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उत्तराखण्ड

अब मैं वानप्रस्थ आश्रम की ओर अग्रसर हूँ। पुराने जमाने के हिसाब से वन में जाना तो सम्भव और उचित नहीं है डॉ संतोष मिश्र

अपनी बात

आजादी के आंदोलन में देश की स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां छोड़ दीं। अब समय आ गया है कि बेरोजगारी से निपटने के लिए सक्षम लोग स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें। इसी के साथ केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसी नीति बनानी होगी कि ऐसे कर्मचारियों, अधिकारियों की सामाजिक सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित हो सके। जनकल्याणकारी राज्य की अवधारणा के कारण सरकार सभी के लिए पुरानी पेंशन, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा अनिवार्य रूप से लागू करे। यदि कोई स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात भी अपने अनुभवों का लाभ सरकार को देना चाहता है तो उसे सम्मानपूर्वक अवैतनिक पुनर्नियुक्ति अवश्य दी जाय।

अगर युवाओं को समय पर यानी प्रौढ़ होते-होते नहीं बल्कि युवा रहते ही नौकरी मिलने लगे तो विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे नशा, चोरी, छिनैती, मारपीट आदि में स्वतः कमी आ जायेगी। आजकल बेरोजगारी के कारण शादियां भी 35-40 के उम्र में होने लगी हैं। इसका दुष्प्रभाव पूरे सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश पर पड़ता है। सरकार खुद मानती है कि 21 की उम्र शादी के लायक होती है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश युवक-युवतियों को 25 की उम्र तक संतोषजनक जॉब नहीं मिलती। ऐसे में शादी की योजना बनते-बनाते वे प्रौढ़ावस्था को पहुंच जाते हैं। फिर देर से बच्चों का जन्म, उनकी पढ़ाई-लिखाई करते -कराते व्यक्ति बूढ़ा होने लगता है।

मैं 1971 में प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में पैदा हुआ, 1997 में राजकीय महाविद्यालय स्याल्दे, अल्मोड़ा में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में सेवा में आ गया। 15 वर्ष पहाड़ की सेवा के बाद 2012 से अब तक एमबीपीजी हल्द्वानी में अध्यापनरत रहते 2021 में 50 की उम्र में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। मेरा वास्तविक रिटायरमेंट 2036 में है यानी 15 वर्ष और। मेरी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के कारण उच्च शिक्षा में एक पद रिक्त होगा, जो किसी उच्च शिक्षित युवा के लिए सुनहरा अवसर होगा। बेरोजगारी रूपी रावण को परास्त करने के लिए रामसेतु में सहयोग करने वाली गिलहरी की तरह ही मेरा ये कदम है। भारतीय आश्रम व्यवस्था के अनुसार अब मैं वानप्रस्थ आश्रम की ओर अग्रसर हूँ। पुराने जमाने के हिसाब से वन में जाना तो सम्भव और उचित नहीं है, परंतु घर पर रहते हुए समाज, राष्ट्र की बेहतरी के लिए तन, मन, धन से समर्पित होना नये युग का वानप्रस्थ कहा जायेगा।

डॉ. सन्तोष मिश्र

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