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उत्तराखण्ड

जिला न्यायाधीश महोदय के नेतृत्व में गणतंत्र दिवस पर फूड सेफ्टी विषय पर आयोजित कार्यशाला,


नैनिताल माननीय उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल से समय समय पर प्राप्त निर्देशों के अनुपालन में माननीय जिला न्यायाधीश महोदय अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल श्री सुबीर कुमार जी के मार्गदर्शन में सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल श्रीमती बीनू गुलयानी द्वारा जिला फूड सेफ्टी विभाग के सहयोग से न्यायालय परिसर में न्यायाधीशगण,अधिवक्ता गण, कर्मीगण हेतु प्रशिक्षण /जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें जिला फूड सेफ्टी विभाग से डी ओ श्री संजय कुमार जी द्वारा प्रतिभागियों को जागरूक किया किया गया कि किस प्रकार से फूड हमारे सेहत पर प्रभाव डालता है, किस प्रकार की डाइट को आई सी सी एम आर द्वारा प्रमाणित किया गया है,कौनसे आहार भोजन में शामिल करने चाहिए और किस तरह के पदार्थों से बचना चाहिए।कार्यशाला में एडल्ट्रेशन,मिसब्रांडिंग आदि विषय,फूड लोगों,फोर्टीफाइड एवं ऑर्गेनिक डाइट, बाज़ार में समान खरीदते समय किन बातों पर ध्यान देने है,लेबल पर क्या पढ़ना है,किन बातों का विशेष ध्यान रखना है,कब मामले की रिपोर्टिंग करनी है,कैसे करनी है, घर पर खाना बनाने में किन बातों पर ध्यान देना है,होटल में खाना खाने समय किन बातों पर ध्यान देना होगा,आदि विषयों पर विस्तारित जानकारी प्रदान की। कार्यशाला में माननीय जिला न्यायाधीश महोदय , आदरणीय न्यायाधीशगण में प्रथम अपर जिला न्यायाधीश श्री विक्रम,अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रीमती नेहा कुशवाहा,सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्रीमती बीनू गुलयानी, सिविल जज जूनियर डिविजन श्रीमती तनुजा , डी जी सी श्री सुशील कुमार, सी एल ए डी सी श्री सोहन तिवारी ,अन्य विद्वान अधिवक्तागण ,कर्मीगण एवं पी एल वी उपस्थित रहे।

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    भक्ति का सुगंध बिखेरते हुए 58वें निरंकारी सन्त समागम का सफलतापूर्वक समापन

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    जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति में निहित है सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हल्द्वानी ‘‘जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति में निहित है।’ये उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 58वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के तीसरे एवं समापन दिवस पर लाखों की संख्या में उपस्थित मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। इस तीन दिवसीय समागम का कल रात विधिवत रूप में सफलता पूर्वक समापन हो गया। सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि मनुष्य जीवन को इसलिए ऊँचा माना गया है, क्योंकि इस जीवन में आत्मज्ञान प्राप्त करने की क्षमता है। परमात्मा निराकार है, और इस परम सत्य को जानना मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए। अंत में सतगुरु माता जी ने फरमाया कि जीवन एक वरदान है और इसे परमात्मा के साथ हर पल जुड़कर जीना चाहिए। जीवन के हर पल को सही दिशा में जीने से ही हमें आत्मिक सन्तोष एवं शान्ति मिल सकती है, हम असीम की ओर बढ़ सकते हैं। इसके पूर्व समागम के दूसरे दिन सतगुरु माता जी ने अपने अमृत वचनों में कहा कि जीवन में भक्ति के साथ कर्तव्यों के प्रति जागरुक रहकर संतुलित जीवन जियें यह आवाहन सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने पिंपरी पुणे में आयोजित 58वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के दूसरे दिन शाम को सत्संग समारोह में विशाल रूप में उपस्थित श्रद्धालुओं को किया। सतगुरु माताजी ने फरमाया कि जैसे एक पक्षी को उड़ने के लिए दोनों पंखों की आवश्यकता होती है, वैसे ही जीवन में भक्ति के साथ साथ अपनी सामाजिक एवं पारिवारिक जिम्मदारियों को निभाना अति आवश्यक है। यदि कोई केवल भक्ति में ही लीन रहते हैं और कर्मक्षेत्र से दूर भागने का प्रयास करते हैं तो जीवन संतुलित बनना सम्भव नहीं। दूसरी तरफ भक्ति या आध्यात्मिकता से किनारा करते हुए केवल भौतिक उपलब्धियों के पीछे भागने से जीवन को पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। सतगुरु माताजी ने आगे समझाया कि वास्तव में भक्ति और जिम्मेदारियों का निर्वाह का संतुलन तभी सम्भव हो पाता है जब हम जीवन में नेक नीयत, ईश्वर के प्रति निष्काम निरिच्छित प्रेम और समर्पित भाव से सेवा का जज्बा रखें। केवल ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना काफी नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन में अपनाना भी आवश्यक है। एक उदाहरण के द्वारा सतगुरु माता जी ने समझाया कि जैसे कोई दुकानदार अपने काम को पूरी ईमानदारी और संतुलन के साथ करता है, ग्राहक को मांग के अनुसार सही नापतोल करके माल देता है और उसका उचित मूल्य स्वीकारता है। अपने कार्य में पूरी तरह से संतुलन बनाए रखता है। इसी तरह भक्त परमात्मा से जुड़कर हर कार्य उसके अहसास में करता रहता है, सत्संग सेवा एवं सिमरण को प्राथमिकता देता है, यही वास्तविकता में भक्ति का असली स्वरूप है। इसके पहले आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने विचारों में कहा कि भक्ति का उद्देश्य परमात्मा के साथ एक प्रेमपूर्ण नाता जोड़ने का हो। इसके लिए संतों का जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत होता है जो हमें अपनी आत्मा का मूल स्वरूप परमात्मा को जानकर जीवन का विस्तार असीम सच्चाई की ओर बढ़ाने की शिक्षा देता है। आपने बताया कि हमें अपनी आस्था और श्रद्धा को सच्चाई की ओर मोड़ना चाहिए और हर पल कदम में परमात्मा के प्रेम को महसूस करना चाहिए तभी सही मायनो में भक्ति का विस्तार सार्थक होगा। समागम की कुछ झलकियां कवि दरबार             समागम के तीसरे दिन एक बहुभाषी कवि दरबार का आयोजन किया गया जिसमें जिसका विषय था ‘विस्तार – असीम की ओर।’महाराष्ट्र के अतिरिक्त देश के विभिन्न स्थानों से आए हुए 21 कवियों ने मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, कोंकणी, भोजपुरी आदि भाषाओं में इस कवि दरबार में काव्य पाठ करते हुए मिशन के दिव्य सन्देश को प्रसारित किया। श्रोताओं द्वारा कवियों की भूरि भूरि प्रशंसा की गई।             मुख्य कवि दरबार के अतिरिक्त समागम के पहले दिन बाल कवि दरबार एवं दूसरे दिन महिला कवि दरबार का आयोजन लघु रूप में किया गया। इन दोनों लघु कवि दरबार कार्यक्रमों में मराठी, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं के माध्यम से 6 बाल कवि एवं 6 महिला कवियों ने काव्य पाठ किया जिसकी श्रोताओं द्वारा अत्यधिक प्रशंसा की गई।  निरंकारी प्रदर्शनी...

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