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उत्तराखण्ड

चुनावी त्योहारों का आगमन !

चुनावी त्यौहार आ चुका है अब चुनावी दूल्हे अपने अपने रिश्तेदारों के यहां रिश्तेदारी का निमंत्रण देने पहुंचेंगे अमा दादा काका चाचा ताई बुआ ,बहन बड़े भाई छोटे भाई ,टोलिया लेकर घर घर दस्तक देने का समय आ चुका है गाली गली कोने वाले घर तक पैर छूने का समय आने वाला है क्योंकि चुनावी मैदान में उतरे है तो रिश्तेदार भी होना जरूरी हैं उस समय चुनावी पुलाव का निमंत्रण भी दिया जाता है फिर क्या आपके चुनाव की तैयारियां का शिल शिला शरू हो जाता एक लंबी वोटर लिस्ट अपने साथ लेकर चलते हैं कि कोई छूट न जाए वो समय ऐसे लगता हैं सब कुछ मिल जाएगा हर किसी देखभाल करने के एक खासमखास को चुना जाता है जो अपनी जिम्मेदारी निभा सके फिर क्या सब कुछ देखने को मिलता पैसा भी पानी की बहना शरू हो जाता हैं जो लोग मधुशाला के इर्दगिर्द घूमते थे वो फिर इन चुनावी निमत्रण का इंतजार करते हैं ,कि हम झंडे पकड़ कर साथ चलेंगे और शाम का जुगाड़ पक्का है क्योंकि ये समय बिना काम किये दवात मिल जाती हैं ,
चुनावी दूल्हा को बहुत चिंता रहती है एक बार बस कुर्सी मिल जाए बस फिर क्या बल्ले बल्ले होगी फिर कौन पूछता है इन रिस्तेदारों को ,नेता जी एक सूत्री कार्यक्रम रहता है कि चुनाव में जो खर्च हुआ है उसको भी देखना है वो भी इक्कठे करने है पांच साल की कुर्सी में जितना खर्च हुआ है उससे अधिक इक्कठे करने है अगर दुबारा मौका मिला तो फिर से निमंत्रित देना है ,


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