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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत: सुशीला तिवारी अस्पताल संकट में,

हल्द्वानी, 18 सितम्बर।
उत्तराखंड सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के बड़े-बड़े दावे जरूर करती है, मगर सुशीला तिवारी अस्पताल में जमीनी हालात इन दावों की पोल खोल रहे हैं। यहां न एक्सरे मशीनें ठीक से चल रही हैं, । सुविधाओं की भारी कमी और जिम्मेदारों की लापरवाही से मरीजों की परेशानियां दिन–ब–दिन बढ़ती जा रही हैं।बदहाल एक्सरे सुविधा, बढ़ती लाइनें सुशीला तिवारी अस्पताल में इस समय केवल एक डिजिटल एक्सरे मशीन कार्यरत है, जिससे मरीजों को घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है। पूर्व में जो पुरानी मशीन थी, वह रोजाना 200–300 एक्सरे संभाल लेती थी, मगर उसकी अवधि पूरी हो चुकी है। अब नई मशीन क्षमता से ज्यादा लोड पड़ने पर अक्सर ठप हो जाती है, जिससे भर्ती और इमरजेंसी मरीज भी परेशान हो रहे हैं। अधिकारी केवल जल्द मरम्मत कराने का आश्वासन देकर जिम्मेदारी से बच जाते हैं

.पीपीपी मोड पर स्वास्थ्य सेवाओं के नुकसान सरकार कथित तौर पर बेहतर सेवाओं के लिए अस्पताल की रेडियोलॉजी, एमआरआई, सीटी स्कैन और एक्सरे यूनिट को पीपीपी (Public Private Partnership) मोड पर देने जा रही है। हालांकि प्रदेश भर में पीपीपी मॉडल के तहत निजी संस्थाओं के असंतोषजनक प्रदर्शन की खबरें लगातार मिल रही हैं। कई बार स्टाफ, दवाइयों, और जांच सुविधाओं की भारी कमी देखने को मिलती है, और पारदर्शिता व जवाबदेही भी संदिग्ध रहती है .। कर्मचारी संगठनों व जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि इस मॉडल से गरीब और आमजन इलाज से वंचित रह सकते हैं .कर्मचारियों का वेतन संकट, संवेदनहीनताअस्पताल के कर्मचारी कई महीनों से वेतन के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। किराए के मकानों में रहने वाले कई स्वास्थ्यकर्मियों को मकान मालिकों ने घर खाली करने तक कह दिया है, मगर शासन-प्रशासन की उदासीनता बनी हुई है। इससे अस्पताल में आक्रोश, असुरक्षा और कार्यक्षमता पर असर साफ महसूस किया जा सकता है .सरकार का दावा और सच्चाई का फर्क राज्य सरकार खुद को स्वास्थ्य सुधारों के लिए गंभीर बताती रही है और हेल्थ इन्नोवेशन समिट, नई योजनाओं तथा पीपीपी मोड जैसी व्यवस्थाएं लागू करने का प्रचार करती है

. लेकिन जिलों व अस्पतालों की वास्तविक हालत पर नजर डालें तो साफ है कि सरकार के सारे दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों व टैक्नीशियन की भारी कमी, टूटे उपकरण, और जरूरतमंदों को समय पर इलाज न मिलना—इन सबने सरकारी तंत्र की विफलता उजागर कर दी है

कुल मिलाकर, उत्तराखंड सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी। गंभीर है एवं सुधार के तमाम दावे जरूर करती हो, लेकिन हल्द्वानी के सबसे बड़े अस्पताल की बदहाली सरकार की नाकामी का आईना है। मरीज कतारों में भटक रहे हैं, कर्मचारी वेतन के लिए तरस रहे हैं, और निजीकरण की ओर बढ़ता तंत्र आमजन की परेशानी को और बढ़ा सकता है।

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