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उत्तराखण्ड

टोंगिया गांव के निवासियों कठिन लंबा संघर्ष लाया रंग

यू एस सिजावली भवाली

टोंगिया गांव के निवासियों कठिन लंबा संघर्ष लाया रंग वर्ष 1930 से तराई के वनों को लगातार हरा भरा रखने वाले टोगियां गांवो के संघर्ष को आखिरकार सफलता मिल ही गई है।ये गांव अब अतिक्रमण के अभिशाप से मुक्त होकर राजस्व गांव में परिवर्तित होने की राह पर अग्रसर है।
दिनांक 25 अक्टूबर 2023 को महामहीम राज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना के अंतर्गत लेटी,चोपड़ा और रामपुर जो की रामनगर वन विभाग के अंतर्गत आते हैं को राजस्व गांव घोषित करने की अधिसूचना जारी हो चुकी है। राजस्व गांव के अभाव में इन गांवों में बिजली पानी सहित किसी भी तरह की विकास की योजनाएं नहीं चल पा रही थी तथा किसी भी तरह के प्रमाण पत्र भी नहीं बन पा रहे थे।
वन अधिकार अधिनियम 2006 के लागू होने के पश्चात वनों के भीतर स्थित सभी बस्तियों को इस अधिनियम के अंतर्गत राजस्व गांव में परिवर्तित करने के विस्तृत आदेश जन जाति मंत्रालय द्वारा जारी किए गए थे परंतु राज्य के भीतर यह प्रक्रिया कभी ढंग से लागू की ही नहीं गई। जबकि जबकि ग्राम, खंड तथा जिला स्तरीय समिति द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत दावे को पूर्व में ही स्वीकृति प्रदान कर दी गई थी। परंतु राज्य सरकार द्वारा उपरोक्त दावों को शासन स्तर पर मंगा लिया गया था पिछले दो से भी अधिक वर्षों से यह दावे शासन स्तर पर लंबित पड़े हुए थे जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी 2 वर्ष पूर्व ही टोंगिया गांवो को राजस्व गांव घोषित कर दिया गया था। अखिरकार उत्तराखंड शासन द्वारा उत्तर प्रदेश में पारित प्रस्ताव को आधार बनाते हुए उत्तराखंड में भी टोंगिया गांवों को राजस्व गांव घोषित करने की प्रिक्रिया आरंभ हो ही गई।
क्या है टोंगिया गांव
टोंगिया पद्धति वृक्षारोपण की एक पद्धति है जिसे ब्रिटिश काल में वर्ष 1930 में आरंभ किया गया था जिसके अंतर्गत पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्रों से श्रमिकों को जंगल के भीतर बसाया गया तथा जिस भी स्थान पर वनों का कटान किया गया था वहां इन लोगों की बस्तियां बताई गई। इन लोगों का मुख्य कार्य कटे हुए वनों के स्थान पर पुनः वृक्षारोपण करना था। यह प्रक्रिया 10 वर्ष के चक्रीय आधार पर होती थी 10 वर्ष तक वहीं पर रहकर यह लोग वृक्ष लगाने और उनकी देखरेख का काम करते थे और इसके पश्चात दूसरी जगह जहां वृक्षों को कटान हुआ हो वहां इन्हें भेज दिया जाता था। वर्ष 1970 में यह पद्धति बंद कर दी गई इसके पश्चात यह लोग अपनी ही जगह पर सीमित होकर रह गए। तराई के बड़े-बड़े जंगल इन्हीं टोंगिया गांव के निवासियों द्वारा लगाए गए हैं परंतु इन्हें अतिक्रमणकारी मानते हुए वन भूमि से हटाने के प्रयास कई बार किए गए अब इस प्रक्रिया के पश्चात यह गांव न सिर्फ विकास की मुख्य धारा से जुड़ जाएंगे वरन यहां के निवासियों को भी ग्राम पंचायत के सभी अधिकार प्राप्त हो जाएंगे
इस आदेश के पारित होने के पश्चात उत्तराखंड के सैकड़ो बनगांव, डेरे और हरी नगर जैसी बस्तिया जो की वन भूमि पर बसी हुई हे के भी राजस्व गांव बनने के रास्ते खुल गए हैं। इस पर वंश पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक चरण जोशी ने कहा है कि टोंगिया गांव के निवासियों का कठिन थका देने वाला संघर्ष आज परिणाम लेकर आया है जिससे लिट्टी चोपड़ा रामपुर गांव में खुशी का माहौल है राजेश गांव के लिए संघर्ष करने वाले अन्य गांव के लोगों को भी अब अपनी रहा आसान होने की आशा है

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