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उत्तराखण्ड

चुनावी बरसात में राजनीतिक दलों का आगमन,

उत्तराखंड में भले ही राजनीतिक दलों में बढ़ोतरी हुई हैं पर विकास नही हर दल जनता को लुभाने के लिए क्या एंटीबायोटिक दे रहे हैं ये जीतने के बाद उसका रिजल्ट मिलता है ये जनता ही बेहतर तरीके से जानती होगी कि जीतने के बाद मंत्री जी जनता को कितना समय देते हैं आज उत्तराखंड कर्ज की मार झेल रहा है ये कर्ज कौन चढ़ा रहा है ये राजनीतिक दल ,क्योंकि , सरकार चलाने के लिए मंत्रियों की तनख्वाह और तमाम तरह के भत्ते के लिए चाहिए भले ही कर्मचारियों की तनख्वाह मिले या न मिले मंत्रियों के भत्ते जरूर मिलते हैं उत्तराखंड बनने के बाद आज भी सरकारे कर्ज से ही चल रही है क्योंकि स्थानीय रोजगार है नही अगर है भी जो उधोगपति है उनके हाथ से प्रदेश चल रहा है वह चुनावों में राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं उसके बदले में वह अपना फायदा ढूढ़ते है नेताओं की सिर्फ 5 साल की मौज मस्ती है उनकी बला से जनता मरे या जीए आखिर भार तो जनता पर ही पड़ना है पांच साल में नेता इतना कमा लेते है उनकी दो चार पीढ़ी आराम से खा लेगी इन नेताओं के भाषणों से जनता इतनी प्रभावित हो जाती हैं जैसे ये ही इनके अन्नदाता होंगे जनता का टैक्स रूपी पैसे इन नेताओं की मौजमस्ती के अलावा कुछ भी नही है चुनावों पर सारे घोषणा पत्र भरे जाते है जीतने के बाद उन घोषणा पत्रों की याद नहीं रहता है जो घोषणा की थी उस पर क्या करना है ,आज लाखो लोगो की नॉकरी नही है जिनकी है भी उनकी भी धार में लगी हुई है वो आधी सेलरी में काम कर रहे है ,पीस कौन रहा है जनता न ,आखिर क्यों नहीं जनता जागरूक होती आपका अधिकार आपको मिले ,नेतागीरी कोई रोजगार नही वो जनता की सेवा के लिए जनता चुन कर भेजती है नेता जी सिर्फ चुनावों में जनता का आश्रीवाद लेने आते है उसके बाद उस आश्रीवाद का प्रसाद लात मारकर दिया जाता हैं सुरक्षा कर्मियों के सहयोग से बाहर धकेला जाता है ,चुनाव जे दौरान ही जनता अच्छी लगती हैं ,उसके बाद कोई नहीं पूछता है ,


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