत से जोड़ने के प्रयासों को विशेष समर्थन देने की बात कही गई। वक्ताओं ने आजीविका के विविधीकरण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
राजकोषीय एवं वित्तीय स्थिरता विषयक सत्र
इस थीम के अंतर्गत भारत की सार्वजनिक वित्त प्रणाली, कर संरचना, और मौद्रिक नीति के प्रभावों का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। शोध-पत्रों में यह बताया गया कि कैसे वित्तीय अनुशासन, पारदर्शिता और डिजिटल वित्तीय समावेशन से अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाई जा सकती है। बैंकों की भूमिका, एनपीए की स्थिति, और क्रेडिट विस्तार की समस्याओं को भी विस्तार से समझाया गया। वक्ताओं ने सुझाव दिया कि राज्यों को अपने राजस्व स्रोत बढ़ाने के लिए नवाचार करना चाहिए और केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में संतुलन आवश्यक है।
भारतीय ज्ञान प्रणाली और अर्थव्यवस्था पर केंद्रित सत्र
शोधकर्ताओं ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान, जैसे आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ग्राम अर्थव्यवस्था और तंत्रशास्त्र, की वर्तमान संदर्भों में पुनर्परिभाषा की आवश्यकता को रेखांकित किया। वक्ताओं ने तर्क दिया कि उपनिवेशवादी शिक्षा प्रणाली से हटकर भारत को अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर पर आधारित विकास मॉडल अपनाने की आवश्यकता है। साथ ही, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को समाहित करने के प्रयासों की सराहना की गई। यह भी विचार हुआ कि भारतीय अर्थशास्त्र को पश्चिमी मानकों से नहीं, बल्कि अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुसार पुनर्निर्मित किया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का सतत विकास विषय पर आधारित सत्र
इस विशेष थीम में दोनों राज्यों की भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए सतत विकास की रूपरेखा पर चर्चा हुई। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क एवं पर्यटन के क्षेत्र में विशेष रणनीति की आवश्यकता बताई गई, वहीं उत्तर प्रदेश के लिए कृषि आधारित औद्योगिक विकास और नगरीकरण की दिशा में योजनाएं सुझाई गईं। जल संसाधनों, पलायन, और युवा उद्यमिता के प्रोत्साहन जैसे विषय प्रमुख रहे। वक्ताओं ने यह भी सुझाव दिया कि योजनाएं स्थानीय संस्कृति, पारिस्थितिकी और जनसांख्यिकी को ध्यान में रखकर बनाई जाएं।
