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उत्तराखण्ड

सरकारी स्कूलों में 17-18 वर्षो भोजनमाता काम कर रही है इन बैणियों की समस्या पर मुख्यमंत्री ने नही किया विचार,, रजनी

भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन, स्थायी रोजगार, अमानवीय शासनादेश रद्द करने व प्रोत्साहन राशी के संबंध में सौपा ज्ञानप,

मुख्यमंत्री के उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी में आगमन पर बड़ा महत्व रखा गया इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंची हुई थी जिसमें महिलाओं का सम्मान किया जाना था
सरकारी स्कूलों में 17-18 वर्षो भोजनमाता काम कर रही है इन बैणियों की समस्या पर मुख्यमंत्री जी विचार नहीं कर रहे हैं| उन्हें न तो न्यूतम वेतन दिया जा रहा है न ही स्कूलों में होने वाले उत्पीड़न पर रोक लग रही है भोजनमाताओ ने कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन दिया गया है और मांग कि की उनकी समस्याओं का जल्द से जल्द निदान किया जाए|
कार्यक्रम में रजनी जोशी, पुष्टि कुड़ई, हेमा तिवारी, तलाशी, सारदा, हंसती देवी, पुष्पा, चम्पा गिनवाल, ममता, सहित कई भोजनमाता शामिल रही
महामंत्री। सरकारी विद्यालयों में हम भोजनमाताएं 18-19 सालों से खाना बनाने का काम बड़ी मेहनत व साफ-सफाई के साथ करती है। हम स्कूलों के सभी छोटे-बड़े कामों में सहयोग करती है। शुरूआती समय में हमको मात्र 250 रू0 का मानदेय दिया जाता था। अब इतने वर्षों बाद हमारा मानदेय प्रतिमाह मात्र 2000 रु० का हुआ है। वह भी हमें मात्र 11 माह का मानदेय ही मिलता है। लॉकडाउन के समय में हमसे 12 महिने काम लिया गया लेकिन मानदेय 11 माह का ही आ रहा है। हम भोजनमाताएं बहुत गरीब परिवारों से आती है। कई भोजनमाता विधवा, परित्यकता है। अधिकतर भोजनमाताओं पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इस महंगाई के दौर में भोजनमाताओं का जीवन संकट में है। कई स्कूलों में न्यूनतम मानदेय, बैस, बोनस तक समय पर नहीं दिया जाता है। कई ऐसे स्कूल हैं जिनमें भोजनमाताओं को 9-10 महिनों तक मानदेय नहीं दिया जाता रहा है। हमारे विरोध करने पर स्कूलों से निकालने की धमकी दी जाती है। हमसे कहा जाता है तुम्हारी नौकरी हमारे हाथ में है हम जैसा जैसा कहते है वैसे करों अन्धा तुम्हारी नौकरी नहीं बच पाएंगी। उत्तराखंड में कई ऐसे स्कूल हैं जिनमें भोजनमाताओं को बिना किसी बाजिफ कारण के नौकरी से निकाल दिया गया है।

सरकार द्वारा उज्जवला गैस योजना का हल्ला मचाया जाता है कि हर घर में गैस पहुंचायी गयी है। लेकिन सरकार के खुद कई सरकारी स्कूलों में अभी तक लकड़ी के चूल्हे में ही खाना बनाया जाता है। लकड़ी का इंतेजाम भी भोजनमाताओं से करवाया जाता है। जिसका उनको कोई पैसा भी नहीं मिलता है। जहां मिलता भी है तो वह न के बराबर होता है। लकड़ी में खाना बनाने पर जो धुआं निकलता है उससे भोजनमाताओं के स्वास्थ पर बुरा असर पड़ता है।

कोविड-19 कोरोना माहामारी के दौरान भोजनमाताओं की कोविड सैंटरों में ड्यूटी लगायी गयी। हमने अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना पिड़ितों की देखभाल की। कोविड सैंटरों में हमारे दलित होने पर बार-बार अपमानित किया गया। हमारे काम पर न तो हमें सम्मान मिला न ही सुविधा उपकरण दिए गए और न ही कोई प्रोत्साहन राशी। लॉकडाउन के समय एक जी०ओ० निकाला गया जिसमें कहां गया कि भोजनमाताओं से एक से डेढ़ घंटे किचंन गार्डिन का काम लिया जाए ताकि उनको मानदेय दिए जाने का औचित्य सिद्ध हो सके। हमसे किचन गार्डिन के नाम पर कई स्कूलों में एक-एक बिधे खेत में खेती करवायी गयी। पूरे स्कूलों की झाड़िया कटावायी जाती रही है। रंग-रोगन के काम करवाये गये। हम भोजनमाताओं ने लॉकडाउन में कोरोना पिडितों की सेवा करने के अलावा पूरे स्कूल के कमरे, प्रगाण व मैदान की साफ-सफाई की लेकिन आज तक सरकार द्वारा हमें कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया। लोक सभा, विधान सभा चुनावों या अन्य कोई चुनाव के वक्त हमारी ड्यूटी लगायी जाती है। हम सभी चुनाव करवाने आयें सदस्यों को बड़े प्यार व सम्मान के साथ खाना बनाकर खिलाते हैं। स्कूलों में अन्य पपेर होने पर स्कूलों : कमरों की साफ-सफाई, सीटें लगवाना आदि काम हमसे लिया गया। स्कूल में सफाई कर्मचारी होने के बावजूद भी हमसे स्कूल के सारे कमरों व मैदान में झाडू लगवाया जाता है। शौचालक साफ करवाये जाते हैं। कई स्कूलों में 4 भोजनमाताएं को खाना बनाने के लिए रखा गया हैं। लेकिन हम 4 भोजनमाताओं में एक भोजनमाता को खाना बनाने के स्थान पर उनको अध्यापक अपने अन्य कामों में लगाये रखते हैं। हमसे चतुर्थ कर्मचारी का काम लिया जाता रहा है। स्कूलों में होने वाले खेल-कूद हो या किसी अध्यापक का जन्मदिन व रिटायमेंट हो या बच्चों की विदायी पाटी हमसे पूरा-पूरा दिन काम लिया जाता। इन सभी कमों को करने के लिए हमें कोई भी अतिरिक्त राशी नहीं दी जाती हैं। हमारे बिमार होने पर हमें कोई अवकाश नहीं मिलता है। अगर हम किसी भी कारण से आवकाश कर देते हैं तो हमें विद्यालय से निकालने की धमकी दी जाती हैं और कई भोजनमाताओं के विरोध करने पर उनको काम से निकाल दिया गया है। पहाड़ों में छूआ-छूत के कारण मासिक धर्म के समय विद्यालयों में आने पर रोक हैं लेकिन अवकाश नहीं। ऐसे में हमें किसी दूसरी महिला को अपने स्थान पर पांच दिन खाना बनाने भेजना होता है। जिसका हमें उसे कम से कम 250 रू० पांच दिन का देना होता है। इस वजह से हमें मिलने वाला न्यूनतम से न्यूनतम मानदेय घटकर प्रतिमाह का 1750 रु० हो जाता है। स्कूलों में जातिय उत्पीडन भी हम भोजनमाताओं को झेलना होता है। कई स्कूलों के अध्यापक हमसे अपने घरों का काम भी कराते है। इसके बावजूद हमें अपने कार्यस्थलों में जरा भी सम्मान नहीं मिलता। सरकार हमारी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती हैं। हमसे स्कूलों में सफाई कर्मचारी व चतुर्थ कर्मचारी से कही ज्यादा काम कराये जाते हैं। लेकिन सरकार न तो हमको सरकारी कर्मचारी का दर्जा देती हैं और न ही न्यूनतम वेतन हमको दिया जाता हैं।।।सरकार के अनुसार अकुशल मजदूर की प्रतिदिन की मजदूरी कम से कम 178.00 रु० होनी चाहिए। भोजनमाताएं एक कुशल मजदूर की श्रेणी में आती हैं। जबकि भोजनमाताओं को प्रतिदिन का लगभग 66 रू० मिलता है। इतने कम मानदेय में एक व्यक्ति का भी जीवन नहीं चल सकता ऐसे में जिन भोजनमाताओं पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है, उनका क्या होगा ? सरकार द्वारा जो भी शासनादेश आये हैं उनमें भोजनमाताओं को विद्यालय से निकालने की बात होती है। बच्चे कम होने या स्कूलों के विलयीकरण की स्थिति में भोजनमाताओं को विद्यालय से पृथक करने की बात हैं। भोजनमाताएं हमेशा इस भय में जीवन जी रही हैं कि इतने वर्ष काम करने के बावजूद हमें कभी भी अपने काम से निकाला जा सकता है। हम बहुत मानसिक पीड़ा से गुजर रही है। सरकार का काम रोजगार देना है न कि रोजगार को छीनना या समाप्त करना। भोजनमाताओं को दिये जाने वाले मानदेय में एक हजार केन्द्र सरकार व एक हजार राज्य सरकार कुल मिलाकर दो हजार का मानदेय दिया जाता है। जबकि केरल, पडुचेरी, तमिलनाडू व अन्य कई राज्यों में भोजनमताओं को कई गुना ज्यादा वेतन मिलता है। भोजनमाताएं विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से ज्यादा काम करती हैं लेकिन आज तक हमको न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड, नैनीताल यूनियन द्वारा अलग-अलग समय में कई ज्ञापन दिए गये हैं, लेकिन सरकार द्वारा हमारी समस्याओं को हमेशा ही नजरअंजाद किया गया हैं। महोदय आपसे आग्रह है और हम उम्मीद करते हैं कि आप भोजनमाताओं की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए जल्द से जल्द निदान करेंगे। अन्यथा अपनी जीवन परिस्थितियों से मजबूर होकर हम उग्र अंदोलन करने को मजबूर होंगे। जिसकी जिम्मेदारी स्वयं आपकी होगी।

हम मांग करते हैं न्यूनतम वेतन लागू करो। सभी भोजनमाताओं को स्थायी करो।भोजनमाताओं को सरकारी कर्मचारी का दर र्दजा दिया जाएं। . स्कूलों में होने वाले उत्पीड़न पर रोक लगा। अमानवीय शासनादेश रद्द करो 101 पर तिसरी भोजनमाता को विद्यालय में रखा जाएं। भोजनमाताओं को विद्यालय से निकालना बंद करों। भोजनमाताओं को पी०एफ०, ई०एस०आई०, मातृत्व आवकाश, व वार्षिक अवकाश की सुविधा दी जाए। भोजनमाताओं को रिटाइमेंट के बाद पेंशन की व्यवस्था कि जाएं

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