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अवैध साहूकारी का जाल बढ़ा: बगैर लाइसेंस के सूदखोरी से कई परिवार बर्बाद,
हल्द्वानी। प्रशासन लाचारग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अवैध साहूकारी (सूदखोरी) का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है, जिससे सैकड़ों परिवार आर्थिक और सामाजिक संकट झेल रहे हैं। बीमारी या अचानक मुश्किल में फँसने पर मजबूर लोग जब किसी से तुरंत कर्ज मांगते हैं, तो उन्हें असहनीय ब्याज दरों पर पैसे मिलते हैं। असल राशि चुकाने के बाद भी कर्ज का बोझ वर्षों तक खत्म नहीं होता, और अक्सर ब्याजियों की धमकी तथा दबाव के चलते लोग आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा बैठते हैं ।ग्रामीण इलाकों में अधिकांश साहूकार बिना किसी लाइसेंस या कानूनी दस्तावेज़ के चैक व स्टांप पेपर के आधार पर कर्ज देकर वसूली कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, कई परिवार खेत, मकान और अन्य संपत्ति गंवा चुके हैं। कर्ज में डूबे लोग न्याय और प्रशासन से मदद की आस लगाए रखते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। साहूकार न्यायालय में चैक व स्टांप पेपर का सहारा लेकर वसूली भी कर लेते हैं, जिसका असर पीड़ित परिवारों के सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है ।भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को साहूकारी (Money Lending) लाइसेंस लिए बिना ब्याज पर धन देने का अधिकार नहीं है, और इसका उल्लंघन करने पर जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। बावजूद इसके, कार्रवाई के अभाव में कई साहूकार खुलेआम नियमों की अनदेखी कर गरीब तबकों का शोषण कर रहे हैं। ऋण न चुका पाने की मजबूरी में कई बार कर्जदारों को अपमान, सामाजिक बहिष्कार और हिंसा तक झेलनी पड़ती है�।कानूनों एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी के अभाव में ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्र के लोग उचित शिकायत या कानूनी प्रक्रिया तक भी नहीं पहुंच पाते। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी तंत्र, सामाजिक संगठनों और समुदायों को मिलकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाने होंगे, ताकि लोग कानूनी वित्तीय साधनों और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बन सकें। साथ ही, प्रशासन को अवैध साहूकारों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि जरूरतमंदों का शोषण रोका जा सके ।विशेष तथ्य:भारत के मनी लेंडिंग एक्ट व आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 506 (धमकी), 383-384 (जबरन वसूली), व 340-342 (गलत तरीके से कैद) लागू होती हैं ।ग्रामीण भारत में कर्ज के बोझ तले दबे परिवार बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और जीवनस्तर पर भी प्रभाव झेलते हैं, जिससे सामाजिक विकास बाधित होता है ,,
















