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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर हुई एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी


उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में
मेंटल हैल्थ व मीडिया की भूमिका पर हुई बात
टीवी पर टीआरपी के लिए दिखाए जा रहे हैं जादू टोना वाले टीवी धारावाहिक- प्रो. मयंक अग्रवाल,,
अधिक से अधिक जागरूकता कार्यक्रम तैयार करने की जरूरत- अजय भट्ट,,,
अपनी आय का मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करने की जरूरत- मधुमिता नयाल,,
परंपरागत संचार माध्यमों से फैलाएं जागरुकता- प्रो. प्रमोद कुमार,
 मानसिक स्वास्थ्य का खराब होना हमें नशीले प्रदार्थों की तरफ ले जा सकता है और यहीं से अपराध की शुरुआत भी होती है यह कहना है पतंजलि विश्वविदायलय हरिदार के उपकुलपति डा. मयंक अग्रवाल का।डा. मंयक अग्रवाल प्रसार भारती व दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक रहे हैं।  बुधवार को उत्तराखंड मुक्त विश्वविदायलय के एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने यह बात कही। युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में नैनीताल संसदीय क्षेत्र के सांसद अजय भट्ट ने शिरकत की। उन्होंने कहा कि समाज में आज जो लोग मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं तनाव व अवसाद में जा रहे हैं उसके पीछे की वजह हमारा संस्कारों से दूर होना है। उन्होंने कहा कि पहले से परिवारों का जो सामूहिक ढांचा था वह लगातार ध्वस्त होता जा रहा है एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है जिससे लोगों मे अवसाद पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि समाज में पत्रकारों का बहुत बड़ी भूमिका है पत्रकारों को जहां समाज में एक सकारात्मक माहौल बनाने के लिए सकारात्मक खबरों को उजागर करना चाहिए वहीं संवेदनशीलता भी बरकरार रखनी होगी। हरिद्वार से आए पतंजलि विवि के उपकुलपति ने कहा कि हमारे टीवी चैलन लगातार प्राइम टाइम में इस तरह के धारावाहिकों को बढ़ाते हैं जो अँधविश्वास , जादू टोना, तंत्र मंत्र जैसी चीजों को बढ़ावा देते हैं। जिनमें वैज्ञानिकता का बहुत अभाव होता है। इंटरनेट पर आज हमारे बच्चे साइबर बुली, हैकिंग व खतरनाक खेलों की तरफ बढ़ रहा है बच्चों के प्रति हमारा दायित्व सबसे बड़ा है कि हम उन्हें समय दें और निगरानी रखें कि वह इंटरनेट पर क्या कर रहे हैं क्योंकि लगातार मोबाइल पर गेम खेलने से वह अवसाद की तरफ जा रहे हैं. उन्होंने वेदों व भारतीय ज्ञान परंपरा में इसके हल को तलाशा और कहा कि हमारी सामूहिकता ही इस मानसिक बीमारी से हमें उबारेगी।
कार्यक्रम के पहले सत्र की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन सचिव प्रो. राकेश चन्द्र रयाल ने बताया कि मीडिया को मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने की बहुत जरूरत है। मीडिया से सबसे ज्यादा युवा ही प्रभावित है इसीलिए इस विषय को आज की संगोष्ठी का विषय रखा गया है।
विश्विद्यालय के कुलपति प्रो, ओ.पी.एस नेगी ने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय में बहुत सारे विषय संचालित हो रहे हैं हमें देखना होगा कि हमारा हर विषय कैसे समाज के लिए अधिक से अधिक उपयोगी साबित हो सकता है उन्हें समाज में सीधे कैसे अप्लाई कर सकते हैं व इसमें सासंद जी को कैसे जोड़ सकते हैं इस पर बात की। पहले सत्र में रेडक्रास सोसाईटी के उत्तराखंड के चैयरमैन गौरव जोशी ने कहा कि रेडक्रास सोसाइटी की स्थापना ही मानवता का भलाई के लिए हुआ है हम लोगों में हर तरह की जागरूकता के लिए काम कर रहे हैं।संगोष्ठी के आयोजन समिति की अध्यक्ष प्रो. रेनू प्रकाश प्रभारी कुलसचिव प्रो, पी.डी. पंत ने सभी का आभार व्यक्त किया। पहले सत्र का संचालन डा. शशांक शुक्ला ने किया।
दूसरे तकनीकि सत्र में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में मीडिया विभाग में प्रोफेसर डा. कृपाशंकार चौबे ने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर गांधी जी के आरोग्य के सिद्वात को रखा उन्होंने कहा कि हमारे खान पान का हमारे मानसिक स्वास्थ्य से सीधा रिश्ता होता है। डा. सुशीला तिवारी राजकीय मेडिकल कालेज व अस्पताल में मानिसक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. आकाश शर्मा ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बने हुए कलंकों को मिथों को सबसे पहले हमें तोड़ना होगा. उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य् के मुद्दों की कवरेज के लिए भारत सरकार के द्वारा गाइडलाइन जारी की गई है जिसमें कहा गया है कि इन मुद्दों को कवर करने के लिए बहुत संवेदनशीलता की जरूरत होती है। मीडिया में जो भी दिखाया जा रहा है उससे सबसे पहले युवा ही प्रभावित होता है लिहाजा उसके बुरे प्रभाव भी सबसे पहले युवाओं पर ही पड़ता है। सुसाइट की रिपोर्टिंग को सुनकर ही कई लोग जो पहले से ही अवसाद में होते हैं या बहुत सारी परेशानियों से घिरे रहते हैं वह खुद भी सुसाइट कर लेते हैं ऐसे बहुत मामले सामने आए हैं. भारतीय जन संचार संस्थान में प्रोफेसर डा. प्रमोद कुमार ने कहा कि मानसिक बीमारियों को दूर करने के लिए हमें सकारात्मक कहानियों को अखबार के पहले पन्नों में जगह देनी होगी। साथ ही परंपरागत संचार के साधनों का इस्तेमाल करना होगा। इसमें मंदिर के पुजारी से लेकर कई माध्यम हो सकते हैं. सामुदायिक रेडियो नीम हकीमों से इन लोगों को बचाने व जागरुक करने में लोकल भाषा में कार्यक्रम तैयार कर जागरूकता फैला सकता है। सोबन सिंह जीना विवि में मनोविज्ञान की प्रोफेसर मधुमिता नयाल ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य पर हमें अपनी आय का बिल्कुल भी खर्च नहीं करते हैं यहीं से सारी समस्याएं शुरु हो जाती हैं. नकारात्मक विचार जब हमारे भीतर जन्म लेते हैं वहीं से समस्या शुरु हो जाती है हमें अपने चारों ओर खुशी व हैप्पीनैस का माहौल बनाना होगा जिससे हमें जड़े से इस समस्या को खत्म कर सकते हैं।  रेडक्रास सोसाइटी के महासचिव हरीश चन्द्र शर्मा ने कहा कि लोगों की समस्याओं के निदान के लिए बहुत सारी संस्थाओं को एक साथ मिलकर आगे आना होगा.  ने  दूसरे सत्र का संचालन डा. ललित कुमार पंत ने किया। 
संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के प्रो. गिरिजा पांडे, प्रो. एम.एम. जोशी, डा. अखिलेश सिंह, डा. मनोज पांडे, डा. आशुतोष बिष्ट, डा. गणेश जोशी, डा. डिगर सिंह फर्स्वाण, डा. शालिनी चौधरी, डा. मंजरी अग्रवाल, रेडक्रास सोसाइटी के कोषाध्यक्ष डा. मोहन खत्री, डा. कल्पना लखेड़ा, डा. राजेन्द्र क्वीरा, बृजेश बनकोटी डा. रुचि पांडे, डा. लता जोशी समेत बहुत से शोधार्थी मौजूद रहे। 

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