उत्तराखण्ड
नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट’ द्वारा यहां आयोजित एक संगोष्ठी में पत्रकारों ने राज्य आंदोलन में मीडिया कवरेज के अनुभव और आंदोलन में उनकी भूमिका पर विचार साझा किये।,,
हरिद्वार। उत्तराखंड के मीडियाकर्मियों की प्रमुख संस्था ‘नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट’ द्वारा यहां आयोजित एक संगोष्ठी में पत्रकारों ने राज्य आंदोलन में मीडिया कवरेज के अनुभव और आंदोलन में उनकी भूमिका पर विचार साझा किये।
नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (एनयूजे उत्तराखंड) की हरिद्वार जनपद इकाई द्वारा राज्य आंदोलन की कहानी, कलमकारों की जुबानी विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अपनी लेखनी से योगदान देने वाले पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी एक मंच पर जुटे।
अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवल और उनके पुष्पाभिनन्दन के साथ आरंभ हुए कार्यक्रम में
यूनियन के जिलाध्यक्ष प्रमोद कुमार पाल ने अपनी कार्यकारिणी के साथ अतिथियों का स्वागत करते हुए अतिथियों के सम्मान में स्वागत संबोधन प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए राज्य आंदोलन के दौर में अमर उजाला और हिमालय दर्पण को अपनी सेवाएं दे चुके वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल ने नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स द्वारा मीडिया के माध्यम से आयोजित इस परिचर्चा को एक अच्छी शुरुआत बताते हुए कहा कि उस समय आंदोलन में जो घट रहा था हमने उस सच्चाई को देश दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा हमने कोई अहसान नहीं किया बल्कि जनता तक वास्तविकता पहुंचाने के लिए अपने कर्तव्य का पालन किया। उन्होंने कहा कि आन्दोलन तो उत्तराखंड को विरासत में मिले हैं। इनमें आजादी का आंदोलन हो या राजशाही के विरुद्ध आंदोलन हो या सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए चला राज्य आंदोलन हो। श्री डोभाल ने कहा कि राजधानी के मामले में “गैरसैंण” हमारे लिए “गैर” हो गया है क्योंकि छत्तीसगढ़ और झारखंड के मुकाबले 22 साल में सरकार उत्तराखंड को एक स्थाई राजधानी नहीं दे पाई है।
देश की प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी पीटीआई की संवाददाता रही श्रीमती शशि शर्मा ने राज्य आंदोलन के दौर की पत्रकारिता में, समाचार संकलन और प्रेषण में आने वाली कठिनाईयों के साथ मसूरी गोलीकांड और हरिद्वार में चले वृहद आंदोलन का संस्मरण बयां किया। उन्होंने मसूरी में गोली चलने के बाद अपने छायाकार पति बालकृष्ण शर्मा के साथ कर्फ्यू में फंसने और भूखे प्यासे रहकर कवरेज करने का घटनाक्रम सुनाया। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलन में मीडिया कवरेज की कठिनाइयां आज भी उनके आंखों के सामने जीवंत होकर तैरती हैं। श्रीमती शर्मा ने कहा कि हरिद्वार जनपद के जिस राज्य आन्दोलन को उन्होंने कवर किया, वह अभूतपूर्व और अविस्मरणीय आंदोलन रहा।
दैनिक जागरण में लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण झा ने कहा कि हरिद्वार में मीडिया कवरेज करते हुए एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें आंदोलनकारियों के गुस्से और आक्रोश से भी डर लगने लगा था। उन्होंने कहा आंदोलनकारियों का जो जज्बा था उसी जज्बे ने इस राज्य का निर्माण किया है। उन्होंने कहा आंदोलनकारियों ने अपना काम किया और मीडियाकर्मी के रूप में हमने अपना फर्ज निभाया। राज्य बनने के बाद जहां सरकार और शासन तक हमारी पहुंच आसान हुई है वहीं विकास भी हुआ है। उत्तर प्रदेश के समय 3 विधानसभा सीटों वाला हरिद्वार 11 सीटों तक पहुंच गया। उन्होंने कहा जिन लोगों ने राज्य निर्माण के लिए बलिदान दिया उनके सपने जरूर पूरे होने चाहिए।
पत्रकार ललितेन्द्र नाथ ने लोकार्थ के तत्कालीन संपादक अपने पिता स्वर्गीय शोभानाथ जी की आंदोलन में भूमिका के साथ स्वयं के अनुभव भी साझा किए उन्होंने कहा की धरना प्रदर्शन के साथ-साथ उस समय हरिद्वार में जो 3 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनी राज्य आंदोलन के दौर में ऐसी श्रंखला कहीं देखने को नहीं मिली। उन्होंने कहा कि जितने दिन भी हरिद्वार में धरना प्रदर्शन चला और जुलूस निकले उस समय सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में मीडिया ने भी जुनून के रूप में पत्रकारिता की।
राज्य आंदोलन के दौर में सहारनपुर से प्रकाशित दैनिक विश्व मानव देख रहे वरिष्ठ विक्रम छाछर ने कहा कि उन्होंने हरिद्वार के आंदोलन को बहुत नजदीक से देखा है और निरंतर उसकी कवरेज की है। उन्होंने कहा उन्होंने पत्रकार के रूप में आंदोलनकारियों का ऐसा लंबा संघर्ष कभी नहीं देखा।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतीश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन में हरिद्वार जनपद के लोगों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने सिलसिलेवार हरिद्वार में चले आंदोलन का घटनाक्रम श्रोताओं के साथ साझा किया और कहा कि बिना मीडिया के राज्य आंदोलन को दिशा नहीं मिल सकती थी। उन्होंने कहा की मीडियाकर्मियों का बहुत बड़ा सहयोग राज्य आंदोलन में रहा है।
रूड़की से आये उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के अध्यक्ष हर्ष प्रकाश काला ने कहा हरिद्वार के लोगों ने कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ी है जिसमें हरिद्वार को जिला बनाने, हरिद्वार जिले को उत्तराखंड में शामिल करने और हरिद्वार सहित उत्तराखंड राज्य बनाने की मांग प्रमुख थी। उन्होंने कहा 3-3 मोर्चों पर लड़ाई आसान नहीं थी। कई पक्षों के विरोध के बावजूद हरिद्वार जनपद उत्तराखंड में शामिल हुआ। उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों के व्यक्तिगत स्वार्थों में लिप्त होने को पीड़ादायक बताया। साथ ही मुजफ्फरनगर कांड के आरोपियों के बरी होने, न्यायालय में सही ढंग से पैरवी ना होने, गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित न करने और अंकिता हत्याकांड सहित महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दों पर अपनी बात रखी। श्री काला ने मीडिया के साथ इस तरह की संगोष्ठियोंको समाज के हित में अत्यंत उपयोगी और निरंतर किए जाने की जरुरत बतायी।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन ने कहा कि तत्कालीन सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य आंदोलन का क्रूरता से दमन जितना करने की दुष्चेष्टा की गयी आंदोलन उतना ही तेज होता गया। उन्होंने 1/2अक्टूबर, 1994 को हरिद्वार जनपद के गुरूकुल नारसन में निहत्थे आन्दोलनकारियों पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग और आगजनी की घटना का स्मरण करते हुए विषम परिस्थितियों में स्वयं द्वारा की गई मीडिया कवरेज के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर कांड की घटना प्रशासनिक और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर एक काला धब्बा है। श्रीगोपाल नारसन ने कहा राज्य आंदोलनकारियों के त्याग और तपस्या को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि जिस तरह उत्तराखंड विधानसभा में एक एंग्लो इंडियन विधायक नामित किया जाता है उसी तरह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अथवा आश्रित और राज्य आंदोलनकारियों मे से भी एक प्रतिनिधि को विधायक नामित किया जाना चाहिए।
नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स के संरक्षक एवं गोष्ठी के संयोजक त्रिलोक चंद्र भट्ट ने राज्य आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए हरिद्वार जनपद में हुए घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों की भूमिका किसी भी आंदोलनकारी से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि असली क्रांति पैदा करने और उसका विस्तार देने में मीडियाकर्मियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता।बताया कि राज्य आंदोलन के दौरान हरिद्वार जनपद में 25 नामजद और 8000 अज्ञात आंदोलनकारियों के खिलाफ 14 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें से 9 कोतवाली हरिद्वार, 3 थाना गंगनहर (रूड़की) और एक मंगलौर कोतवाली में दर्ज हुआ था उन्होंने बताया कि जनपद के 11 मुकदमे शासन के आदेश पर वापिस हुए।
इस अवसर नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखंड) द्वारा राज्य आंदोलन को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण झा, रतनमणि डोभाल, श्रीमती शशि शर्मा, विक्रम छाछर, ललितेन्द्र नाथ, श्रीगोपाल नारसन, दीपक नौटियाल, बालकृष्ण शर्मा आदि को राज्य आंदोलन में निष्पक्ष और उत्कृष्ट कवरेज के लिए सम्मानित किया गया। जबकि उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के अध्यक्ष हर्ष प्रकाश काला ने भी राज्य आंदोलनकारियों को उनकी सराहनीय भूमिका के लिए अपने संगठन की ओर से सम्मानित किया।
यूनियन के पूर्व अध्यक्ष विक्रम सिंह सिद्धू ने अगन्तुक अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उनकाआभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन यूनियन के संगठन मंत्री मुकेश कुमार सूर्या ने किया।
इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी डा. दिनेश भट्ट, जगत सिंह रावत, जसवंत सिंह बिष्ट एसपी चमोली, ख्यातसिंह रावत, घनश्याम जोशी, विजय जोशी, शांति मनोड़ी, सरिता पुरोहित, डा. शिवा अग्रवाल, सुनील पाल, बालकृष्ण शास्त्री, शैलेन्द्र सिंह, सचिन तिवारी, प्रमोद गिरी, विक्रम सिंह सिद्धू, सुनील शर्मा, सुदेश आर्या, नवीन पांडे, विनोद चौहान, सूर्या सिंह राणा, वीरेंद्र चड्ढा, मुकेश कुमार सूर्या, हरिनारायण जोशी, धीरेंद्र सिंह रावत, हिमांशु भट्ट, संजू पुरोहित आदि उपस्थित रहे।