उत्तराखण्ड
हिन्दी जो बोल भी न सकें, वो मंचों में ,जो जीते हैं हिन्दी, उनकी तादाद गुम हो गयी ,जो भी दिखेगा दौड़ता ही दिखेगा भुवन,ठहरा वही है जिसकी सांस गुम हो गयी,
एएमबीपीजी के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत नैनीताल की नाट्य संस्थाएं और कलाकारों का उन्नयन विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। ऑनलाइन, ऑफलाइन मोड में आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में मुंबई से बोलते हुए सिने अभिनेता व कवि गोपाल तिवारी ने कहा कि नैनीताल की युगमंच नाट्य संस्था ने ही उन्हें एक कलाकार के रूप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पहुंचाया, जहां पर उनकी अभिनय कला में निखार आया और आज मुंबई में बॉलीवुड के माध्यम से अपनी अदाकारी से जनसामान्य का मनोरंजन कर रहे हैं। गोपाल तिवारी ने नैनीताल के दिनों की याद करते हुए महत्वपूर्ण नाटकों की चर्चा की, जिसमें उन्होंने कई चरित्र निभाए थे। इनमें से युगमंच की प्रस्तुति नाटक जारी है और जिन लाहौर नहीं देख्या में अलीमुद्दीन की भूमिका प्रमुख है। अभिनेता गोपाल तिवारी ने हल्द्वानी के प्रबुद्ध नागरिकों से अपील की कि शहर में भी नाट्य संस्थाओं को पुनजीर्वित करें ताकि स्थानीय कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने, उसे सवाँरने का मौका मिल सके। मुख्य अतिथि के रूप में रामनगर महाविद्यालय के प्राचार्य व साहित्यकार प्रोफ़ेसर एमसी पांडे ने कविता और गजल प्रस्तुत की। उनकी कविता की इन पंक्तियों को विशेष सराहा गया– हर किसी के सामने एक लक्ष्य है, जिंदगी भी क्या एक परीक्षा कक्ष है। इसके बाद डॉ पांडे ने एक गजल भी गुनगुनाई- कुछ तो फरमाइए, संवाद बनाए रखिए। भूल मत जाइएगा, याद बनाए रखिए।
राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक व कवि डॉ भुवन ने नाटक की कुछ पंक्तियों का वाचन किया और एक कविता प्रस्तुत की- उसने करनी थी जो बात वो गुम हो गयी,
जो देती थी उनको सौगात वो गुम हो गयी,
हिन्दी जो बोल भी न सकें, वो मंचों में।
जो जीते हैं हिन्दी, उनकी तादाद गुम हो गयी।
जो भी दिखेगा दौड़ता ही दिखेगा भुवन
ठहरा वही है जिसकी सांस गुम हो गयी
कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चन्द्र जोशी ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ चन्द्रा खत्री ने किया। इस अवसर पर डॉ सन्तोष मिश्र, डॉ आशा हर्बोला, डॉ जयश्री भण्डारी, डॉ विमला सिंह, डॉ दीपा गोबाड़ी, डॉ देवयानी भट्ट सहित शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित रहे।