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उत्तराखण्ड

मीरी पीरी दे मालिक गुरु हरगोविंद साहिब जी का प्रकाश पर्व बडी धूम धाम से मनाया गया ।

हल्द्वानी आज गुरुद्वारा गुरुनानक पूरा में मीरी पीरी दे मालिक गुरु हरगोविंद सिंह जी द 427वा।प्रकाश पर्व मनाया गया । जिसमे सर्वप्रथम गुरुद्वारा गुरुनानक पूरा के हजूरी रागी जत्था भाई प्रभु सिंह खालसा ने कीर्तन गायन करते हुए संगत को निहाल कर दिया एवम नूर पूर पंजाब से आए रागी जत्था। सरबजीत सिंह ने कीर्तन गायन करते हुए गुरु हर गोविंद साहिब की बाणी से संगत को निहाल कर दिया तथा हैदराबाद से आए कथा वाचक भाई गुरदित।सिंह जी गुरु हर गोविंद साहिब जी के जीवन में प्रकाश डालते हुए कहा कि छठवे गुरु,, गुरु गोविंद । सिंह साहिब जी का जन्म पंजाब बडाली (अमृतसर, भारत) में हुआ था। वे सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन सिंह के पुत्र थे। उनकी माता का नाम गंगा था।उन्होंने अपना ज्यादातर समय युद्ध प्रशिक्षण एवं युद्ध कला में लगाया तथा बाद में वे कुशल तलवारबाज, कुश्ती व घुड़सवारी में माहिर हो गए। उन्होंने ही सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया। वे स्वयं एक क्रांतिकारी योद्धा थे। गुरु हर गोविंद एक परोपकारी योद्धा थे। उनका जीवन-दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुड़ा हुआ थारु हर गोविंद सिंह ने अकाल तख्त का निर्माण किया था। मीरी पीरी तथा कीरतपुर साहिब की स्थापनाएं की थीं। उन्होंने रोहिला की लड़ाई, कीरतपुर की लड़ाई, हरगोविंदपुर, करतारपुर, गुरुसर तथा अमृतसर- इन लड़ाइयों में प्रमुखता से भागीदारी निभाई थी। वे युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरु थे। उन्होंने सिखों को युद्ध कलाएं सिखाने तथा सैन्य परीक्षण के लिए भी प्रेरित किया था।हर गोविंद जी ने मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित अनुयायियों में इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पैदा किया। मुगलों के विरोध में गुरु हर गोविंद सिंह ने अपनी सेना संगठित की और अपने शहरों की किलेबंदी की। उन्होंने ‘अकाल बुंगे’ की स्थापना की। ‘बुंगे’ का अर्थ होता है एक बड़ा भवन जिसके ऊपर गुंबज हो। उन्होंने अमृतसर में अकाल तख्त (ईश्वर का सिंहासन, स्वर्ण मंदिर के सम्मुख) का निर्माण किया। इसी भवन में अकालियों की गुप्त गोष्ठियां होने लगीं। इनमें जो निर्णय होते थे उन्हें ‘गुरुमतां’ अर्थात् ‘गुरु का आदेश’ नाम दिया गया।
इस कालावधि में उन्होंने अमृतसर के निकट एक किला बनवाया तथा उसका नाम लौहगढ़ रखा। दिनोंदिन सिखों की मजबूत होती स्थिति को खतरा मानकर मुगल बादशाह जहांगीर ने उनको ग्वालियर में कैद कर लिया। गुरु हर गोविंद 12 वर्षों तक कैद में रहे, इस दौरान उनके प्रति सिखों की आस्था और अधिक मजबूत होती गई।वे लगातार मुगलों से लोहा लेते रहे। रिहा होने पर उन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी और संग्राम में शाही फौज को हरा दिया। अंत में उन्होंने कश्मीर के पहाड़ों में शरण ली, जहां सन् 1644 ई. में कीरतपुर (पंजाब) में उनकी मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से ठीक पहले गुरु हर गोविंद ने अपने पोते गुरु हरराय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस दौरान गुरु के लंगर बरताया गया संचालन भाई अमरजीत सिंह आनंद ने किया इस दौरान अमरजीत सिंह बिंद्रा परमजीत सिंह शंटी नरेंद्र जीत सिंह कोहली प्रिंस कोहली जसपाल कोहली बलबीर सिंह मारवाह कवलजीत सिंह कोहली। दलीप सिंह आदि गुरु की संगत उपस्थित थे।

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