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हलद्वनी उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में फ़र्जी नियुक्तियों की जाँच हो ,क
• “उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय” हल्द्व में नियुक्तियों हो रही भारी अनियमितताओं की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में करायी जाय
• फर्जी नियुक्तियां रद्द हों और दोषियों को दंडित किया जाय
“उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी में नियुक्तियों में गड़बड़ियों से लेकर भारी भ्रष्टाचार की बातें लगातार सामने आ रही हैं। विश्वविद्यालय में नियुक्तियों में अपने चहेतों की नियुक्तियों के लिए सभी नियमों को दरकिनार कर दिया गया है। गौरतलब है कि नियुक्तियों से पूर्व उत्तराखण्ड के राज्यपाल को एक आवेदक ने शिकायती पत्र भेजा था, जिसमें कतिपय व्यक्तियों के नियुक्ति पाने की पूर्व सूचना दी गई थी, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में जब नियुक्तियां हुई तो वे उन्हीं की हुई, जिनकी नियुक्ति होने की आशंका प्रकट करते हुए शिकायतकर्ता ने शिकायती पत्र, राज्यपाल को भेजा था। इसके बावजूद उन्हीं लोगों की नियुक्ति होना जिनकी नियुक्तियों की पूर्व संभावना जतायी गई थी भारी गड़बड़झाले की ओर स्पष्ट इशारा कर देता है। इससे स्पष्ट होता है कि विश्वविद्यालय में किस कदर मनमानी चल रही है।” भाकपा (माले) जिला सचिव डॉ कैलाश पाण्डेय ने एक प्रेस बयान में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि, “इसके बाबत तमाम समाचार माध्यमों में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय में 56 नियुक्तियों के फर्जी होने की खबरें सामने आयीं हैं। मजे की बात है कि उक्त नियुक्तियों में गड़बड़ियाँ राज्य सरकार के ही ऑडिट विभाग ने पकड़ी, लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसका सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि जब इस मसले पर उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऑडिट तो होता रहता है इसमें नयी बात क्या है? जिन नियुक्तियों में गड़बड़ियाँ बताई जा रही हैं, उनके पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उच्च शिक्षा मंत्री जी के चहेते लोगों को नियुक्तियों की भी चर्चा है। राज्यपाल को भेजे शिकायती पत्र में तो खुल कर उच्च शिक्षा मंत्री के नियुक्तियों में दखल होने की बात कही गयी थी। इतने स्पष्ट आरोपों और सबूतों के बाद भी कोई कार्यवाही राज्य सरकार की ओर से नहीं की जा रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि विश्वविद्यालय में चल रही अनियमितताओं को राज्य सरकार का संरक्षण हासिल है।”
उन्होंने कहा कि, “विश्वविद्यालय में छप्पन नियुक्तियों में गड़बड़ियों की खबर सामने आते ही राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने बयान दिया कि उक्त नियुक्तियों में उनकी संस्तुति नहीं ली गयी है और ये नियुक्तियाँ रद्द की जाएंगी। राज्यपाल ने कहा कि इस प्रकरण में उन्होंने जांच के आदेश दे दिये हैं। लेकिन नियुक्तियों में गड़बड़ी की आशंका और किसका चयन होना है इसकी पूर्व सूचना के संबंध में भेजा गया शिकायती पत्र तो राज्यपाल महोदया को ही शिकायतकर्ता द्वारा भेजा गया था। उसमें लगाए गए गंभीर आरोपों पर कार्यवाही के मामले में तत्काल कड़ा रुख अपनाया जाता तो नियुक्तियों के मामले में नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते विश्वविद्यालय के मनमानेपन पर कुछ तो अंकुश लगता।”
माले नेता ने कहा, “लगता है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय और नियुक्तियों में गड़बड़ी का चोली दामन का साथ है। विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय निदेशकों की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे, प्राध्यापकों की नियुक्तियों के मामले में भी गड़बड़ियों के आरोप लगे और 56 पदों पर नियुक्ति का मामला तो खुद सरकार के ही ऑडिट में पकड़ लिया गया। इसके अलावा आरक्षण के रोस्टर में नियमों का उल्लंघन किया गया। प्रोफेसरों की नियुक्ति में महिला आरक्षण पूरी तरह गायब कर दिया गया और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में मनमाने तरीके से छेड़छाड़ की गई।”
उन्होंने आरोप लगाया कि, “2017 में भाजपा की सरकार उत्तराखण्ड राज्य में बनने और धन सिंह रावत के उच्च शिक्षा के मंत्री बनाये जाने के बाद से ही उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय सहित राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों में गड़बड़ियों और अपने चहेतों को लाभ पहुँचाने के लिए सभी नियमों क़ायदों को ताक पर रखने के आरोप खुलेआम सामने आ रहे हैं।”
उन्होंने मांग की कि, “उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियों में हुई इन सभी गड़बड़ियों की जांच माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल की निगरानी में कराई जानी चाहिए, फर्जी नियुक्तियां रद्द होनी चाहिये और दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।”