उत्तराखण्ड
सांसद अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर क्लीनिकल अवस्थापना अधिनियम 2010 सीईए में कैबिनेट से स्वीकृति दिए जाने को लेकर पत्र सौंपा,,
केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्यमंत्री व नैनीताल उधम सिंह नगर संसदीय क्षेत्र से सांसद अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर क्लीनिकल अवस्थापना अधिनियम 2010 सीईए में कैबिनेट से स्वीकृति दिए जाने को लेकर पत्र सौंपा है।
श्री भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखते हुए कहा है कि उत्तराखंड में क्लीनिकल अवस्थापना अधिनियम 2010 लागू है, इस अधिनियम द्वारा प्रदेश के समस्त निजी क्लीनिक/ अस्पताल और लैब अस्थाई रूप से पंजीकृत हैं। इसके इतर हमारे पड़ोसी राज्यों में पंजाब, हरियाणा में भी उपरोक्त अधिनियम में 50 बेड से ऊपर वाले अस्पताल को ही पंजीकृत किया है। उत्तर प्रदेश और बिहार में 50 बेड के अस्पतालों को इस अधिनियम से अवमुक्त कर दिया है। तथा दोनों सरकारों ने सैद्धांतिक सहमति भी जताई है। पूर्व में उपरोक्त विषय पर आईएमए के पदाधिकारियों को आश्वस्त किया गया है कि राज्य के छोटे अस्पतालों को क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में छूट दी जाएगी, और शीघ्र इस प्रस्ताव को कैबिनेट में लाया जाएगा। जिस संदर्भ में आईएमए के पदाधिकारियों के हित में निर्णय भी दिया गया था, परंतु कोविड-19 एवं विधानसभा चुनाव होने के कारण इस पर कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाई। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यथासंभव इस एक्ट पर जल्द ही निर्णय दे दिया जाएगा, क्योंकि सभी चिकित्सक इस मुद्दे पर जल्दी ही फैसला करने का अनुरोध कर रहे हैं जो कि न्यायोचित भी है।
श्री भट्ट ने पत्र में लिखा है कि पूर्व में दूरभाष पर हुई वार्ता के क्रम में आपको अवगत कराया गया है कि, इस प्रकरण में शीघ्र ही कैबिनेट में लाकर उत्तराखंड व स्थापना अधिनियम 2010 में कड़े प्रावधानों में छूट दी जाएगी। पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत रखते हुए शीघ्र ही इस पर निर्णय लेना उचित होगा। श्री भट्ट ने कहा कि उनके द्वारा स्वयं आईएमए के पदाधिकारियों के डेलिगेशन से बतौर प्रदेश अध्यक्ष होने के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री से भेंट की उस समय प्रकरण को सुलझा भी लिया था। परंतु अनावश्यक रूप से विलंब होने के कारण आई एम ए के कई साथियों को थोड़ी परेशानी जरूर हुई, 23 सितंबर 2022 को भी आईएमए के पदाधिकारियों के डेलिगेशन ने मुझेसे भेंट की, उन्होंने फिर अवगत कराया कि एक्ट में विचार-विमर्श किया जाए। श्री भट्ट ने पत्र में लिखा है कि कोविड-19 के दौर में जब लोग अपनों से दूरी बनाए हुए थे, तब चिकित्सकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा की और राज्य के दूरस्थ क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और चिकित्सकों की कमी है। यही प्राइवेट हॉस्पिटल दूरस्थ क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देते हैं। ऐसे में उत्तराखंड जैसे छोटे प्रदेश में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को स्थगित रखा जाना चाहिए। एक्ट में जिस तरह के कड़े प्रावधान है उसे पर्वतीय राज्य के छोटे-छोटे क्लीनिक एवं नर्सिंग होम एकाएक बंद हो सकते हैं। तथा पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी, श्री भट्ट ने पत्र में लिखा है कि पूर्व में उनके द्वारा इस विषय को संसद में भी उठाया गया था, और व्यक्तिगत रूप से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी से भी भेंट की थी और एक्ट में छूट प्रदान करने पर राज्य सरकार पूर्ण रूप से सक्षम है केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने यह अवगत कराया था।
केंद्रीय मंत्री श्री भट्ट ने लिखा है कि उनके संज्ञान में लाना है कि देहरादून स्वास्थ्य मंत्रालय से पूछने पर अवगत कराया गया है कि लगभग तीन-चार महीने पूर्व मंत्रालय द्वारा कैबिनेट में लाने हेतु आपके सचिवालय को प्रस्ताव भेजा गया है, कैबिनेट से उक्त एक्ट में संशोधन के आदेश पारित होने के कारण चिकित्सकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अतः क्लीनिकल अवस्थापना अधिनियम से संबंधित संशोधनों को कैबिनेट से स्वीकृति दिलाना बेहद आवश्यक है जिससे कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके।