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उत्तराखण्ड

गुरुओं की कुर्बानियों को भुला बैठा सिख समाज, धार्मिक संस्थाएं विवादों में घिरीं,

हल्द्वानी। सिख धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले गुरुओं और उनके परिवारों की कुर्बानियां आज कहीं धूमिल होती नजर आ रही हैं। जिन गुरुओं ने अपने चारों साहिबजादों को दीवारों में चिनवा दिया, जिनका उद्देश्य केवल धर्म की रक्षा और मानवता का कल्याण था, आज उन्हीं के नाम पर बनीं धार्मिक संस्थाएं विवादों और आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ती जा रही हैं।
धर्म की नींव रखने वाले गुरुओं के नाम से संचालित संस्थाएं आज माननीय न्यायालयों में विचाराधीन हैं। समाज सेवा और धार्मिक मार्गदर्शन के लिए बनी संस्थाएं अब केवल सत्ता की लड़ाई और वर्चस्व की होड़ में बदलती जा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सिख समाज आज भीतर ही भीतर बंट चुका है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने, धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन करने की प्रवृत्ति ने समाज को अंदर से खोखला कर दिया है।
धार्मिक स्थल अब श्रद्धा और भक्ति के केंद्र न रहकर, शक्ति प्रदर्शन के अखाड़े बनते जा रहे हैं। गुरुद्वारे, जहां एक समय भाईचारे और सेवा भाव का उदाहरण प्रस्तुत करते थे, आज वहां केवल सत्ता की लड़ाई लड़ी जा रही है।
कई संस्थाएं ऐसी हैं जिनका नाम गुरु साहिबानों से जुड़ा है, परंतु उनके क्रियाकलापों का गुरुओं की शिक्षाओं से कोई मेल नहीं है। अदालतों में गुरु साहिब के नामों से चल रही संस्थाओं पर फैसले का इंतजार हो रहा है यह न केवल समाज के लिए चिंतन का विषय है, बल्कि उन बलिदानों का भी अपमान है जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
आज जरूरत है कि सिख समाज जागे, आपसी मतभेदों को भुलाकर एक बार फिर गुरु साहिब के बताए मार्ग पर लौटे। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब गुरुओं की दी गई कुर्बानियों को केवल किताबों में पढ़ा जाएगा और समाज उनकी मूल भावना को भुला चुका होगा।

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