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उत्तराखण्ड

पंचायत चुनाव में निर्दलीयों का दबदबा, राजनीतिक दलों को जनता ने किया नकार,

पवनीत सिंह बिंद्रा

हल्द्वानी। इस बार के पंचायत चुनावों ने जहां कई राजनीतिक दिग्गजों की रणनीतियों को ध्वस्त किया, वहीं निर्दलीय प्रत्याशियों ने अप्रत्याशित सफलता दर्ज कर राजनीतिक दलों को बड़ा संदेश दिया है। अधिकतर क्षेत्रों में निर्दलीयों की जीत ने यह साबित कर दिया कि जनता अब पार्टी के बैनर से ज्यादा उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि और कार्यशैली पर विश्वास करती है।

चुनाव परिणामों में यह स्पष्ट देखा गया कि जिन प्रत्याशियों ने राजनीतिक दलों के संरक्षण में चुनाव लड़ा, उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। कई ऐसे प्रत्याशी, जो पार्टी सिंबल के सहारे मैदान में उतरे थे, जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके। वहीं जिन लोगों ने बिना किसी दल का सहारा लिए अपने दम पर चुनाव लड़ा, उन्हें भारी जनसमर्थन मिला।

इस बार की मतगणना में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी भी विशेष रूप से देखने को मिली। गांव की सरकार कहे जाने वाले इन चुनावों में कई स्थानों पर युवा और महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कर नई राजनीतिक लकीर खींची है।

जानकारों का मानना है कि इस बार के चुनावी परिणाम यह साफ तौर पर दर्शाते हैं कि जनता अब मुद्दों पर वोट दे रही है, न कि महज पार्टी की पहचान पर। कई बड़े नेताओं का वर्चस्व भी इन चुनावों में काम नहीं आया।

वर्तमान परिणामों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि अब जनप्रतिनिधि किस आधार पर जनता के सामने खड़े हैं — क्या उनका जनाधार खुद की छवि पर टिका है, या फिर वे केवल पार्टी के बल पर चुनाव जीतना चाहते हैं?

कुल मिलाकर पंचायत चुनावों के नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति अब केवल पार्टी की मोहर से नहीं, जनता से सीधे जुड़ाव से तय होगी।

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