Uncategorized
डॉ शरद चंद्र मिश्रा ने गढ़वाली गद्य की एक रचना का पाठ किया तथा एक पारंपरिक गीत गाकर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया– आज चलि जौलु मा, भोलु चलि जौलु मा,,,
एमबीपीजी के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत उत्तराखंड की प्रमुख भाषाओं कुमाउनी और गढ़वाली पर काव्य पाठ एवं विचार गोष्ठी का आयोजन ऑनलाइन, ऑफलाइन रूप में किया गया। विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कुमगढ़ पत्रिका के संपादक साहित्यकार दामोदर जोशी देवांशु ने कहा कि कुमाउनी और गढ़वाली उत्तराखंड परिवार की दो प्रमुख भाषाएं हैं, जिसमें प्रचुर मात्रा में मौखिक और लिखित साहित्य उपलब्ध है परंतु वर्तमान पीढ़ी रोजगार और पश्चिम के आकर्षण में अपनी जड़ों से दूर होती जा रही है। उन्होंने कुमगढ़ पत्रिका के संपादन से जुड़ी अपनी यादें साझा की। 2014 में पत्रिका का प्रथम अंक दामोदर जोशी देवांशु ने पेंशन से प्राप्त हो रही धनराशि से निकाला। जनसामान्य के सहयोग से वर्तमान समय में कुमगढ़ पत्रिका के 350 आजीवन सदस्य एवं 6 संरक्षक सदस्य हैं। गढ़वाली के प्रमुख रचनाकार बीना बेंजवाल, नरेन्द्र कठैत, डॉ सुरेंद्र दत्त सिमल्टी, वीणापाणि जोशी, डॉ उमेश चमोला तथा कुमाउनी के प्रमुख साहित्यकार देव सिंह पोखरिया, दिवा भट्ट, महेन्द्र ठकुराठी आदि पत्रिका के संपादन में अपना योगदान दे रहे हैं। दामोदर जोशी देवांशु ने स्वरचित कुमाउनी रचना अपने सुरीले अंदाज़ में प्रस्तुत की- ठंडी छ हवा ठंडो छ पाणी। माया पहाड़ैकि कैले नि जाणी। वेदों की वाणी यां ज्ञान की खाणी, रिसी-मुनिन की यू राजधाणी।
दामोदर जोशी ने अपने वक्तव्य के अंत में सभी से आग्रह किया कि किसी भी बोली या भाषा को जीवित तभी रखा जा सकता है जब उसे अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर दिया जाए। वर्तमान पीढ़ी जो इजा शब्द तक भूल गई हो उसे फिर से जड़ों से जोड़ना हम सबका दायित्व है।
इस अवसर पर रसायन विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ शरद चंद्र मिश्रा ने गढ़वाली गद्य की एक रचना का पाठ किया तथा एक पारंपरिक गीत गाकर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया– आज चलि जौलु मा, भोलु चलि जौलु मा।
कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र जोशी ने किया। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के सभी प्राध्यापक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।