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उत्तराखण्ड

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर ‘मई दिवस संयुक्त आयोजन समिति’ द्वारा बुद्ध पार्क हल्द्वानी में सभा

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर ‘मई दिवस संयुक्त आयोजन समिति’ द्वारा बुद्ध पार्क हल्द्वानी में सभा की गई व सभा के बाद उपजिलाधिकारी कार्यालय तक जुलूस निकालकर मजदूर अधिकारों को बुलंद किया गया।

मई दिवस के संघर्ष के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए वक्ताओं ने कहा कि, “अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने 1886 में आत्मबलिदानी संघर्ष के जरिए “आठ घंटे काम का दिन” का आधिकार हासिल करने के लिए पहली बड़ी हड़ताल संगठित की थी। तब पूंजीपति अपने यहां कार्यरत मजदूरों से 12 से लेकर 16 घण्टे तक काम लेकर उनका भारी शोषण करते थे। इस ऐतिहासिक हड़ताल का वहां की पूंजीवादी सरकार ने भारी दमन किया। 3 और 4 मई को हड़ताली मजदूरों पर गोलियां चलाई गई। 6 मजदूर इस गोलीकांड में शहीद हुए तथा 200 से ज्यादा मजदूर घायल हुए। 1886 की इस ऐतिहासिक हड़ताल के दौरान शिकागो के मजदूर शहीदों के बहे खून से भीगा उनके बदन का कपड़ा बाद में “लाल झंडा” के रुप में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर आंदोलन का परचम बन गया। इस ऐतिहासिक हड़ताल और उसके शहीदों की याद को बनाए रखने और उनके द्वारा शुरू किए गए संघर्ष की मशाल को जलाए रखने के लिए ही 1 मई को पूरी दुनिया की मजदूर पार्टियों व संगठनों द्वारा
“अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस” मनाया जाता है।”

शिकागो की इस ऐतिहासिक हड़ताल के बाद “काम के घंटे आठ” दुनिया के मजदूर वर्ग के आंदोलन का एजेंडा बन गया था, जिसे उन्होंने पूरी दुनिया में कानून बनवाकर हासिल किया।”

वक्ताओं ने कहा कि, “आज के हालत 1886 से कम बदतर नहीं है। इन 136 वर्षों में दुनिया के मजदूरों ने अपने ऐतिहासिक संघर्ष और भारी कुर्बानियों के बल पर 8 घंटे की ड्यूटी, न्यूनतम वेतन कानून, सामाजिक सुरक्षा जैसे तमाम श्रम अधिकार हासिल किए थे, आज की पूंजीपति परस्त सरकारें उन अधिकारों को खत्म करने पर लगी हैं। भारत में भी 44 श्रम कानूनों को खत्म कर नरेंद्र मोदी सरकार ने चार श्रम कोड में तब्दील कर दिया है। इसके जरिये 8 घण्टे की ड्यूटी, न्यूनतम वेतन कानून जैसे तमाम श्रम अधिकारों को खत्म कर पूंजीपतियों को मजदूरों के खुले शोषण की छूट दे दी है। सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र का लगातार निजीकरण किया जा रहा है।

सभा में कहा गया कि, ‘न केवल असंगठित मजदूर, बल्कि आधुनिक तकनीक से लैस उच्च शिक्षा हासिल युवकों को भी दिन में 12 से 14 घंटे काम करना पड़ रहा है। नियमित मजदूरों की संख्या लगातार कम हो रही है, ठेके पर श्रम या संविदा श्रम का प्रचलन आम हो गया है। बाल श्रम, महिला श्रम शोषण बेलगाम है। खेती के कारपोरेटीकरण की नीतियों पर चलते हुए यह सरकार देश के किसानों की जमीनें और अन्न के भण्डार बड़े पूंजीपतियों को सौंपने की नीति पर चल कर देश में नए जागीरदारी राज को थोपने की कोशिश में लगी है। देश में इन नीतियों के कारण भूख, गरीबी. बेरोजगारी और असमानता तेज रफ्तार से बढ़ रही है।”

अरबपतियों- खरबपतियों ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। भारत के संसाधनों पर भी चंद कारपोरेट कंपनियों और चंद बहुराष्ट्रीय निगमों का शिकंजा कसता जा रहा है। उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के नतीजे सामने हैं। उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं। बैंक दीवालिया हो रहे हैं। रेल, प्रतिरक्षा, बैंक, बीमा, कोयला जैसे बुनियादी व संवेदनशील विभागों तक को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। अब सेना में सैनिकों की भी मात्र तीन वर्ष के लिए कांट्रेक्ट भर्ती की तैयारी की जा रही है।

वक्ताओं ने कहा कि, ‘आज केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार इन सवालों से देश की जनता का ध्यान भटकाने और अपने फासिस्ट कारपोरेट हिन्दू राष्ट्र के मनसूबों को पूरा करने के लिए धार्मिक जहर और विभाजन की राजनीति का खतरनाक खेल खेल रही है। केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्रालय के खुले संरक्षण में भाजपा-आरएसएस आज देश भर में खुल कर साम्प्रदायिक हिंसा का तांडव कर रहे हैं। जिन गरीब परिवारों के बच्चों को अच्छी शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराना था, उनके हाथ में तलवारें, भाले, पिस्टल, लाठी थमा कर उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एक गुंडा गिरोह के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए आजादी की लड़ाई के बाद देश में स्थापित सभी लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बनाया जा रहा है। विरोध की हर आवाज को देशद्रोही घोषित कर कुचला जा रहा है। देश की स्वतंत्र संवैधानिक जांच संस्थाओं का अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में जब आरएसएस भाजपा देश को फासिस्ट कारपोरेट राष्ट्र की दिशा में धकेलने के सचेत प्रयासों में लगे हैं। तब देश के मेहनतकश लोगों की एकता, देश के लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की रक्षा और संवैधानिक संस्थाओं की हिफ़ाजत हमारा पहला कार्यभार बन जाता है।’

आज मई दिवस के मौके पर यह संकल्प लिया गया कि हम अपने प्यारे देश भारत को फासिस्ट कारपोरेट राष्ट्र बनाने की भाजपा-आरएसएस की हर चाल को विफल करेंगे। हम देश में मजदूर-किसानों के नेतृत्व में एक समाजवादी व्यवस्था लाने की लड़ाई को तेज कर शहीदे आजम भगत सिंह, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत बनायेंगे।
साथ ही तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए पहला- मई दिवस के मौके पर बनी संयुक्त समिति को स्थायी रूप दिया जाय, दूसरा- हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में साम्प्रदायिक आधार पर अतिक्रमण हटाने का अभियान बंद किया जाय, तीसरा- बढ़ती महंगाई पर रोक लगाई जाए।

इस मौके पर नारे लगाये गये मोदी का कॉरपोरट फासीवादी राज नहीं चलेगा!
शिकागो के शहीद अमर रहें!
मई दिवस अमर रहे!
इंकलाब जिंदाबाद!
मजदूर विरोधी श्रम कोड वापस लो!

मई दिवस कार्यक्रम सभा व जुलूस में ऐक्टू , क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन, देवभूमि उत्तराखंड सफ़ाई कर्मचारी संघ,
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, भोजनमाता संगठन, बीमा कर्मचारी संघ, सनसेरा श्रमिक संगठन,
पछास, आइसा, किसान महासभा, भाकपा (माले), पंजाब बेवल्स ग्रियर्स वर्कर्स यूनियन, जनवादी लोक मंच, महिन्द्रा कर्मकार यूनियन लालपुर, रोडवेज संयुक्त परिषद आदि संगठनों व यूनियनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे जिनमे मुख्य रूप से के के बोरा, राहत मसीह, राजा बहुगुणा, मोहन मटियाली, डॉ कैलाश पांडेय, जोगेंद्र लाल, विमला रौथाण, रजनी जोशी, एन पी जोशी, के एन भट्ट, महेन्द्र जीना, मुकेश भंडारी, बहादुर सिंह जंगी, आर सी त्रिपाठी, जगीर सिंह, यतीश पंत, मोहन सिंह बिष्ट, दीपक कांडपाल, उर्व दत्त मिश्रा, ललित मटियाली, धीरज कुमार, चंदन, रिकी जोशी, हरीश पांडे, नैन सिंह कोरंगा, प्रमोद कुमार, कमल जोशी, टी आर पांडे, शिव सिंह, आनंद पांडे, रोहित टांक, राजेन्द्र, हिमांशु चौधरी, कंचन, हेमंत कुमार, मोहन सिंह अधिकारी, संजय चंद, अशोक कश्यप, राजीव पंत, मनोज आर्य, धन सिंह, रजनीश चौहान, नरेंद्र बनी, रवीन्द्र पाल, कांता प्रसाद, नवज्योत सिंह परिहार, भरत, परशुराम, ललित जोशी, प्रकाश, नवीन, प्रशांत, हीरा, प्रेम बिष्ट आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन रजनी जोशी व जोगेंदर लाल ने संयुक्त रूप से किया।

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