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उत्तराखण्ड

गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने व पहाड़ी राज्य के अनुरूप विकास की योजनाएं लागू करने की मांग को लेकर पहाड़ी आर्मी ने उत्तराखंड ने आज उप जिलाधिकारी हल्द्वानी के मार्फत महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया पहाड़ी आर्मी के कार्यकर्ता बुद्ध पार्क तिकोनिया से रैली के रूप में बोल पहाड़ी हल्ला बोल स्थाई राजधानी गैरसैण नशा नहीं स्थाई रोजगार दो जय कुमाऊं जय गढ़वाल जय पहाड़ी जय पहाड़ के नारे लगाते हुए


गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने व पहाड़ी राज्य के अनुरूप विकास की योजनाएं लागू करने की मांग को लेकर पहाड़ी आर्मी ने उत्तराखंड ने आज उप जिलाधिकारी हल्द्वानी के मार्फत महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया पहाड़ी आर्मी के कार्यकर्ता बुद्ध पार्क तिकोनिया से रैली के रूप में बोल पहाड़ी हल्ला बोल स्थाई राजधानी गैरसैण नशा नहीं स्थाई रोजगार दो जय कुमाऊं जय गढ़वाल जय पहाड़ी जय पहाड़ के नारे लगाते हुए
शनिवार को उप जिलाधिकारी हल्द्वानी कार्यालय के लिए कुछ किया
कूच का नेतृत्व पहाड़ी आर्मी के संयोजक हरीश रावत ने किया सौपे गए ज्ञापन में पहाड़िया आर्मी संगठन ने इस बात को जोरदार तरीके से उठाया है कि सरकार पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड की राजधानी पर्वतीय अंचल गैरसैण में स्थापित करने के लिए कार्य करे।
संगठन ने कहा हमारा अभियान गैरसैंण स्थाई राजधानी को लेकर संकल्पित है उन्होंने कहा स्थाई राजधानी के सवाल को लक्ष्य तक पहुँचाया जाएगा तभी उत्तराखंड का विकास संभव है हमारा उद्देश्य उत्तराखंड के कैबिनेट को रिवर्स पलायन करवाना है
इसमें कहा गया है कि उत्तराखंड की विषम परिस्थितियों को दृष्टिगत जहां आवश्यक कैबिनेट मीटिंग, सत्र संचालन व शासकीय कार्य जन राजधानी गैरसैण से संपादित हों, वही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सभी जनप्रतिनिधि गण व विधायक गण अधिकांश समय अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों को ही समय प्रदान करें। ज्ञापन में कहा गया है
दिए गए ज्ञापन में ”नियोजित विकास की अवधारणा” पर बल देते हुए, देहरादून के अस्थाई राजधानी बनने के बाद यहां तबाह हो चुके चाय बागान, लीची-खुमानी-अमरूद-आम आदि के लहलहाती बागान, मटर व बासमती पैदा करने वाले खेतों का समाप्त होना, सभी नदियों में अवैध अतिक्रमण और रोजाना लगने वाले गंदगी के अंबार को, शर्मसार करने वाला बताया गया है। अनियोजित विकास की वजह से वीवीआइपी (VVIP) आवाजाही के दबाव के कारण पुलिस के लिए अपराध नियंत्रण पर अंकुश लगा पाने में आ रही दिक्कत व जनता के ट्रैफिक संचालन का बामुश्किल संपादित होने को उजागर किया गया है।
ज्ञापन मैं पहाड़ी आर्मी ने अपनी मांगों को प्रमुखता से रखी है मांगे रखी
1- एक राज्य एक राजधानी स्थाई राजधानी गैरसैण घोषित की जाए .
2- पर्वतीय राज्य की अवधारणा को बचाए रखने हेतु आगामी विधानसभा परिसीमन को स्थगित किया जाए और क्षेत्रफल के आधार पर विधानसभाओं का परिसीमन हो.
3-उत्तराखंड राज्य के संसाधनों का शोध परख वितरण एवं समायोजन किया जाए.
4- पर्वतीय राज्य हिमाचल की तर्ज में प्रदेश में भू कानून लाया जाए और अनिवार्य रूप से चकबंदी कानून को प्रभावी किया जाए .
5- उत्तराखंड के मूल निवासियों को गैर सरकारी संस्थानों ( प्राइवेट कंपनीज) में 70% स्थाई नौकरी दी जाए।
6- सूअर, बंदर बाड़े और गौशालाओ की प्रत्येक पंचायत क्षेत्र में अनिवार्य स्थापना किया जाए .
7- प्रत्येक परिवार से किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए या प्रति परिवार ₹25000 प्रति महीना बेरोजगारी भत्ते के रूप में दिए जाए.
8-पर्वती परंपरागत कृषि ‘बारानाजा’ 12 अनाज संरक्षण और जैविक कृषि विकास की अनिवार्य योजना लागू की जाए
9 -गैरसैण स्थाई राजधानी के लिए सन 2000 से आंदोलन कर रहे आंदोलनकारियों के ऊपर दायर मुकदमे वापस किया जाए.
देहरादून पर जरूरत से ज्यादा बल देने के कारण अधिकारियों, डाक्टर, शिक्षक व अधिकांश राज्य कर्मियों का पहाड़ों में सेवाएं देना शान के खिलाफ समझने की मानसिकता को खतरनाक बताया गया है। पौड़ी में गढ़वाल कमिश्नर का न बैठना, शिक्षा निदेशालय का देहरादून ले आना आदि सब जनप्रतिनिधियों, अधिकारीगणों का यहीं देहरादून में रैन-बसेरा बनाने की जुगत लड़ाने को, पलायन की मानसिकता को मजबूत बनाने वाला करार दिया गया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि गैरसैण राजधानी का निर्मित न होने से पर्वतीय प्रदेश को राजनीतिक शक्ति का केंद्र नहीं मिल पा रहा है, जिससे गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं और पर्वतीय अंकों में वीराना पसरने लगा है। कोई भी दूर-दृष्टि रखने वाले और राष्ट्र चिंतन रखने वाले व्यक्ति, आने वाले भयावह परिणामों का आकलन कर सकता है। सीमांत प्रदेश उत्तराखंड के लिए इस मनोवृत्ति को खतरनाक बताया गया है। अस्थाई राजधानी देहरादून और ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण का शासनादेश को भी गंभीर संवैधानिक त्रुटि बताया गया है; और साथ में कहा गया है संगठन ने इस बात पर भी सवाल उठाया गया है कि झारखंड की राजधानी रांची व छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर बना दी गई थी, तो इन दोनों राज्यों के साथ गठित उत्तराखंड जो कि भारत संघ का 27 वां राज्य था को राजधानी से क्यों वंचित रखा गया? उत्तराखंड के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों किया गया, यह समझ से परे है।

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