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उत्तराखण्ड

यूपी-उत्तराखंड इकोनॉमिक एसोसिएशन सम्मेलन का दूसरा दिन: समकालीन आर्थिक विषयों पर हुआ विमर्श,,,


पवनीत सिंह बिंद्रा

हल्द्वानी उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय में उत्तराखंड इक्नॉमिक्स एसोसिएशन का। दूसरे दिन पर आर्थिक विषयों पर विचार विमर्श हुआ,एवं। विकसित भारत @2047: नीति, परंपरा और प्रगति पर केंद्रित रहा सम्मेलन का दूसरा दिन”
भारत: नौकरी नहीं, नवाचार की भूमि था- प्रो. एम. के. अग्रवाल। उद्यम ही संस्कृति थी: भारत एक उद्यमियों का देश था- प्रो. मनमोहन कृष्ण

अब समय आ गया है जब हम सिर्फ नीतियों की नकल नहीं, बल्कि अपने स्वयं के आर्थिक मॉडल की तलाश और स्थापना की दिशा में गंभीरता से सोचें। विकसित भारत के विभिन्न घटकों—जैसे आत्मनिर्भरता, रोजगार सृजन, स्वदेशी उत्पादन, सतत विकास, सामाजिक समावेशिता और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था पर आज काम करने की जरूरत है. ये कहना है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. एम. के. अग्रवाल का। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने ऐतिहासिक अनुभव, सांस्कृतिक विरासत और वर्तमान संसाधनों को समझते हुए एक भारतीय संदर्भ में विकास का रास्ता अपनाएं, तभी सच्चे अर्थों में ‘विकसित भारत’ की परिकल्पना साकार हो सकेगी। उन्होंने ये बात उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी में आयोजित तीन दिवसीय 21वें यूपी-उत्तराखंड इकोनॉमिक एसोसिएशन (UPUEA) के राष्ट्रीय सम्मेलन में कही। सम्मेलन के दूसरे दिन विविध विषयों पर केंद्रित पैनल चर्चाओं, स्मृति व्याख्यानों और तकनीकी सत्रों के साथ अत्यंत सक्रिय और विचारोत्तेजक रहा।
दिन की शुरुआत प्रातः 10:30 बजे समानांतर पैनल चर्चाओं से हुई। पांच प्रमुख विषयों—पारिस्थितिकीय स्थिरता, आजीविका सुरक्षा, राजकोषीय और वित्तीय स्थिरता, भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं अर्थव्यवस्था, तथा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का सतत विकास पर सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में देश भर से आए प्रतिष्ठित प्रोफेसरों, नीति-विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।
सत्रों की अध्यक्षता और समन्वयन करने वालों में प्रो. गीता सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. डिंपल विज (एकेपी पीजी कॉलेज, खुर्जा), प्रो. संधीर शर्मा (चिटकारा विश्वविद्यालय, पंजाब), प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी (कुलपति, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर), और प्रो. मनमोहन कृष्ण (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) जैसे वरिष्ठ शिक्षाविद शामिल रहे। पैनल चर्चाओं में भाग लेने वाले प्रमुख वक्ताओं प्रो. शांति कुमार (जेएनयू, दिल्ली), प्रो. अनीता चौधरी (डीएसएमएनआरयू, लखनऊ), प्रो. राजेन्द्र पी. ममगाईं (दून विश्वविद्यालय, देहरादून), श्री अजय कुमार गुप्ता (सीईओ, सेंचुरी पल्प एंड पेपर, लालकुआँ), प्रो. शैलेंद्र कुमार, प्रो. जी.एम. दुबे, प्रो. एल.सी. मल्लैया, प्रो. यशवीर त्यागी, प्रो. बद्री नारायण, प्रो. दुर्गेश पंत सहित अनेक गणमान्य विशेषज्ञ शामिल रहे। दोपहर 12:30 बजे प्रो. एस.के. मिश्रा स्मृति व्याख्यान आयोजित हुआ, जिसमें प्रो. मनोज कुमार अग्रवाल (पूर्व विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र, लखनऊ विश्वविद्यालय) ने विकसित भारत @2047 की अवधारणा पर गहन चर्चा की। सत्र की अध्यक्षता प्रो. ए.पी. पांडेय ने की।
दोपहर उपरांत दो तकनीकी सत्रों में 15-15 शोध-पत्रों का वाचन हुआ, जो पांचों प्रमुख विषयों पर केंद्रित थे। इन सत्रों का समन्वयन डॉ. बीना टम्टा, डॉ. लता जोशी, डॉ. सुमित प्रसाद, प्रो. कमल देवलाल, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. नियति रावत, डॉ. सचिन दुबे, आदि ने किया। उक्त सत्रों में प्रो. भारती पाडे, प्रो. के. एम भट्ट, प्रो. अंग्रेजी राणा, प्रो. साहब सिंह, प्रो. दुष्यंत कुमार, कुमार रितु तवारी मौजूद रहे और कैसे जैविक की ओर बढ़कर हम भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बना सकते हैं इस पर बात हुई। शाम को 6:10 बजे यूपीयूईए की जनरल बॉडी मीटिंग और फिर कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें कवियों ने सामाजिक-आर्थिक सरोकारों को रचनात्मक अभिव्यक्ति दी।
रात्रिभोज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
सम्मेलन में देशभर के विश्वविद्यालयों से आए लगभग 100 से अधिक शोधार्थियों, शिक्षकों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। आयोजन समिति के संयोजन में प्रो. मंजीरी अग्रवाल (सम्मेलन संयोजक) और प्रो. विनोद कुमार श्रीवास्तव (महासचिव, यूपीयूईए) की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
सम्मेलन का समापन समारोह और अंतिम सत्र (29 जून 2025):
सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन 29 जून को प्रातः 9:30 बजे से समानांतर तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे , जिनमें पारिस्थितिकीय स्थिरता, आजीविका सुरक्षा, वित्तीय स्थिरता, भारतीय ज्ञान प्रणाली और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के सतत विकास जैसे विषयों पर कुल 75 शोधपत्र प्रस्तुत किए। इलाहाबाद विवि के विभागाध्यक्ष प्रो. एम. के. अग्रवाल को संस्था के द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया।
अधिवेशन के दूसरे दिन प्रो. सनातन नायक, प्रो. डिंपल विज, डा. शैलेन्द्र कुमार, डा. सुरजीत सिंह, डा. विकास प्रधान, प्रो. निधइ शर्मा, प्रो. भारती पांडे, प्रो. गदीश सिंह, प्रो आई.डी. गुप्ता, प्रो. एस.पी. सिंह, प्रो. मनोज अग्रवाल, प्रो. मनोज कुमार प्रो. मनमोहन कृष्ण, प्रो. नूप मिश्रा डा. दिनेश गुप्ता,डा. यू.आर. यादव, डा. स्वाति टम्टा, डा. एन. एस. बिष्ट संस्था के उत्तराखंड के सचिव डा. एन.ए. बिष्ट, समेत उत्तराखंड मुक्त विवि के प्रोफेसर्स मौजूद रहे।
बाक्स
“भारत हमेशा से उत्पादकों का देश रहा है। हमारी 4000 वर्ष पुरानी संस्कृति में आर्थिक उत्पादन का एक अत्यंत समावेशी और सहभागिता पर आधारित मॉडल विकसित था। लेकिन दुर्भाग्यवश, हमने अपनी उस गौरवशाली परंपरा को भुलाकर पश्चिम के मात्र 200 वर्ष पुराने उपभोगवादी मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप, आज विदेशी कंपनियां भारत से भारी मुनाफा कमा रही हैं, जबकि हम अपने स्वदेशी आर्थिक मूल्यों और आत्मनिर्भरता की जड़ों से दूर होते जा रहे हैं।”- प्रो. मनमोहन कृष्ण

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