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उत्तराखण्ड

पत्रकारिता पूंजीपति घरानों की चाटुकारिता, संप्रदायिक ताकतों की चापलूसी में तन-मन- मस्तिष्क से जुटी

यहाँ बेहद खूबसूरती से असल बात को दफन कर दिया जाता है…
राष्ट्रीय प्रेस दिवस से पहले शहीद गदरियो को भी जान लीजिए ……..
आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर अगर हम गदर पार्टी के पत्रकार, सम्पादक शहीद करतार सिंह सराबा को याद न करे तो यह दिन बेमानी हैं, राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर जब हम प्रेस की अस्मिता, स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति की बात करते हैं ऐसे हैं गदर पार्टी के नौजवान अमर शहीद करतार सिंह सराभा व उनके साथियों को याद करने की भी जरूरत है जिन्होंने एक शोषण मुक्त समाज बनाने के लिए पार्टी की स्थापना के साथ-साथ उसके प्रचार-प्रसार हेतु खुद अपने हाथों से मशीन चला कर अखबार भी निकाला।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस का मतलब कतई यह न रह जाए कि इस दिन राजनेताओं को मंच पर बिठा कर उनकी चापलूसी में सारा दिन बिता दिया जाए, राष्ट्रीय प्रेस दिवस का मतलब यह भी न रह जाए कि कोई एक विचार खुद को महा मंडित करता फिरे।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस का दिन समर्पित रहे उस विचार को जिससे बरसों पहले गदर पार्टी के संस्थापकों ने स्थापित किया जिन्होंने अपनी पार्टी के बाहर लिख दिया था कि अपनी जाति व जूते कृपया बाहर उतार कर आए, जिन्होंने देश वह विश्व को शोषण मुक्त बनाने हेतु अपनी जान की बाजी लगा दी।

आज 16 नवंबर को जब हम राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना रहे हैं तो हमें गदर पार्टी के मतवाले, ओजस्वी, नोजवान शहीद पत्रकार करतार सिंह सराभा व उनके साथियों को नहीं भूलना चाहिए जिन्हें आज के दिन ही फांसी की सजा दे दी गई थी।

करतार सिंह सराभा का जीवन व उनकी शहादत इतनी महत्वपूर्ण है कि उनकी फोटो अमर शहीद भगत सिंह अपनी जेब में रखते थे।

आज जहां पत्रकारिता पूंजीपति घरानों की चाटुकारिता, संप्रदायिक ताकतों की चापलूसी में तन-मन- मस्तिष्क से जुटी है ऐसे में राष्ट्रीय प्रेस दिवस को करतार सिंह सराभा के बिना याद करना आंखों पर पट्टी बांधकर जश्न मनाने के बराबर होगा।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस से पहले आइए हम शहीद करतार सिंह सराभा व गदर पार्टी के उन सभी शहीदों को नमन करें जिन्होंने शोषण मुक्त समाज के लिए अपनी जान दे दी। उनके त्याग व विचारों को पढ़कर कर समझे…

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