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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में भर्तियों के महाघोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से करायी जाय : डॉ कैलाश पांडेय

• उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में भर्तियों के महाघोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से करायी जाय : डॉ कैलाश पांडेय
• उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में भर्ती के लिए योग्यता का पैमाना एकेडमिक क्वालीफिकेशन नहीं बल्कि संघ भाजपा से जुड़ाव बन गया है
• सरकारी भर्तियों में घोटालों के खिलाफ युवाओं का आंदोलन स्वागत योग्य, युवा आक्रोश राज्य की दिशा और दशा बदलने में कारगर भूमिका निभा सकता है
• हल्द्वानी में होने वाली 14 सितंबर की बेरोजगार युवा महाआक्रोश रैली को भाकपा (माले) अपनी पूरी ताकत से सक्रिय समर्थन देगी

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड के होनहार नौजवानों बेरोजगारों के रोजगार की राजनीतिक लूट का अड्डा बना हुआ है. सरकारी नौकरियों की भर्ती में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं और इसके खिलाफ राज्य के युवाओं का गुस्सा भी जगह जगह फूटता जा रहा है. युवा बेरोजगारों का सरकारी पदों में हुए घोटालों के खिलाफ इस भ्रष्ट भाजपा सरकार के खिलाफ उतरना स्वागत योग्य है. युवा आक्रोश राज्य की दिशा और दशा बदलने में कारगर भूमिका निभा सकता है.” भाकपा (माले) नैनीताल जिला कमेटी की ओर से जारी बयान में यह बात कही गई.

भाकपा(माले) नैनीताल जिला सचिव डॉ कैलाश पांडेय ने कहा कि,”हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में तो स्वयं कुलपति ही खुद हाकम सिंह के रोल में उतर आए हैं. उनके कार्यकाल में 150 से ज़्यादा फर्जी भर्ती के मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से करायी जानी चाहिए.”

डॉ कैलाश पांडेय ने कहा कि, “मुक्त विश्वविद्यालय भर्ती घोटाले में राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री की सीधी भूमिका है इसीलिए भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बाद भी तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद कुलपति का कार्यकाल बढ़ा दिया गया. हद तो तब हो गई जब अधिकतम उम्र ना होने के बाद भी 244 उम्मीदवारों में से श्री ओमप्रकाश नेगी को फिर से कुलपति नियुक्ति किया गया है. कुलाधिति राज्यपाल को इस मामले में सारी ख़बर होने के बाद भी कुलपति को क्लीन चिट दे दी गई जो कि राज्य सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की तथाकथित पॉलिसी पर सवालिया निशान खड़ा कर देती है.”

उन्होंने बताया कि,”उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर राज्य हज़ारों युवाओं ने आवेदन किये थे लेकिन कुलपति ने सभी पदों पर संघ और बीजेपी से जुड़े कार्यकर्ताओं और अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति कर दी. यानी उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में भर्ती के लिए योग्यता का पैमाना एकेडमिक क्वालीफिकेशन नहीं बल्कि संघ भाजपा से जुड़ाव बन गया है. यह योग्य अभ्यर्थियों के साथ किया गया आपराधिक सुलूक है जिसे किसी भी सूरत में माफ़ नहीं किया जा सकता है. “

उन्होंने आरोप लगाया कि, “प्रोफेसरों के 25 पदों पर बड़ा घोटाला करते हुए परमानेट भर्तियों में आरक्षण रोस्टर में हेरफेर कर चेहते उम्मीदवारों की भर्ती का रास्ता साफ किया गया. हैरानी की बात ये है कि महिलाओं का 30 प्रतिशत आरक्षण भी डकार लिया गया. जिस राज्य को बनाने में महिलाओं ने कई तरह की कुर्बानियां दी हों वहीं कुलपति महोदय ने उनका जायज़ आरक्षण ही गायब कर दिया. नैनीताल हाइकोर्ट ने तो बहुत बाद में महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई मुक्त विश्वविद्यालय उससे पहले ही आरक्षण को हजम कर चुका था. ये सब राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री की सरपरस्ती में हुआ. इन भर्तियों में कुलपति ने अपने खास उम्मीदवारों को खपाने क लिए सीटों को आरक्षित और अनारक्षित किया.”

माले नेता ने कहा कि, “मुक्त विश्वविद्यालय में जितनी भी भर्तियों में लिखित परीक्षाएं हुई हैं उनमें पेपर लीक करने और ओएमआर सीट से छेडछाड़ करने का आरोप हैं. इसलिए इन सभी परीक्षाओं और नियुक्तियों की जांच होनी ज़रूरी है. पीसीएस स्तर की कुछ परीक्षाओं में आरएसएस नेताओं का चयनित होना कई सवाल खड़े करता है. इसलिये माननीय उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच से ही दूध का दूध और पानी का पानी होना सम्भव है. “

उन्होंने हल्द्वानी में आगामी 14 सितंबर को युवा बेरोजगारों द्वारा सरकारी नौकरियों में घोटालों और यू.के.एस.एस.एस.सी.में राजनीतिक संरक्षण में हुई शर्मनाक धांधलेबाजी से आक्रोशित बेरोजगार युवा महाआक्रोश रैली को भाकपा (माले) द्वारा अपनी पूरी ताकत से सक्रिय समर्थन देने की घोषणा की.

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