उत्तराखण्ड
वर्ष प्रतिपदा पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने निकाला पथ संचलन,,
हल्द्वानी ,,,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हल्द्वानी नगर का पथ संचलन पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच हीरानगर से संघ कार्यालय मुखानी से होते हुए कालूसांई मंदिर तक और उसके बाद वापस उत्थान मंच तक निकाला गया । पर्वतीय उत्थान मंच हीरानगर में सैकड़ों स्वयंसेवक एकत्रित हुए तत्पश्चात उत्तराखंड प्रांत के माननीय संचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट, जिला संचालक डॉ. नीलंबर भट्ट और नगर संचालक विवेक कश्यप ने संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी को याद करते हुए उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
प्रांत संघचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट ने बौद्धिक देते हुए बताया कि जब- जब भारत माता की गोद में राष्ट्र पुनर्जागरण की आवश्यकता हुई तब-तब कुछ महापुरुषों ने अपने जीवन की आहुति देकर समाज को एक नई दिशा दी। ऐसे ही एक महान विभूति थे परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जिनका जन्म केवल एक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्र को पुनः जागृत करने की एक विचारधारा के रूप में हुआ था।
उन्होंने बताया कि डॉ. हेडगेवार जी ने माँ भारती की सेवा को ही अपने जीवन का परम ध्येय बनाया। उन्होंने अनुभव किया कि जब तक समाज संगठित नहीं होगा, तब तक भारत पुनः अपने गौरव को प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसी उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की—एक ऐसा संगठन जो भारत की सांस्कृतिक आत्मा को जागृत कर राष्ट्र प्रथम की भावना को जन-जन तक पहुँचाने के लिए समर्पित हो।
प्रांत संघचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट ने बताया कि आज जिस संघ रूपी वटवृक्ष की छाया में करोड़ों राष्ट्रभक्त सेवा, संस्कार और राष्ट्रनिष्ठा की साधना कर रहे हैं, वह उस बीज की ही देन है जिसे डॉ. हेडगेवार जी ने अपने त्याग, तपस्या और दूरदृष्टि से अंकुरित किया था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनका लक्ष्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था वे भारत को आत्मगौरव, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राष्ट्रभावना से ओतप्रोत देखना चाहते थे।
डॉ. हेडगेवार जी केवल एक संगठन के संस्थापक ही नहीं थे बल्कि वे राष्ट्रीय पुनर्जागरण के महायज्ञ के यजमान भी थे। उनका संकल्प “हिंदू समाज को संगठित कर, उसे इतना जागरूक, शक्तिशाली और अनुशासित बनाना था जिससे वह राष्ट्र की रक्षा और उत्थान में अपनी भूमिका निभा सके।”
अपने बौद्धिक में प्रांत संघचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट ने बताया कि आज जब भारत विकसित भारत बनने की ओर बढ़ रहा है, जब देश में राष्ट्रवाद, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गौरव का भाव प्रबल हो रहा है, तब हम डॉ. हेडगेवार जी की दूरदृष्टि और उनके योगदान को और अधिक सम्मान के साथ याद करते हैं।
प्रांत संघचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट ने बताया कि भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।
उन्होंने बताया कि प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।
उन्होंने बताया कि यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धारण लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जास्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
प्रांत संघचालक प्रोफेसर बी एस बिष्ट ने बताया कि इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2054 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2054 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है।
प्रांत संघचालक प्रोफेसर बहादुर सिंह बिष्ट ने सभी स्वमंसेवकों एवं हिन्दू समाज से आवाहन किया कि इस शुभ अवसर पर हम राष्ट्र को सर्वोपरि रखने का संकल्प लें, अपने जीवन को भारत माता की सेवा में समर्पित करें, और परम पूज्य डॉ हेडगेवार के सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।
पथ संचलन के अवसर पर जिला संघचालक डॉ नीलांबर भट्ट, जिला प्रचारक जितेंद्र, नगर संघचालक विवेक कष्यप, प्रांत सहबौदिक प्रमुख राजेश जोशी, मुख्य शिक्षक कमल,नगर कार्यवाह प्रकाश पाण्डेय, सह नगर कार्यवाह तनुज गुप्ता, प्रहलाद मेहरा, जिला शारीरिक प्रमुख सूरज तिवारी, जिला सहबौदिक प्रमुख कमलेश त्रिपाठी, नगर प्रचार प्रमुख डॉ. नवीन शर्मा, विधायक बंशीधर भगत, मेयर गजराज सिंह बिष्ट, जिला अध्यक्ष प्रताप बिष्ट, उपनगर कार्यवाह, नितिन ललित, हिंमाशु, रूपचन्द्र, योगेश, कार्यालय प्रमुख योगेन्द्र समेत सैकड़ों स्वमंसेवक मैजूद रहे।

