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उत्तराखण्ड

तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोग, है है है सब जग भयो जै जै जै सुरलोक,,


धर्म की चादर ,गुरु नानक देव जी की नोवीं जोत साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के शहीदी पूरब पर आज हल्द्वानी में गुरद्वारा श्री गुरु नानक पूरा मे गुरमति समागम आयेजित किए गए जिसमें विशेष तौर पर आज सुबह गुरु साहिब के मुख से उचारी गयी बानी नोवे महले के श्लोक का पाठ समूह संगत द्वारा कर के गुरु ग्रंथ साहिब जी के अखंड पाठ साहिब का भोग समूह साध संगत एवं सेवक परिवारो की तरफ से डाला गया।उपरन्त हजूरी रागी भाई प्रभु सिंघ जी ने एवं हल्द्वानी के बाकी गुरद्वारा साहिब के रागी सिंघ जी ने कीर्तन करा।भाई जसपाल सिंघ, दलजीत सिंघ ने भी कीर्तन की हाज़री भरी।दिल्ली से आये प्रचारक डॉक्टर मनप्रीत सिंघ जी ने गुरु तेग बहादुर साहिब के जीवन और उनकी गुरवाणी के विषय मे प्रकाश डाला। गुरु तेगबहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद साहिब जी था। वे बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। श्री गुरु तेगबहादुर जी सिखों के नौवें गुरु हैं। जिन्होंने धर्म व मानवता की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की कुर्बानी दी। 
गुरु तेगबहादुर जी की शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई। इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण जी के अकाल चलाने के बाद गुरु तेगबहादुर जी को गुरु बनाया गया था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया। इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेगबहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया।  औरंगजेब खुद के धर्म के अलावा किसी और धर्म की प्रशंसा नहीं सुन सकता था। उसके सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि वह सबको इस्लाम धारण करवा दे। औरंगजेब को यह बात समझ में आ गई और उसने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया और कुछ लोगों को यह कार्य सौंप दिया। 
उसने कहा कि सबसे कह दिया जाए कि इस्लाम धर्म कबूल करो या मौत को गले लगाओ। जब इस तरह की जबरदस्ती शुरू हो गई तो अन्य धर्म के लोगों का जीना मुश्किल हो गया। इस जुल्म के शिकार कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह ‍इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं। हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है। जहां से हम पानी भरते हैं वहां हड्डियां फेंकी जाती है। हमें बुरी तरह मारा जा रहा है। कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए। 
जिस समय यह लोग समस्या सुना रहे थे उसी समय गुरु तेगबहादुर जी के नौ वर्षीय सुपुत्र बाल गोबिंद राय (गुरु गोविंद सिंघ) वहां आए और पिताजी से पूछा- पिताजी यह लोग इतने उदास क्यों हैं? आप इतनी गंभीरता से क्या सोच रहे हैं?
गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्या बताई तो बाला प्रीतम ने कहा- इसका निदान कैसे होगा? गुरु साहिब ने कहा- इसके लिए बलिदान देना होगा। बाला प्रीतम ने कहा कि आपसे महान पुरुष मेरी नजर में कोई नहीं है, भले ही बलिदान देना पड़े पर आप इनके धर्म को बचाइए। 
उसकी यह बात सुनकर वहां उपस्थित लोगों ने पूछा- अगर आपके पिता जी बलिदान दे देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएगी। बालक ने कहा कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।
फिर गुरु तेगबहादुर जी ने उन पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह ‍दो ‍अगर गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे और तुम हम पर जबरदस्ती नहीं कर पाओगे। औरंगजेब ने इस बात को स्वीकार कर लिया।गुरु तेगबहादुर जी दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए। वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। किंतु बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए। उन्हें कैद कर लिया गया, उनके शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर जी टस से मस नहीं हुए। उन्होंने औरंगजेब को समझाने की कोशिश कि अगर तुम जबरदस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो तो यह जान लो कि तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि तुम्हारा धर्म भी यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म किया जाए।औरंगजेब को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु साहिब के शीश को काटने का हुक्म दे दिया और गुरु साहिब ने हंसते-हंसते अपना शीश कटाकर बलिदान दे दिया। इसलिए गुरु तेगबहादुरजी की याद में उनके शहीदी स्थल दिल्ली पर एक गुरुद्वारा स‍ाहिब बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है।गुरु साहिब की शहीदी पूरी मानवता के लिये थी न कि किसी धर्म विशेष के लिए।दरबार साहिब अमृतसर से आये कीर्तनिये भाई अमनदीप सिंघ एवं साथियों ने मनोहर कीर्तन सीस दिया पर सिररर न दियाअपने सतगुर कै बलहारे आदि शब्दो का गायन करके संगत को निहाल करा।अंत मे मुख सेवादार स.अमरजीत सिंघ बिंद्रा द्वारा समूह संगत का अभिवादन व धन्यवाद किया गया।कार्यक्रम का संचालन स.हरजीत सिंघ सच्चर जी ने किया।उन्होंने ने शाम के दीवान का समय भी बताया व संगत से विनती करी की समय से गुरद्वारा साहिब में आये।समूह संगत ने गुरु का लंगर छका।कार्यक्रम में अमरजीत सिंघ बिंद्रा,रंजीत सिंघ,नरेंद्र जीत सिंघ रोडू,अमरजीत सिंघ सनी,जसपाल सिंघ मालदार,अमरजीत सिंघ सेठी,परमजीत सिंघ,प्रभजोत सिंघ,सम्पूरन सिंघ,जसबीर कौर,रवलीन कौर,बलजीत कौर रोजी,बेबी आंटी,आदि ने सहयोग किया

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