उत्तराखण्ड
विधानसभा नियुक्तियों के मामले में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कीजिए विधानसभा अध्यक्ष महोदया : डॉ कैलाश पांडेय
• विधानसभा नियुक्तियों के मामले में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कीजिए विधानसभा अध्यक्ष महोदया : डॉ कैलाश पांडेय
• जांच कमेटी का गठन न तो कानून सम्मत है और न ही ऐसी कमेटी की रिपोर्ट का कोई वैधानिक मूल्य है : माले
उत्तराखंड विधानसभा में हुई भ्रष्टाचार के कारण अवैध नियुक्तियों के संबंध में भाकपा (माले) ने भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है.
भाकपा (माले) के नैनीताल जिला सचिव डॉ कैलाश पांडेय ने कहा कि, “उत्तराखंड विधानसभा में भ्रष्टाचार के अंतर्गत की गयी अवैध नियुक्तियों के संबंध में समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से यह तथ्य सामने आया है कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्षों द्वारा जितनी भी नियुक्तियाँ की गयी हैं,वे बिना पारदर्शिता के हैं और उनमें भाई-भतीजावाद हुआ है. समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से यह तथ्य सामने आया है कि पूर्व अध्यक्षों द्वारा अपने बेटे -बहुओं और अपने नज़दीकियों को बिना किसी पारदर्शिता के, नियुक्तियाँ दी गयी हैं और इस तरह से सारी नियुक्तियाँ गलत तरीके से लाभ और गलत तरीके से हानि की श्रेणी में आती हैं. जिनको नियुक्तियाँ दी गयी हैं, उनको गलत तरीके से लाभ हुआ है और जो व्यक्ति दक्ष होते हुए भी नियुक्ति पाने से रह गए हैं, उनको गलत तरीके से हानि पहुंचायी गयी है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 में के अंतर्गत यह कदाचार और अपराध की श्रेणी में आता है.”
उन्होंने कहा कि, “साफ़ प्रतीत होता है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने लोगों को विधानसभा में नियुक्त करने के लिए पहले तो कोई नियमावली नहीं बनाई गयी और जब बनाई गयी तो नियमावली के अनुसार कोई सार्वजनिक परीक्षा आयोजित नहीं की गयी और पूर्व अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने लोगों की नियुक्तियाँ की गयी, जो सरासर भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है. पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 16(a) का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया गया है. तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष, जिनके द्वारा नियुक्तियाँ की गयी हैं एवं जिन अभ्यर्थियों को नियुक्त किया गया है, सभी के द्वारा भ्रष्टाचार का अपराध कारित किया गया है.
यह कि सभी विधानसभा अध्यक्षों द्वारा नियुक्ति करते समय अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व निर्धारित नहीं किया गया है और इस तरह से अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति के लोगों को उनकी सार्वजनिक नौकरियों से वंचित किया गया है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 की उपधारा 1 के अनुसार सभी पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का भी अपराध किया गया है.”
माले नेता ने कहा कि,”उत्तराखंड विधानसभा में हुई भ्रष्टाचार के कारण अवैध नियुक्तियों के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष महोदया के द्वारा श्री डी.के. कोटिया की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की गयी है. लेकिन श्री डी.के. कोटिया, उत्तराखंड पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल में उपाध्यक्ष रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल एक्ट 1976 की धारा 3 (11) के अनुसार वह इस नियुक्ति के उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं. उपरोक्त प्रावधान के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि कमेटी का गठन कानून सम्मत नहीं है और ऐसी कमेटी की रिपोर्ट का कोई वैधानिक मूल्य और अस्तित्व नहीं है.”
इसलिये भाकपा (माले) मांग करती है कि, “सभी पूर्व विधानसभा अध्यक्षों, जिनके द्वारा विधानसभा में भ्रष्टाचार युक्त नियुक्तियाँ की गयी हैं एवं जिन लोगों को भ्रष्टाचार के कारण नियुक्तियाँ मिली हैं, के विरुद्ध संबंधित थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने एवं संबंधित थाने को जांच की अनुमति देने का काम न्याय और जनता के हित में वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष को तत्काल करना चाहिए.”