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उत्तराखण्ड

गठिया रोग के लक्षण एवं उपचार को लेकर मेडिकल कॉलेज में कार्यशाला का आयोजन,,

 हल्द्वानी ,बाल रोग में गठिया रोग के लक्षण एवं उनके बचाव को लेकर आज  हल्द्वानी कें बाल रोग विभाग द्वारा मेडिकल कॉलेज परिसर स्थित लेक्चर थियेटर में बच्चों में गठिया विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य बच्चों में गठिया के लक्षण, जांच व उपचार के बारे में जानकारी देना था।

कार्यशाला में राजकीय मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी मेडिसन विभाग के एसो0 प्रोफेसर डा0 परमजीत सिंह ने कहा कि लोगों में यह भ्रांतिया है कि गठिया रोग अधिक उम्र के लोगों को ही होता है, परंतु गठिया रोग 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी हो सकता हे।
डा0 परमजीत सिंह ने बच्चों में गठिया के लक्षण, जांच व उपचार के बारे में विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि जुवेनाइल आर्थराईटिस जिसे बाल गठिया रोग के रूप में भी जाना जाता है, जो 16 साल की उम्र में ही शुरू हो जाता है, जिसके लक्षणों में लम्बी अवधि से तेज बुखार, वजन का न बढ़ना, मांशपेशियों में कमजोरी, जोड़ों में दर्द आदि शामिल है।
डा0 परमजीत सिंह ने बच्चों में गठिया के लक्षण दिखाई देने पर समय रहते उचित जांचें कराकर शुरूआत में ही उपचार कराने की सलाह दी, जिससे बच्चों के जोड़ों में विकृति, हाथ पैरों में टेढ़ापन व अन्य दृष्प्रभावों से बचा जा सके।
बच्चों के गठिया में टेस्ट रिपोर्ट नैगेटिव आ सकती है, जिससे उपचार में देरी हो जाती है। डा0 परमजीत सिंह ने गठिया रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर समय पर ईलाज कराने पर जोर दिया। कार्यशाला को संबोधित करते हुए डा0 रितु रखोलिया विभागाध्यक्ष बाल रोग विभाग ने कहा कि 16 साल से कम उम्र के 1 लाख में से 50 बच्चों में गठिया रोग पाया जाता है। भारत की जनसंख्या के आधार पर अनुमानित 2.5 लाख बच्चों में गठिया रोग हो सकता है।
डा0 रितु रखोलिया ने कहा कि समय पर उपयुक्त ईलाज होने पर बच्चों की ग्रोथ तथा जोड़ सुरक्षित रहते है तथा बच्चे सामान्य जीवन जी सकते है। प्रायः देखा जाता है कि समय पर इसका निदान न होने के कारण बच्चों के जोड़ विकृत हो जाते है, बच्चों के ग्रोथ में कमी, जोड़, हाथ-पैर से बच्चे विकलांग हो सकते है। आंख की रोशनी, किडनी, फेफड़ों में प्रभाव व सांस लेने की मांसपेशियों में कमजोरी के चलते जानलेवा हो सकता है।
डा0 रितु रखेलिया ने डाक्टर से परामर्श लेकर समय पर ईलाज कराने पर जोर दिया। कार्यशाला को संबोधित करते हुए एम्स दिल्ली के डा0 नरेन्द्र बागरी ने बच्चों में गठिया की स्थिति और सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) ल्यूपस के लक्षण, जांच व उपचार के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ल्यूपस के संभावित लक्षणों में थकान, जोड़ों में दर्द, बालों का झड़ना और बच्चों के गालों और नाक पर तितली दाने आदि शामिल है। दवाएं ल्यूपस को कम करने में मदद कर सकती है।
डा0 नरेन्द्र बागरी ने बच्चों में (एसएलई) ल्यूपस के लक्षण दिखाई देने पर समय रहते उचित जांचें कराकर शुरूआत में ही उपचार कराने की सलाह दी। कार्यशाला में पीजी छात्र-छात्राओं ने पेपर और पोस्टर प्रस्तुतीकरण किया। डा0 अरूण जोशी प्राचार्य राजकीय मेडिकल कॉलेज ने कहा कि बाल रोग विभाग की यह सराहनीय पहल है इस प्रकार के कार्यक्रम के आयोजनों से भावी चिकित्सकों को महत्वपूर्ण चिकित्सकीय जानकारी मिलती है, जिसका लाभ मरीजों के उपचार में मिलेगा और चिकित्सकीय गुणवत्ता में और अधिक सुधार होगा।

कार्यशाला में चिकत्सा अधीक्षक
डा० गोविंद सिंह तीत्याल ,डा0 रितु रखोलिया विभागाध्यक्ष बाल रोग विभाग, डा0 परमजीत सिंह, डा0 गुंजन नगरकोटी, डा0 पूजा अग्रवाल, डा0 प्रणयी बोस, डा0 प्रेरणा, डा0 अनिल अग्रवाल, डा0 अजय पांडे, डा0 अमित सुयाल, डा0 रवि सहोता, डा0 रवि अदलखा, डा0 प्रदीप पंत, डा0 अदिति, डा0 प्रमोद समेत कई चिकित्सक व पी0जी0 के छात्र-छात्राएं एवं आलोक उपर्ति जनसंपर्क अधिकारी मौजूद थे।

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