उत्तराखण्ड
50 बेड तक के अस्पतालों को क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत छूट दी जाए ।अजय भट्ट
केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत को पत्र लिखकर राज्य में 50 बेड तक के अस्पतालों को क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत छूट दिए जाने पर यथाशीघ्र कैबिनेट में प्रस्ताव लाने को कहा है। श्री भट्ट ने कहा है कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार भी सैद्धांतिक रूप से छूट देने में सहमत हो गए हैं।
केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत को पत्र लिखकर कहा है कि उत्तराखंड में क्लीनिकल अवस्थापना अधिनियम-2010 लागू है, और इस अधिनियम के तहत प्रदेश के सभी निजी क्लीनिक और अस्पतालों एवं लैब ने अस्थाई रूप से पंजीकरण करा लिया है । वर्तमान में पड़ोसी राज्यों जैसे पंजाब व हरियाणा में भी उपरोक्त अधिनियम 50 बेड से ऊपर वाले अस्पतालों में लागू किया गया है, इसके अलावा उत्तर प्रदेश एवं विहार ने भी 50 बेड के अस्पताल को इस अधिनियम से मुक्त रखने का मन बना लिया है। जिसके तहत उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार में भी सैद्धांतिक रूप से सहमति हुई है।
श्री भट्ट ने पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि आपसे हुई दूरभाष पर वार्ता के अनुसार पूर्व में भी आई0एम0ए0 के पदाधिकारियों को बतौर स्वास्थ्य मंत्री आपके द्वारा आश्वस्त किया गया कि राज्य के छोटे अस्पतालों को क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में छूट दी जाएगी, और शीघ्र ही यह प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाएगा। परंतु वर्तमान में कोविड-19 एवं विधानसभा चुनाव होने के कारण इस पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी ।
श्री भट्ट ने कहा कि उन्हें आशा है कि जल्द यथासंभव एक्ट पर सरकार द्वारा निर्णय दे दिया जाएगा, क्योंकि सभी चिकित्सक इस मुद्दे पर जल्दी ही फैसला करने का अनुरोध कर रहे हैं जो कि न्यायोचित भी है।
श्री भट्ट ने पत्र के माध्यम से स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया है कि इस प्रकरण को शीघ्र कैबिनेट में लाकर उत्तराखंड अवस्थापना अधिनियम- 2010 के कड़े प्रावधानों में छूट दे दी जाए, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के विषम भौगोलिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए इस पर निर्णय लेना आवश्यक हो गया है।
श्री भट्ट ने पत्र के माध्यम से कहा कि उनके द्वारा बतौर प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री से आई0एम0ए0 के पदाधिकारियों के डेलिगेशन के साथ मुलाकात की थी, उस समय प्रकरण को सुलझा भी लिया गया था, परंतु अनावश्यक रूप से विलंब होने के कारण आई0एम0ए0 के कई साथियों को थोड़ी परेशानी हुई है।
श्री भट्ट ने कहा कि कोविड-19 के दौरान जब लोग अपनों से दूरी बना रहे थे उस समय चिकित्सकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा की, राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और चिकित्सकों की भारी कमी है। ऐसे में उत्तराखंड जैसे छोटे प्रदेश में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को स्थगित रखा जाना चाहिए था, एक्ट में जिस तरह के कड़े प्रावधान हैं उससे पर्वतीय राज्य के छोटे-छोटे क्लीनिक एवं नर्सिंग होम एकाएक बंद हो जाएंगे, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी, लिहाजा उनके द्वारा यह विषय संसद में भी उठाया गया था और व्यक्तिगत रूप से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात कर यह समस्या बताई गई थी, जिस पर उनके द्वारा इस एक्ट में छूट प्रदान के लिए राज्य सरकार को पूर्ण रूप से सक्षम बताया गया।
श्री भट्ट ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री से उनका आग्रह है कि अतिशीघ्र इस एक्ट को कैबिनेट में लाने की आवश्यकता है जिससे कि उत्तराखंड के सभी चिकित्सकों को राहत मिल सके।