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उत्तराखण्ड

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की मिसाल है,,,सुहानी

जिम्मेदारी का बोझ जब सर पर आ जाए तो मुशिक्लो को भी आसानी से जीता सकता है ऐसे हम बात सुहानी की करते हैं जो मात्र तेहरा वर्ष की उम्र से ही अपनी जिम्मेदारी संभाल ली सुहानी जब 13,वर्ष और उसका भाई। पारस 15 की उम्र होगी तो उनके पिता का देहांत हो गया था पिता जी दान सिंह चौहान जो मटर गली में चाय की दुकान चलाते थे जब पिता जी देहांत हो गया तो घर में और कमाने वाला कोई नहीं था कि इस दुकान को चला सके तो सुहानी ने अपने भाई से बोला कि भईया हम दोनों मिलकर पापा की दुकान को चलाए , दोनो भई बहन ने पापा की दुकान को खोला , तथा दोनो ने साथ साथ शिक्षा को भी नही छोड़ा अपनी पढ़ाई बरकार रखी सुहानी ,,जी जी आई सी ,,में कक्षा 9की छात्रा हैं पढ़ाई को भी महत्व समझा कि पढ़ाई भी जरूरी है दोनो भाई बहन ने अपने पापा की चाय की दुकान के नाम को आगे बढ़ाया आज वो मटर गली में लगभग 50 दुकानों में चाय बनाकर ले जाती है जब नजर इस बेटी सुहानी पर पड़ी तो अपने को भी लगा पढ़ने वाली उम्र में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी तो बेटी सुहानी ने बताया कि सुबह भाई बैठता है शाम को मै बैठती हूं हर दुकान में खुद चाय बनाकर ले जाती है सुहानी बोली कि काम कोई भी बुरा नहीं होता है सिर्फ इंसान बुरा होता है आज इस बेटी पर गर्व महसूस कर सकते है कि छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सर पर ले ली हर दुकानदार बेटी को बड़े प्यार से बुलाते हैं बिटिया चाय भेज दे तो वह मुस्कराते हुए चाय लेकर आई जब तो पूछा बेटा चाय खुद बनाई तो बोली मै 11 साल की उम्र से खाना चाय सब बना लेती हूं जब कही शादी व्हाय का काम मिलता है तो मम्मी मै और भाई मिलकर बना लेते है दुकान में सुबह राजमाह चावल , कड़ी चावल बनाते हैं मै ऐसे बेटी को सैल्यूट करता हूं खेलने कूदने की उम्र में घर की जिम्मेदारी निभा रही हैं ।

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