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उत्तराखण्ड

सैन्य धाम भाजपा सरकार का ढोंग: बल्यूटिया



भाजपा सरकार शहीद सैनिक व अर्धसैनिक परिवारों का कर रही अपमान:बल्यूटिया

हलद्वानी राज्य के शहीद परिवारों को मिलने वाली 10 लाख रुपये की एकमुश्त अनुग्रह अनुदान राशि को न देने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लगाया जोर। अगली तारीख 15 अप्रैल में
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया ने सैनिक कल्याण मंत्री के बयान “ देहरादून में बन रहा सैन्य धाम” को भाजपा का ढोंग बताया।
बल्यूटिया ने कहा कि यदि सरकार सैनिक परिवारों की इतनी ही हिमायती है तो शहीद सैनिकों एवं अर्धसैनिकों के परिवारों को मिलने वाली 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि में क्यों रोक लगाई और अब सरकार शहीद सैनिक परिवारों के आश्रितों को उनके अधिकार से वंचित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पूरी ताकत से पैरवी कर रही दूसरी तरफ सैन्य धाम का नाटक कर रही है।
बल्यूटिया ने कहा कि यदि सरकार सही मायने में सैनिक परिवारों के कल्याण की बात करती है तो सबसे पहले मा० सर्वोच न्यायालय में सहीद सैनिक व अर्धसैनिक परिवारों को मिलने वाले 10 लाख रुपये के अधिकार में रोक लगाने हेतु अपनी पैरवी बंद करे।
बल्यूटिया ने कहा कि धामी सरकार 2014 से पहले शहीद हुए सैनिकों को शहीद नहीं मानती जबकि मा० उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि शहीद की शहादत का पैमाना तारीख नहीं हो सकता। शहीद तो शहीद ही है चाहे 2014 से पहले हो या बाद ।
बल्यूटिया ने कहा कि भाजपा सरकार ने शहीद सैनिकों व अर्धसैनिक के परिवारों का अपमान किया है।
बल्यूटिया ने कहा है कि धामी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल राज्य के शहीद सैनिकों एवं अर्धसैनिकों के परिवारों के लिए बेहद निराशा और अपमानजनक रहा। इस सरकार ने पहले शहीद सैनिकों एवं अर्धसैनिकों के परिवारों को मिलने वाली 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि को बंद किया और अब सुप्रीम कोर्ट में इसे पूर्णत: बंद करने के लिए जोर लगा रही है।
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता बल्यूटिया ने कहा कि मार्च 2014 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विभिन्न युद्धों व सीमांत झड़पों तथा आंतरिक सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों व अर्धसैनिक बलों की वीर नारियों एवं आश्रितों को एकमुश्त 10 लाख रुपये की अनुग्रह अनुदान राशि अनुमन्य कराए जाने का शासनादेश जारी किया था। यह राशि राज्य सरकार की ओर से पूरे जीवन काल में एक बार दिए जाने को राज्यपाल की ओर से स्वीकृति प्रदान की गई थी। शासनादेश के अनुसार शहीद की वीर नारी को 6 लाख तथा माता-पिता को 4 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान था। माता पिता के जीवित नहीं होने पर पूरी राशि वीर नारी को तथा वीर नारी के जीवित ना होने पर 4 लाख रुपये माता-पिता को तथा 6 लाख रुपये शहीद के बच्चों में बराबर बांटने का प्रावधान है। शहीद के माता-पिता और पत्नी के जीवित न होने पर पूरी राशि बच्चों में बराबर बांटने का प्रावधान है। शहीद के अविवाहित होने पर पूरी राशि माता-पिता को दी जाती है।
बल्यूटिया ने कहा कि 5 मार्च 2014 को शासनादेश लागू होने के बाद से कई शहीदों की वीर नारियों और आश्रितों को सरकार की ओर से यह राशि प्रदान की गई। हैरानी की बात यह है कि इस अनुग्रह अनुदान राशि को पाने के लिए शहीदों की वीर नारियों और आश्रितों की संख्या बढ़ने पर राज्य की भाजपा सरकार ने 5 मार्च 2014 से पहले शहीद हुए राज्य के शहीदों को इसका लाभ देने पर रोक लगा दी।
राज्य में शहीदों को दो श्रेणी में बांटने वाले इस दोहरे मापदंड के खिलाफ कुछ शहीद परिवारों के आश्रितों ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी। इस पर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता शहीद परिवारों के आश्रितों को भी इस योजना का लाभ देने के आदेश पारित किए थे। सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के बजाय वह इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। सैन्य धाम का ढकोसला करने वाली भाजपा सरकार अब इस केस को सुप्रीम कोर्ट में जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होनी है। इससे पहले ही भाजपा सरकार ने
जनवरी 2021 में 5 मार्च 2014 के शासनादेश को ही संशोधित कर दिया। नए अध्यादेश (उत्तराखंड शहीद आश्रित अनुग्रह अनुदान अधिनियम 2020) के अनुसार इसे 5 मार्च 2014 अथवा उसके बाद शहीद हुए सैनिकों के लिए लागू कर दिया। अब यदि राज्य की भाजपा सरकार अपने मिशन में सफल हो जाती है तो प्रदेश में 5 मार्च 2014 से पहले शहीद हुए अमर जवान शहीदों के आश्रितों को 10 लाख रुपये की एकमुश्त अनुमन्य अनुग्रह अनुदान राशि से वंचित होना पड़ेगा। जिस कारण राज्य के सैन्य परिवारों और शहीदों के परिवारों में प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रोश हैं। बल्यूटिया ने कहा कि सरकार राज्य को सैनिक धाम बनाने का नाटक कर रही है। भाजपा की कथनी और करनी में काफी अंतर है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा राज्य के सैनिकों के हित में खड़ी रहे ,,

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