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उत्तराखण्ड

मानव सौहार्द और विश्वबंधुत्व की मिसाल: 78वां निरंकारी संत समागम,,

हल्द्वानी, 3 नवम्बर। 78वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने विशाल श्रद्धालु समूह को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘आत्ममंथन साधारण सोच की प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने की साधना है, जो परमात्मा के अहसास से सहज हो सकती है।’’चार दिवसीय संत समागम में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु सौहार्दपूर्ण वातावरण में मानवता एवं विश्वबंधुत्व का संदेश दे रहे हैं। सतगुरु माता जी ने बताया कि जब मन प्रभु से जुड़ता है, तो हर कार्य सहजता से पूर्ण होता है। सकारात्मक व्यवहार अपनाने से जीवन में शांति और सुकून आता है।उन्होंने कहा कि जैसे पहाड़ों पर प्रतिध्वनि लौट आती है, वैसे ही हमारा व्यवहार भी प्रतिक्रिया के रूप में हमारे पास लौटता है। इसलिए सभी को ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिसकी प्रतिक्रिया सुखदायी हो।राजपिता रमित जी ने भी समागम में संबोधित करते हुए कहा कि परमात्मा एक सार्वभौमिक सत्य है, जिसे सतगुरु की कृपा से जाना जा सकता है। सच्चा आत्ममंथन केवल परम सत्य को पहचानने से ही सम्भव है।समागम के दौरान आधुनिक तकनीक से सुसज्जित तीन खंडों वाली निरंकारी प्रदर्शनी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी रही। मुख्य प्रदर्शनी, बाल प्रदर्शनी एवं संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन की प्रदर्शनी में मिशन के इतिहास, सत्गुरुजी की मानव कल्याण यात्राएं, एवं सामाजिक गतिविधियों को दर्शाया गया।मिशन द्वारा देश-विदेश में स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सशक्तिकरण तथा सादे सामूहिक विवाह आदि समाज उत्थान कार्य भी प्रदर्शनी का भाग रहे। बच्चों के लिए आध्यात्मिक शिक्षा पर आधारित बाल प्रदर्शनी का भी आयोजन हुआ।

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