उत्तराखण्ड
उत्तराखंड में वन पंचायत भूमि पर अतिक्रमण, राजस्व उपनिरीक्षक को धमकी, सरकारी दस्तावेज फाड़े,
नैनीताल। ,,उत्तराखंड में वन पंचायत भूमि पर अवैध कब्जे और सरकारी अधिकारियों को धमकाने की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला नैनीताल जिले के ग्राम वना, तहसील धारी का है, जहाँ 22 फरवरी 2025 को वन पंचायत भूमि (खेत संख्या 1777) पर अवैध निर्माण की जाँच करने पहुँचे राजस्व उपनिरीक्षक को खुलेआम धमकाया गया, गाली-गलौज की गई और उनके हाथ से सरकारी नोटिस छीनकर फाड़ दिया गया। सूचना पर कार्रवाई करते हुए जब राजस्व उपनिरीक्षक ने मौके पर पहुँचकर जाँच की तो पाया कि महेंद्र सिंह पुत्र शेर सिंह द्वारा वन पंचायत भूमि पर पिलर लगाकर लिन्टर डाला जा चुका है। जब अधिकारी ने उससे भूमि संबंधी वैध दस्तावेज प्रस्तुत करने का नोटिस दिया, तो उसने इसे लेने से इनकार कर दिया। इसी दौरान, मौके पर मौजूद एक अन्य व्यक्ति, जिसे ‘हेमू’ के नाम से पुकारा जा रहा था और जो शराब के नशे में था, ने जबरन नोटिस छीनकर फाड़ दिया। जब अधिकारी ने इस गैरकानूनी हरकत का विरोध किया तो हेमू ने गाली-गलौज की और खुलेआम जान से मारने की धमकी दी। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, राजस्व उपनिरीक्षक को मुख्यालय लौटना पड़ा और उन्होंने पूरी घटना की रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को सौंप दी।
वन पंचायत भूमि पर अतिक्रमण, सरकारी भूमि की अवैध बिक्री और जंगलों की अवैध कटान जैसी गतिविधियाँ उत्तराखंड में व्यापक स्तर पर सामने आ रही हैं। यह समस्या अब केवल प्रशासनिक लापरवाही तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक गहरी और संगठित साजिश का संकेत देती है, जिसमें प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में वन पंचायतों की भूमि पर कब्जा जमाया जा रहा है। इस गंभीर मुद्दे को देखते हुए, यह मामला माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय में लंबित एक जनहित याचिका के माध्यम से विधिवत उठाया गया है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि वन पंचायतों की भूमि पर अतिक्रमण और अवैध गतिविधियाँ न केवल पर्यावरणीय संतुलन को नुकसान पहुँचा रही हैं, बल्कि इससे क्षेत्र की वन संपदा और स्थानीय समुदायों के अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं। इस याचिका में अवैध अतिक्रमण को हटाने, वन पंचायतों की रक्षा के लिए ठोस दिशानिर्देश लागू करने, और जिम्मेदार अधिकारियों व दोषियों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने की माँग की गई है।
यह मामला केवल एक सरकारी अधिकारी को धमकाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि वन पंचायत भूमि को योजनाबद्ध तरीके से हड़पने की साजिश चल रही है। यदि ऐसे मामलों पर तत्काल कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह प्रवृत्ति पूरे प्रदेश में कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन जाएगी। जनहित याचिका के तहत पहले ही यह माँग की जा चुकी है कि वन पंचायत भूमि पर हो रहे अतिक्रमण की उच्चस्तरीय जाँच हो, अवैध कब्जे हटाए जाएँ, और दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
हालाँकि, अब तक प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय में लंबित जनहित याचिका, वन पंचायतों में अवैध कार्य उजागर करने के लिए पहले से प्रयासरत है, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन अब इस पर क्या रुख अपनाता है।
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