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उत्तराखण्ड

कुमाऊँ द्वार महोत्सव का मंगलवार को मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने किया शुभारंभ

पवनीत सिंह बिंद्रा,

हल्द्वानी के एमबी इंटर कॉलेज में आयोजित पांच दिवसीय कुमाऊँ द्वार महोत्सव का मंगलवार को मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने किया शुभारंभ मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड की गौरवशाली लोक संस्कृति से आज की युवा पीढ़ी को जोड़ने वाले इस “कुमाऊं द्वार महोत्सव” के आयोजन समिति से जुड़े सभी युवाओं का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए कहा कि यह महोत्सव लोक कलाकारों को सम्मान देने के साथ ही हमारी लोक संस्कृति,लोक विरासत को संरक्षित करने का कार्य कर रहा है।

अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने कहा कि हल्द्वानी को पहाड़ों का प्रवेश द्वार और समग्र पर्वतीय समाज का दूसरा घर माना जाता है।
हमारी संस्कृति, परंपरा और लोक कलाओं के समृद्ध केंद्र कुमाऊं की इस धरती में यह आयोजन हमारे नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति,लोक कला से रूबरू करने का कार्य कर रहा है।उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लोकगायन और लोकनृत्य की मनोहारी प्रस्तुतियों से भरे इस कुमाऊं द्वार महोत्सव में अनेक लोक कलाकारों को एक सम्मान मिल रहा है,जो एक बेहतर पहल है।
उन्होंने आयोजन समिति व “वैदेही कल्चरल एजुकेशन एंड आर्ट फाउंडेशन” की सराहना करते हुए कहा कि वह उत्तराखंड के लोक-गायन और लोकनृत्य से विशेषकर आज-कल की युवा पीढ़ी को जोड़ने का जो काम कर रहे हैं,उससे उत्तराखंड के लोक कलाकारों को एक मंच प्रदान होने के साथ ही वरिष्ठ कलाकारों को सम्मानित करने का भी सराहनीय कार्य कर रहा है।साथ ही उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने का भी कार्य कर रहा है। अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री ने कहा कि सांस्कृतिक रूप से हमारा प्रदेश अत्यंत ही समृद्ध प्रदेश है,चाहे हम लोकनृत्य की बात करें, चाहे लोक-संगीत की बात करें या अपनी लोक-परंपराओं की बात करें, सांस्कृतिक एवं पारंपरिक रूप से हर क्षेत्र में हमारा प्रदेश विशिष्ट है।
हमारे लोक-संगीत एवं नृत्य में पहाड़ का जीवन, यहां की हरियाली, यहां के मौसम की बात से लेकर हमारे गौरवशाली इतिहास और लोक आस्थाओं तक का जिक्र मिलता है।आज भी छोलिया नृत्य, झोड़ा, चांचरी, बरदा नाटी और न्योली जैसे अनेकों लोकनृत्य हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए हैं। हमारे यहां का बेड़ा गीत, मांगल गीत सहित अनेकों तरह के पारंपरिक गीत जब गाए जाते हैं तो हर कोई झूम उठता है। वहीं ढोल, दमाऊ, हारमोनियम, तुर्री, ढोलकी, भंकोरा और रणसिंहा जैसे वाद्य यंत्रों के जरिए जब धुन निकलती है तो कोई भी पहाड़-वासी खुद को उस गीत की धुन में रमने से रोक नहीं पाता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अब टेक्नोलॉजी का जमाना आ गया है तो सोशल मीडिया के माध्यम से हमारा लोक संगीत उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश विदेश में एक अलग पहचान बना रहा है।हमारे अनेकों लोक कलाकार आज देश-विदेश में अलग-अलग जगहों पर जाकर अपनी प्रस्तुतियों से सबका दिल जीत रहे हैं। आज के युवा भी हमारे लोक संगीत को पसंद करते हैं और उसे आगे बढ़ाने का भी कार्य कर रहे हैं। आज युवा अपना म्यूजिकल बैंड बनाकर उत्तराखंड के लोक-गीतों को नए कलेवर के साथ एक नई पहचान देने का भी कार्य कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखंड की लोक भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए भी निरंतर गंभीर प्रयास कर रही है। सरकार द्वारा लोक भाषाओं व लोक साहित्य में कुमाऊंनी, गढ़वाली, जौनसारी सहित राज्य की अन्य बोलियों व उपबोलियों में दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिए “उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान” भी प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त “विभिन्न भाषाओं में ग्रंथ प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता योजना” के तहत 17 साहित्यकारों को अनुदान भी प्रदान किए गए हैं।
इस प्रकार के पुरस्कार और योजनाएं हमारे लेखकों के लिए अवश्य ही एक उत्प्रेरक का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार पलायन जैसी वृहद समस्या के निराकरण के लिए भी निरंतर प्रयासरत है।
पलायन को रोकने के लिए सरकार प्रदेश में नौकरियों का सृजन करने के साथ ही स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही है।आम लोगों की आजीविका बढाने के उद्देश्य से प्रदेश में दुग्ध उत्पादन, मधु उत्पादन, कृषि, बागवानी, सुगन्धित पौधों और फूलों की खेती, स्थानीय मसालों की खेती और होम स्टे निर्माण आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इसके साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से लखपति दीदी योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय मदद दी जा रही है।आज “लखपति दीदी योजना के अंतर्गत उत्तराखंड में लगभग एक लाख बहनों ने “लखपति दीदी” बनने में सफलता प्राप्त कर ली है। राज्य सरकार द्वारा लॉन्च किए गए “हाउस ऑफ हिमालयाज” ब्रांड के जरिए प्रदेश की बहिनों द्वारा बनाए जा रहे विभिन्न स्थानीय उत्पाद अब विश्व के कोने-कोने तक पहुंच रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि कुमाऊँ द्वार महोत्सव में भी जो पहाड़ी व्यंजनों एवं उत्पादों के स्टॉल लगाए गए हैं, उनमें से कई स्टॉलों पर “महिला स्वयं सहायता समूहों” द्वारा बनाए गए उत्पादों को भी स्थान दिया गया है।
उन्होंने कहा कि आज हल्द्वानी एक महानगर के रूप में तेजी से उभर रहा है।यहां पर स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और नए-नए विश्वविद्यालय खुल रहे हैं।
सड़कें चौड़ी हो रही हैं, चौराहे चौड़े हो रहे हैं, नए-नए पार्क बन रहे हैं। यहां आईएसबीटी और चिड़ियाघर भी जल्दी ही बनने जा रहा है।
आगामी जनवरी-फरवरी में यहां नेशनल गेम्स की स्पर्धाएं भी यहां आयोजित होंगी।
आज हल्द्वानी का चहुंमुखी विकास व विस्तार हो रहा है और अगले एक-दो वर्षों में हल्द्वानी विकास के नए पैमानों को छूता हुआ दिखाई देगा।
उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य या क्षेत्र चाहे जितना विकसित हो जाए लेकिन अगर वो अपनी संस्कृति, अपनी लोककलाओं और संस्कारों को जीवित नहीं रख पाता तो वो क्षेत्र अधूरा ही रहता है। आज उत्तराखंड के लोगों में अपनी संस्कृति, अपनी लोकपरंपराओं और अपनी डेमोग्राफी को संरक्षित रखने प्रति एक जिम्मेदारी की भावना जागृत हो चुकी है। यह पांच दिवसीय “कुमाऊं द्वार महोत्सव” भी हमारी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित एवं संवर्धित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण आयोजन साबित होगा।
इससे पूर्व माननीय मुख्यमंत्री द्वारा दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रमों का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर माननीय सांसद अजय भट्ट, माननीय विधायक
बंशीधर भगत, सरिता आर्या, राम सिह कैड़ा सुरेश गड़िया,डा0 मोहन सिंह बिष्ट,भाजपा जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट,
डा0 जोगेन्द्र पाल सिंह रौतेला, निवर्तमान महापौर डा0 अनिल कपूर डब्बू मा० अध्यक्ष मण्डी परिषद सुरेश भट्ट, मा० उपाध्यक्ष दीपक मेहरा
दिनेश आर्या,अध्यक्ष जिला पंचायत बेला तोलिया, आयुक्त कुमाऊं/सचिव मुख्यमंत्री दीपक रावत,डीआईजी डॉ योगेन्द्र रावत, जिलाधिकारी वंदना,एसएसपी पीएस मीणा,कार्यक्रम संयोजक गोविन्द दिगारी, खुशी जोशी,संरक्षक
नवीन टोलिया,लोक गाईका मैथिली ठाकुर विभिन्न जनप्रतिनिधि,लोक कलाकार,गणमान्य नागरिक,क्षेत्रीय जनता आदि मौजूद रहे।

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