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उत्तराखण्ड

साहेब कभी इन बड़े अस्पतालों में भी छापेमारी करने की हिम्मत तो करो

गुरमीत सिंह

हल्द्वानी। प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने रविवार को अवैध क्लीनिकों के खिलाफ कार्यवाई करते हुए 3 क्लीनिकों को क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के तहत सील कर दिया। प्रशासनिक टीम द्वारा की गई य़ह कार्यवाई जनहित में की गई है, लेकिन इसका असर किसे होगा जानने का प्रयास करते है। नगर में स्थित वैध क्लीनिकों/ प्राइवेट अस्पतालों की संख्या की बात करे तो गिनती गड़बड़ा जाती है खैर य़ह प्राइवेट अस्पताल ईलाज के नाम पर सिर्फ लूटने का कार्य कर रहे है य़ह कहना गलत न होगा। यहां बात क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट की हो रही है तो यहाँ सवाल य़ह उठता है कि क्या कभी प्रशासनिक टीम ने उन अस्पतालों में भी छापामार कार्यवाई की जिनकी ओपीडी के पर्चे ही पांच से आठ सौ रुपये के बनते है और इन पर्चों की वैधता मात्र सात दिन की ही होती है। इन पर्चों पर चिकित्सक पहले महंगी जांचे लिखते है और बाद में ब्रांडेड दवाईया, जिनका मोटा कमिशन पहले से ही चिकित्सक के हित में तय किया गया है। गंभीर मरीजों को सीधे आईसीयू में शिफ्ट करने का आर्डर देने वाले चिकित्सको को इस बात से कोई लेना देना नहीं होता है कि मरीज़ के तिमारदार की जेब में 10 से बीस हजार रुपये प्रतिदिन आईसीयू का खर्चा चुकाने की हैसियत है भी की नहीं। करोड़ों की लागत से बने ये प्राइवेट अस्पताल के मुनाफे के लक्ष्य की कीमत मरीजों को चुकानी पड़ती है। अधिक से अधिक शहरों में ब्रांच खोलने की होड़ में अस्पतालों के कॉरपोरेट मॉडल ने डॉक्टरों की फीस बढ़ाने के साथ सुविधाओं के नाम पर रुपये ऐंठना ही अपना मक़सद बनाया हुआ है। शायद यही वज़ह है कि इस व्यवस्था के बीच जिंदगी की आस लेकर लोग अपने मरीजों को ऐसे क्लीनिकों में लेकर पहुचते है, जहां ईलाज उनकी जेब के हिसाब से होता है, जिन्हें प्रशानिक भाषा में अवैध की संज्ञा दी गई है। विशेषज्ञों की मानें तो राजनीतिक संरक्षण के चलते ही निजी अस्पताल अपनी मनमानी कर रहे हैं। वहीं सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था के चलते अधिकांश लोग ऐसे क्लीनिकों की और रुख करते है जिन्हें प्रशासन अवैध करार देता है। अब यहाँ सवाल य़ह उठता है कि जब इन अवैध क्लीनिकों पर छापेमारी की जाती है तो कॉर्पोरेट्स की तर्ज पर संचालित हो रहे प्राइवेट अस्पतालों पर क्यों कार्यवाई नहीं हो सकती। जो वैध होने का तमगा तो लगाए हुए है, लेकिन काम उनके अधिकतर अवैध ही है। हमारा इस समाचार के माध्यम से जिलाधिकारी,,एवम सिटी मजिस्ट्रेट महोदय से आग्रह है की एक नजर इनपर भी डाली जाए। बहरहाल आज अवैध क्लीनिकों में की गई छापेमार टीम में सिटी मजिस्ट्रेट श्रीमती ऋचा सिंह, अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ रजत भट्ट, अर्बन हैल्थ ऑफिसर राघवेन्द्र रावत, प्राधिकरण से अंकित, औषधि निरीक्षक मीनाक्षी बिष्ट शामिल थी।

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