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उत्तराखण्ड

सम्मान के साथ मृत्यु का अधिकार लागू करे राज्य सरकार,,

हल्द्वानी ,,,यदि सम्मान के साथ जीना संभव है तो मृत्यु भी सम्मानजनक ही होनी चाहिए। एमबीपीजी के पूर्व प्राध्यापक डॉ. संतोष मिश्र ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के हवाले से यह इच्छा व्यक्त की है कि जीवन में यदि कभी असाध्य रूप से बीमार हो जाएं या लगातार निष्क्रिय अवस्था में जाना पड़े तो चिकित्सा उपचार या जीवन रक्षक प्रणाली बंद कर दी जाय, जिससे उन्हें सम्मानजनक तरीके से मुक्ति मिल सके। डॉ. मिश्र ने राज्य सरकार से मांग की कि इस संबंध में सभी राजकीय और प्राइवेट अस्पतालों को समुचित दिशा निर्देश जारी करे।

सम्मान के साथ मृत्यु का अधिकार” (Right to Die with Dignity) का सीधा अर्थ यह है कि एक व्यक्ति को, जो असाध्य बीमारी से पीड़ित है, अपने जीवन के अंतिम क्षणों में सम्मान और गरिमा के साथ निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। इसमें यह तय करना शामिल है कि यदि वह चाहे तो उपचार या जीवन रक्षक उपायों को जारी रखने या बंद करने का विकल्प चुन सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का 2018 का फैसला भारत में मृत्यु के अधिकार के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “सम्मानपूर्वक मृत्यु के अधिकार” को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को भी वैध ठहराया और “लिविंग विल” या अग्रिम निर्देश बनाने की अनुमति दी, जिससे गंभीर रूप से बीमार मरीज जीवन के अंतिम निर्णयों के बारे में अपनी इच्छाएँ व्यक्त कर सकें। इस फैसले को भारत में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में नियमों को और सरल करते हुए गंभीर बीमार रोगियों के लिए सम्मान के साथ मृत्यु का अधिकार की अनुमति दी थी, जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं या अब जीवन-निर्वाह इलाज से लाभ नहीं हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Advance Medical Directive – AMD) एक प्रकार की जीवित वसीयत है, जिसमें मरीज भविष्य में अपनी चिकित्सा उपचार संबंधी इच्छाओं को रिकॉर्ड कर सकता है। अग्रिम चिकित्सा निर्देश के तहत मरीज को दो व्यक्तियों को नामांकित करने की आवश्यकता होगी, यदि वह अपना निर्णय लेने की क्षमता खो देता है तो उसकी ओर से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेंगे। यह दस्तावेज चिकित्सा पेशेवरों को यह निर्णय लेने में सहायक होगा कि मरीज को किस प्रकार का चिकित्सा उपचार चाहिए या नहीं।

केंद्र सरकार ने कहा- ‘निष्क्रिय” इच्छामृत्यु को लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी

मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में मंगलवार को केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के राज्य का विषय होने के कारण राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी बताया है। सरकार ने कहा कि, वे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु और जीवनकाल हेतु वसीयत को अस्पताल प्रोटोकॉल में शामिल करके लागू करें।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा में कहा कि राज्यों की यह भी जिम्मेदारी है कि वे नैतिक सुरक्षा उपाय स्थापित करें। नड्डा ने उच्चतम न्यायालय के 2018 के एक फैसले के आलोक में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु को लागू करने के लिए उठाए गए विशिष्ट उपायों को लेकर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में यह टिप्पणी की।

उन्होंने कहा कि 2018 के ‘कॉमन कॉज’ बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने अग्रिम निर्देशों के क्रियान्वयन और ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु के कार्यान्वयन के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने ‘कॉमन कॉज’ बनाम भारत संघ संबंधी विविध आवेदन संख्या 1699 में इन दिशा-निर्देशों को क्रियान्वित करने संबंधी प्रक्रिया को 2023 में सरल बनाकर इनमें छूट दी है।

मंत्री नड्डा ने कहा कि ‘स्वास्थ्य’ राज्य का विषय होने के कारण राज्यों एवं केंद्रशासित क्षेत्रों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु और जीवनकाल के लिये वसीयत को अस्पताल प्रोटोकॉल में शामिल करके लागू करें। ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु में मृत्यु ‘प्राकृतिक’ तरीके से होती है, क्योंकि रोगी को जीवित रखने के लिए आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं रोक दी जाती हैं।

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