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उत्तराखण्ड

अल्मोड़ा में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए संजय पाण्डे का साहसिक संघर्ष: प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ जनहित की लड़ाई”,

अल्मोड़ा सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने अल्मोड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर करते हुए प्रशासन की लापरवाही पर कड़ी आलोचना की है। उनके प्रयास सिर्फ स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि उन समस्याओं का समाधान खोजने के लिए भी हैं, जो प्रशासन की उपेक्षा और अकर्मण्यता से उत्पन्न हो रही हैं।

1..मेडिकल कॉलेजों की स्थिति और प्रशासन की उदासीनता
पाण्डे ने प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल उठाए हैं, खासकर नए मेडिकल कॉलेज खोलने की बजाय मौजूदा कॉलेजों की स्थिति सुधारने पर जोर दिया है। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में हाल ही में डॉक्टरों की भारी कमी के कारण सर्जरी पूरी तरह से बंद हो चुकी है। पाण्डे का कहना है कि जब एक मेडिकल कॉलेज में व्यवस्थाएं ठीक होने वाली होती हैं, तो सरकार दूसरे मेडिकल कॉलेज की घोषणा कर देती है, जबकि डॉक्टरों की कमी, विशेषज्ञों की अनियमित तैनाती और आवश्यक उपकरणों की कमी को ठीक करना पहले जरूरी है।
संजय पाण्डे ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में इसकी शिकायत भी दर्ज करवाई है (शिकायत क्रमांक CMHL-112024-8-655789) और प्रशासन से मांग की है कि अल्मोड़ा और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दी जाए। वे यह भी कहते हैं कि हालात में सुधार लाने के बजाय सरकार केवल वोट बैंक के लिए नई घोषणाओं में व्यस्त है।
2…जिला चिकित्सालय अल्मोड़ा की गंभीर समस्याएं
पाण्डे ने जिला चिकित्सालय में चल रहे जीर्णोद्धार कार्यों की भी आलोचना की है। ओटी में अत्याधुनिक सुविधाओं के दावे खोखले साबित हो रहे हैं, और पुराने तरीके की ओपन सर्जरी अभी भी की जा रही है। पाण्डे ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी अल्मोड़ा के ढुलमुल रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि वे शिकायतों का जवाब नहीं देते और फोन तक नहीं उठाते। इसके परिणामस्वरूप पाण्डे को इनसे मिलने के लिए उनके कार्यालय जाना पड़ता है। इससे पहले कई लोगों ने संजय पाण्डे को इस बारे मैं अवगत करवाया उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने इस बारे में कई बार पत्र भेजे थे, लेकिन जब तक स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. तारा आर्य से व्यक्तिगत बातचीत नहीं हुई, तब तक मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने पत्र शासन को भेजने में कोई ध्यान नहीं दिया।
3…समस्याओं का समाधान न होना और लंबित शिकायतें:

पाण्डे की यह शिकायतें मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर पिछले एक साल से लंबित हैं, जिनका समाधान अब तक नहीं किया गया है। शिकायत संख्या CMHL0920238439482 और CMHL0920238439486 में उल्लेखित इन समस्याओं का अभी तक कोई समाधान नहीं मिला है। पाण्डे ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए प्रशासन की लापरवाही को बेनकाब किया है। उनका कहना है कि यह प्रशासन की गंभीरता की कमी को ही दर्शाता है कि एक साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद इस मामले पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

4…विशेषज्ञों की कमी और उपकरणों की जरूरत
अल्मोड़ा के जिला चिकित्सालय में महत्वपूर्ण उपकरणों की कमी है, जैसे कि कलर डॉपलर और इको मशीन, जो हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक हैं। पाण्डे ने कई बार इन उपकरणों की उपलब्धता के लिए प्रशासन से लिखा, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई है। इसका परिणाम यह है कि यहां के मरीजों को हल्द्वानी या अन्य शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।
संजय पाण्डे का यह संघर्ष केवल समस्याओं को उजागर करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनका उद्देश्य है कि इन समस्याओं पर तुरंत कार्रवाई की जाए। उन्होंने राज्य सरकार, स्वास्थ्य विभाग और जन प्रतिनिधियों से अपील की है कि यह मुद्दा जितनी जल्दी संभव हो, उतनी जल्दी हल किया जाए, ताकि अल्मोड़ा के लोग स्थानीय स्तर पर ही उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें।

संजय पाण्डे का व्यक्तिगत संघर्ष और समाज सेवा

बेस चिकित्सालय में 2024 में भी वही हालात बने हुए है जो 2019 में थे। उस समय भी यहां न्यूरोसर्जन की कमी थी और सिटी स्कैन मशीन बार-बार खराब होती रहती थी। यह स्थिति संजय पाण्डे के लिए व्यक्तिगत रूप से बेहद कठिन थी, क्योंकि उन्होंने खुद 2019 में अपनी मां को सही समय पर इलाज न मिलने के कारण ब्रेनहेमरेज के बाद हल्द्वानी शिफ्ट किया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना उनके जीवन में एक गहरी छाप छोड़ गई और इसी कारण से उन्होंने समाज सेवा का संकल्प लिया।

संजय पाण्डे का यह संघर्ष उनके व्यक्तिगत दुखों से प्रेरित है। 2019 में अपनी मां की मौत के बाद पाण्डे ने समाज सेवा का संकल्प लिया था। उनके प्रयासों से अब बेस चिकित्सालय में एक नई सिटी स्कैन मशीन और एम.आर.आई. स्थापित की गई है, जो 24 घंटे चालू रहती हैं, ताकि मरीजों को समय पर इलाज मिल सके।

संजय पाण्डे ने यह संदेश दिया है कि समाज के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है कि वह सरकारी कार्यों की पारदर्शिता और जनहित में सुधार के लिए सक्रिय रूप से भाग ले। उनका संघर्ष न केवल व्यक्तिगत पीड़ा का परिणाम है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति अपने संघर्षों से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

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