उत्तराखण्ड
बिना अनुमति किसी की कॉल रिकॉर्डिंग अपराध, कानून में दो साल की जेल और भारी जुर्माने का प्रावधान,
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन के जरिए बातचीत रिकॉर्ड करना बेहद आसान हो गया है, लेकिन बिना अनुमति किसी व्यक्ति की कॉल को रिकॉर्ड करना और उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करना भारत के संविधान और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम दोनों का उल्लंघन है। यह कार्य निजता के मौलिक अधिकार के हनन के साथ-साथ एक गंभीर आपराधिक अपराध की श्रेणी में आता है ��।संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उल्लंघनसंविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 के के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार मामले में यह स्पष्ट किया था कि निजता का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है। बिना सहमति किसी व्यक्ति की कॉल रिकॉर्ड करना इस अधिकार का प्रत्यक्ष उल्लंघन माना जाएगा �।आईटी एक्ट 2000 की धारा 72 के तहत अपराधसूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 72 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या संचार को प्रकट करता है, तो यह दंडनीय अपराध है। इसमें दो वर्ष तक की सजा, या एक लाख रुपए तक जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। इसके अलावा, अगर रिकॉर्डिंग का उपयोग किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने, ब्लैकमेल करने या सोशल मीडिया पर वायरल करने के लिए किया जाता है, तो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का मामला भी दर्ज किया जा सकता है ��।सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णयहाल ही में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति-पत्नी के बीच निजी बातचीत को तलाक के मामलों में साक्ष्य के रूप में केवल तब माना जा सकता है जब उसका उपयोग न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में हो और किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए न किया गया हो। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक रूप से साझा करना संविधान में प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा
















