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उत्तराखण्ड

परिवहन विभाग की ओवरलोडिंग पर नकेल ढीली, सिस्टम में कोड पर्चियों का खेल जारी,

पवनीत सिंह बिंद्रा

हल्द्वानी। राज्य परिवहन विभाग में प्रवर्तन अधिकारियों के नियमित परिवर्तन के बावजूद ओवरलोडिंग पर रोक अब तक नहीं लग सकी है। विभाग के भीतर एक ऐसी व्यवस्था सक्रिय बताई जा रही है जो ओवरलोडिंग को परोक्ष रूप से संरक्षण दे रही है। इस सिस्टम में वाहन स्वामियों और चालकों को उनके स्थाई पते पर एक “कोड वर्ड पर्ची” उपलब्ध कराई जाती है, जिसका उपयोग प्रवर्तन कार्रवाई के समय ओवरलोड वाहनों को राहत देने के लिए किया जाता है।सूत्रों का कहना है कि जब भी परिवहन विभाग कोई अभियान चलाने की तैयारी करता है, तो उसकी जानकारी पहले ही कुछ लोगों तक पहुंच जाती है। परिणामस्वरूप कार्रवाई से पहले ही ओवरलोड वाहन या तो मार्ग बदल लेते हैं या तय व्यवस्था के अनुसार सुरक्षित निकल जाते हैं। यह सूचना-रिसाव प्रवर्तन को अप्रभावी बना रहा है और विभाग की छवि पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।स्थानीय परिवहन सूत्रों के अनुसार, विभिन्न टायर श्रेणी के वाहनों के लिए अलग-अलग रेट निर्धारित हैं। 6 टायर, 10 टायर, 14 टायर, 18 टायर और 24 टायर वाले वाहनों की एंट्री और ओवरलोडिंग रेट की अलग व्यवस्था है। बताया जा रहा है कि इस वसूली का एक हिस्सा विभाग के भीतर से जुड़े कुछ लोगों और बिचौलियों को भी जाता है। यह पूरा नेटवर्क वर्षों से सक्रिय है, जिससे ओवरलोडिंग का कारोबार लगातार फल-फूल रहा है।ओवरलोडिंग की वजह से कई गंभीर सड़क हादसे हो चुके हैं। अनेक परिवारों के घरों के चिराग इन दुर्घटनाओं में बुझ चुके हैं। बावजूद इसके, व्यवस्था में सुधार के बजाय कार्रवाई हर बार “शासन स्तर पर जांच होगी” जैसे औपचारिक जवाबों तक सीमित रह जाती है।परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रत्येक अभियान से पहले संबंधित क्षेत्र में खबर पहुंचना आम बात है। यह भी बताया गया कि प्रवर्तन अधिकारियों का तबादला भले ही समय-समय पर होता रहे, लेकिन जमीनी स्तर पर व्यवस्था नहीं बदलती।अब सवाल यह है कि जब प्रवर्तन प्रशासनिक स्तर पर सक्रिय नजर आता है, तब भी क्यों ओवरलोड वाहन खुलेआम सड़कों पर दौड़ रहे हैं? क्या यह केवल कुछ लोगों की मिलीभगत का परिणाम है, या फिर यह गहराई तक जड़ जमा चुके भ्रष्ट सिस्टम की पहचान बन चुकी है?

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