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उत्तराखण्ड

रुहानियत की अविरल धारा – 78वां निरंकारी संत समागमसंतुलित जीवन ही सच्ची साधना का मार्ग : सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ,

हल्द्वानी, 4 नवम्बर 2025 – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार को 78वें निरंकारी संत समागम के तीसरे दिन लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सांसारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए आध्यात्मिकता को अपनाना जीवन को सहज, सुंदर और सफल बनाता है। उन्होंने कहा कि केवल भौतिकता में आसक्त रहना या फिर गृहस्थ जीवन से विमुख होकर साधना में लीन रहना दोनों ही अतिरेक हैं। संतुलन ही सच्चा मार्ग है।माता जी ने वसुधैव कुटुंबकम की भावना को रेखांकित करते हुए कहा कि सच्चे संत मानवता में किसी तरह का भेदभाव नहीं देखते। जहां भेद नहीं रहता, वहां केवल प्रेम का वास होता है। उन्होंने कहा कि प्रेम बांटने की भावना अपनाने से मन में शिकायतें कम होती हैं और शुकराने का भाव उत्पन्न होता है।इस अवसर पर निरंकारी राजपिता रमित जी ने कहा कि सच्चा प्रेम ईश्वर का रूप है। जब हृदय सतगुरु या परमात्मा के प्रति प्रेममय होता है, तो भक्त को हर दिशा में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। यही आध्यात्मिक प्रेम जीवन को आनंदित कर देता है।हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी समागम स्थल पर पहुंचकर सतगुरु माता जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन आत्ममंथन, आत्मसुधार और समाज निर्माण का प्रेरणा स्रोत है, जो मानवता को भेदभावों से ऊपर उठकर प्रेम और एकता का संदेश देता है।स्वास्थ्य सेवा और कायरोप्रैक्टिक शिविरनिरंकारी मिशन के स्वास्थ्य एवं समाज कल्याण विभाग द्वारा इस वर्ष भी व्यापक व्यवस्थाएं की गईं। समागम परिसर में 8 एलोपैथिक और 6 होम्योपैथिक डिस्पेंसरियां; 15 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और एक कायरोप्रैक्टिक शिविर संचालित रहे। गंभीर रोगियों के लिए 120 बेड का अस्थायी अस्पताल भी स्थापित किया गया। मिशन और हरियाणा सरकार की कुल 42 एम्बुलेंस सेवाएं तैनात रहीं।कायरोप्रैक्टिक शिविर में अमेरिका और यूरोप से 7 एवं भारत से 4 डॉक्टरों की टीम ने करीब 2300 मरीजों का उपचार किया। विभिन्न डिस्पेंसरियों में 1000 से अधिक मेडिकल सेवादारों ने सेवा दी जिनसे 10,000 से अधिक श्रद्धालु लाभान्वित हुए।लंगर एवं कैंटीन व्यवस्थासमागम परिसर में चार स्थानों पर सामूहिक लंगर की व्यवस्था की गई जहां देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते दिखाई दिए। यह दृश्य ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना का सजीव प्रतिरूप बना।

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