उत्तराखण्ड
अधिकारियों की लापरवाई से जंगल जल रहे हैं,आखिर इसका जवाब कौन देगा ?
यह कार्य माह फरवरी में अग्नि काल से पूर्व एवं अग्नि काल के बाद समय-समय पर फायर ड्रिल के रूप में होता है, जिसके लिए अलग से बजट
आवंटित होता है, मगर वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारी इस बजट को जुलाई में आबंटित करके फर्जी बिल माह जुलाई में बनाते हैं, फायर वाचर नहीं रखे जाते हैं माह जुलाई में फायर वाचरों के बिल बनाकर सारा बजट हड़प लिया जाता है, डिविजनों की बोलियां लग रही है, उत्तराखंड के सारे जंगल जल गए हैं, अपने-अपने डिविजनों का वर्किंग प्लान पढ़िए, कंट्रोल बर्निंग, अग्नि रेखाओं का कटान व सफाई, फायर सीजन में फायर ड्रिल वृक्षारोपण क्षेत्र के चारों ओर अग्नि रोधी पट्टी को काटा जाना, जन जागरूकता, ग्ग्राम अग्नि समितियों का गठन,अगर यह सभी काम विभाग अपने हिसाब से अग्नि काल से पूर्व करता तो क्या ऐसी दुर्दशा जंगलों की होती,
आज पानी विभाग के अधिकारी शासन की मीटिंग में ग्रामीणों द्वारा कृषि अवशेषों को जलाने के कारण वनों की तरफ अग्नि फैलने का तथ्य देकर मुख्यमंत्री, वन मंत्री एवं माननीय न्यायालय को गुमराह कर रहे हैं, आबादी क्षेत्रों की ओर बजट की व्यवस्था कर अग्नि रेखाएं क्यों साफ नहीं की गई इसका जिम्मेदार डी एफ ओ ही है, मैं पता होना चाहिए कि मेरे पास कितनी अग्नि रेखा है उसके लिए शासन से कितना बजट मुझे अलॉट करना है तथा कितना बजट अपने स्टाफ में बांटना है ताकि यह अग्नि रोधी कार्य ससमय पूरे हो सके, क्या इसको मजाक में लेते हैं, जो प्रभकी है फायर प्लान बने हैं उनकी समीक्षा होनी चाहिए उन प्लेनों के अकॉर्डिंग क्यों कार्य नहीं हुए क्यों शायद समय से बजट नहीं दिया गया इसकी क्या जवाब देह व्यवस्था है, क्या मजाक बना रखा है