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जिन महानुभावों की अपनी कोई राजनीतिक विचारधारा ही नही है वो भविष्य में आपका मार्गदर्शन कैसे करेंगे..
वरिष्ठ पत्रकार संजय नागपाल की कलम से नैनीताल से ।
जनता कहिंन…स्वार्थपरख राजनीति..🤔
भारतीय लोकतंत्र में राजनेताओं की अपनी कोई विचारधारा नही होती है।चुनाव निकट आने पर अगर उनको अपनी पार्टी से टिकट नही मिलता तो ये महानुभाव तुरंत पलायन कर दूसरे राजनीतिक दल की गोद में जाकर बैठ जाते हैं।और टिकट प्राप्त कर लेते हैं।फिर नए दल में जाते ही ये नेता अपने पुराने दल के शीर्ष नेतृत्व तक को गरियाने लगते हैं। अपने राजनेताओं से यही आचरण सीख कर छोटे स्थानीय नेताओं,कार्यकर्ताओं ने भी मौकापरस्ती की इस विरासत को आगे बढ़ाया है। अब जबकि उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान होना है।यहाँ दल-बदल की यह परम्परा रुकने का नाम नही ले रही..नित्य कुछ नेता,कार्यकर्ता एक राजनीतिक दल से खिसक कर दूसरे राजनीतिक दल में प्रवेश कर रहे हैं..
कुलमिलाकर वर्तमान में मौकापरस्ती की राजनीति को जैसे पंख लग गए हो।जब प्रदेश/देश के नेता विचारधारा बदलने में कोई वक़्त नही लगा रहे हैं।तो स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं को इसमें गुरेज़ क्यों होने लगा..ऐसा लगता है कि बड़े नेताओं को सबक सिखाने के लिए जैसे कार्यकर्ताओं ने भी कमर कस ली है।एक निश्चित रकम के फेर में दल-बदल बदस्तूर चल रहा है।इसमें मेरे विवेक से कोई हर्ज भी नही है।इस दल-बदल के संबंध में कोई नियम कानून नही है।जिसके तहत चुनाव आयोग अंतिम समय में इस पर कोई रोक लगा सके। यहाँ कहना उचित होगा कि वर्तमान में विधानसभा,लोकसभा के चुनाव महज़ एक औपचारिकता मात्र ही रह गए हैं।जनता को मूल मुद्दों से भटका कर धन व आडंबर का एक जाल बुन लिया जाता है।जिसमें मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों का बड़ा योगदान रहता है।जनता को अब भी सावधान हो जाना चाहिए इन राजनीतिक ठगों से,जो अपने हितों व स्वार्थसिद्धि के लिए आमजन को ठगने का कार्य करते हैं..और महंगाई,बेरोजगारी व भ्रष्टाचार को दरकिनार कर कुछ कृत्रिम मुद्दे परोसे जाते है।इसमें जनजागरूकता ही एकमात्र उपाय है।यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि जिन महानुभावों की अपनी कोई राजनीतिक विचारधारा ही नही है वो भविष्य में आपका मार्गदर्शन कैसे करेंगे..