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उत्तराखण्ड

“कल फिर जब सुबह होगी”‘ का विमोचन 12 अगस्त को देहरादून स्थित संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में सायं 4 बजे।,,

गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी की गीत यात्रा के 50 बरस और जीवन यात्रा के 75 बरस पर साहित्यकार ललित मोहन रयाल की पुस्तक ‘कल फिर जब सुबह होगी’ का विमोचन 12 अगस्त को देहरादून स्थित संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में सायं 4 बजे। साहित्यकार ललित मोहन रयाल की विभिन्न विधाओं में अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिन्हें पाठकों का भरपूर प्यार मिला। खड़कमाफी की स्मृतियों से, अथश्री प्रयाग कथा, कारी तु कब्बि ना हारी, चाकरी चतुरंग। इसके साथ ही समय-समय पर लेखकों, कृतियों पर आधारित उनके लेख संपादित पुस्तकों में प्रकाशित होते रहते हैं। श्री रयाल ने कुशल समीक्षक के रूप में कई पुस्तकों की सारगर्भित समीक्षाएं भी की हैं। लेखक ललित मोहन रयाल के कई साक्षात्कार यूट्यूब चैनलों पर सहज उपलब्ध हैं।

ललित मोहन रयाल की नवीनतम कृति कल फिर जब सुबह होगी पर संजीव कंडवाल लिखते हैं कि सांस्कृतिक पहचान के संकट के बीच हमारे लोकगायक व लोकनायक नरेंद्र सिंह नेगी इसी चौमासा में अपनी दुधबोली में लेखन कार्य के 50 बरस पूरे करने जा रहे हैं। नागरिक समाज की ओर से कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और लेखक ललित मोहन रयाल, नेगी जी के 50 साल के रचनाक्रम पर पुस्तक लेकर आ रहे हैं।
कल फिर जब सुबह होगी पुस्तक लेखन हेतु रयाल जी ने करीब डेढ़ बरस दिए, लेखक ने इस दौरान अपने प्रिय कवि के एक-एक गीत को कई बार जिया, एक-एक लाइन को कई बार बींगा और फ्लैशबैक में जाकर उसे जेहन में उतारा। लेखक यहां तक पहुंचे कि ‘बरखा झुकी ऐगे’ गीत में कितनी बार ‘अरा अरा, सरा ररा, गरा ररा, झरा ररा’ आता है और वो हर बार क्या फील देता है?
लेखक ने नेगी जी के रचना समुद्र से चुनिंदा 101 मोती छांटे हैं, और उन्हें ‘डाल्यी’ और ‘डाली’ में अंतर नहीं कर पाने वाली पीढ़ी को समझाने का प्रयास किया है।
एक ओर मनोज कुमार रतूड़ी रयाल जी की इस रचना को उत्तराखण्ड रत्नावली कहते हुए इसकी सराहना करते हैं तो दूसरी ओर प्रदीप कुकरेती का मानना है कि वाकई नरेंद्र सिंह नेगी जी हमारे गौरव हैं औऱ ललित मोहन रयाल जी द्वारा जिन मोतियों को चुनकर एकत्र किया है वह काबिलेतारीफ होगा हमें पूर्ण विश्वास है।
कैलाश कंडवाल का अभिमत है कि नरेन्द्र सिंह नेगी जी एक पूरा स्कूल हैं, किस मौसम, किस उत्सव, किस लोकजीवन के अंश पर नहीं लिखा। सभी पर लिखे और गाए गीत कर्णप्रिय रहे हैं। विजेंद्र रयाल अपनी बात कुछ यूं रखते हैं कि शब्दों की पहचान और उनकी गुणवत्ता का ज्ञान एवं मोतियों की माला में सही क्रम में पिरोकर रखना ही आपकी गूढ़ विशेषता है। पहाड़ी संस्कृति को श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतों के माध्यम से प्रकाशन के द्वारा जनमानस के मध्य लाने हेतु ललित मोहन रयाल जी का साधुवाद और अभिनन्दन।

प्रो सुधारानी उपाध्याय लिखती हैं कि ललित मोहन रयाल जी स्वयं संवेदनशील लेखक हैं और लोक भाषा साहित्य के मर्मज्ञ महान गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी के कृतित्व का आकलन ललित जैसे सृजनशील अध्येता की लेखनी से ही संभव है।
हेम शंकर मैंदोला इस अवसर पर कहते हैं कि
रयाल साहब बहुत सुंदर और उल्लेखनीय प्रयास च यू आपकू। आप प्रशासनिक दायित्वों का दगड़मा लोक साहित्य की भी सेवा करणा छौ, निस्संदेह साधुवाद का पात्र छन आप। मेरी शुभकामनाएं। जगदीश भण्डारी नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि अगर आप गढ़वाल की संस्कृति के बारे में जानना चाहते हैं तो केवल उनके गाने, कविताएं सुन लें। चली भे मोटर चली येक सबसे अछू उदाहरण च। बसों में ओवरलोड, बीड़ी, सिगरेट से परेशानी, क्लीनर से ड्राइविंग,फौजियों की रम लाने से खुश ग्रामीण और उसके मिलने की आस में संदूक को उठाना आदि आदि। न भूतो न भविष्यति। बद्री विशाल नेगीजी को दीर्घायु करें। जेपी रतूड़ी का मानना है कि एक प्रतिभा ने दूसरी प्रतिभा को अंलकृत किया है। कमला पंत को आशा है कि कल फिर जब सुबह होगी तभी दुनिया देख पायेगी इन गीतों की उजास।

अनिल रतूड़ी लिखते हैं कि इस पुस्तक के लेखक श्री ललित मोहन रयाल आईएएस उत्तराखण्ड ने श्री नरेन्द्र सिंह नेगी के समग्र गीत-संसार में से, ऐसे 101 प्रतिनिधि गीतों को चुनकर शामिल किया है, जो नेगी जी के रचनात्मक विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन गीतों में निहित भावनाओं-विचारों पर गहन शोध करके लेखक ने पर्वतीय परिवेश, जनजीवन, संस्कृति जैसे विषयों को सरल, पठनीय और रुचिकर तरीके से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक प्रदेशवासियों, प्रवासियों को रुचिकर लगेगी। खास तौर पर उन विद्यार्थियों, सौंदर्यशास्त्रियों के लिए यह पुस्तक उपयोगी साबित होगी, जो मानव मन की सार्वभौमिक अभिव्यक्ति में रुचि रखते हैं।

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