उत्तराखण्ड
मेरा दर्द न जाने कोहये,,
गाय को हम माता कह कर पुकारते हैं और पूजनीय भी है लेकिन दूसरी तरफ जो गाय को पालते है वह सिर्फ दूध निकालने तक सीमित रहते हैं जैसे गाय उनका परिवार पालती हो और पालती भी दूध बेच कर उनका भरण पोषण होता। लेकिन गाय के लिए कुछ नहीं है उन्हें जरा भी दर्द नही होता है कि गाय को कोई दुख तकलीफ हो, आज बाजार में एक गाय माता जी पेट में किसी ने धार हथियार से हमला किया हुआ था ऐसा प्रतीत होता है,, लहू बह रहा था साथ में छोटा सा बछड़ा भी है लेकिन सवाल ये है कि पूरे बाजार में ये गया माता घूम रही है और लहू बह रहा है किसी की नजर नहीं पड़ी एक व्यक्ति की नजर जरूर पड़ी मैं उनको सैल्यूट करता हूं जो एक भाव भगति वाले प्रतीत होते हुए नज़र आए वो हैं गोविंद जी जो नाम से एक आध्यामिक नज़र आए। ,जो एक गोविंद मेडिकल स्टोर चलाते हैं उन्होंने पहले उसे सेब खिलाए और उस पर दवा लगाई लेकिन घाव ज्यादा गहरा था जैसे ही दवा लगाई तो गाय भाग गई ,पर गाय का लहू बहता देख कर किस का मन नही पसीजा ,पूजा करनी तो गया चाहिए , ऐसे बाजार में बहुत से पशु हैं जो चोटिल हुए पड़े हैं लेकिन न तो पशु चिकित्सा विभाग की नजर पड़ती है न ही नगर निगम प्रशासन की ,बाजार में इस समय बहुत से ऐसे पशु को बीमारी से ग्रस्त हैं लेकिन वो बेबस है जब कि ये एक विभाग के अंतर्गत आता है एवम ,पशु चिकित्सालय में पशुओं के लिए बजट भी आवंटन होता होगा लेकिन वह बजट जाता जाता हैं जो इन पशुओं पर खर्च नही होता है